किसी के पास लैपटॉप या फोन नहीं, तो किसी के पास नहीं है इंटरनेट, कैसे मिल पाएगी शिक्षा?
सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले उसक पिता लक्ष्मण वाडकर ने कहा कि उनकी तनख्वाह इतनी नहीं है कि वे स्मार्टफोन खरीद लें।
नयी दिल्ली/मुम्बई, पूरे भारत में डिजिटल सुविधाओं को वहन करने की क्षमता में अंतर के चलते साधन-संपन्नों और साधन-विपन्नों तथा प्रौद्योगिकी से लैस और वंचितों के बीच खाई बढ़ गयी है फलस्वरूप लाखों बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
कोरोना वायरस महामारी ने लोगों को घरों में रहने और विद्यालयों एवं महाविद्यालयों को आनलाइन कक्षाओं के लिए बाध्य कर दिया है। आनलाइन कक्षाओं के लिए कई शर्तें अनिवार्य हैं जैसे कंप्यूटर या स्मार्टफोन, समुचित इंटरनेट संपर्क और निर्बाध बिजली आपूर्ति।
शिक्षा सभी के लिए कभी समान मौके वाला क्षेत्र नहीं रही तथा अब तो उसमें और रूकावटें एवं बाधाएं खड़ी हो रही हैं। शहरों, नगरों और गांवों में विद्यार्थी और शिक्षक बदले हुए इस दौर की मांगों के साथ तालमेल बैठाने के लिए काफी मशक्कत कर रहे हैं।
दिल्ली की चकाचौंध से दूर दिल्ली-नोएडा सीमा पर यमुना के बाढ़ के मैदान में छोटी बस्ती के बच्चों के लिए चीजें कभी आसान नहीं रहीं। पहले वे स्कूल जाने के लिए नौका से नदी पार करते थे लेकिन लॉकडाउन के बाद से पिछले चार महीनों से उनकी परेशानियां कई गुना बढ़ गयी हैं।
जोशना कुमार (12) के पास फोन तो है लेकिन अक्सर बिजली नहीं रहती है। ऐसे में ऑनलाइन कक्षा करना कठिन है।
यहां ज्यादातर बच्चे पशुपालक चरण सिंह पर मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए आश्रित रहते हैं। वह कहती है, ‘‘ हर शाम मैं चार्जिंग के लिए फोन देती हूं और अगली सुबह वह उसे चार्ज कर ले आते हैं।’’
जोशना बैटरी बचाकर रखने के लिए अपने मोबाइल की रोशनी हमेशा कम रखती है। उसका दस साल का भाई कक्षा नहीं कर पाता है। यदि वह क्लास करता है तो उसे (बहन को) ऑनलाइन कक्षा गंवानी पड़ती है।
कुछ ऐसे ही कहानी हरियाणा के फरीदाबाद के सुचि सिंह की है। कक्षा आठवीं की छात्रा सुचि कहती है कि उसके और उसके तीन भाई-बहनों के बीच एक ही स्मार्टफोन है। अत: सभी को बारी-बारी कक्षा करनी पड़ती है।
अपनी कक्षा की टॉपर सुचि का क्लास नहीं कर पाना उसके पिता राजेश कुमार को अच्छा नहीं लगता। लेकिन अखबार बांटने वाले कुमार कहते हैं कि कोई विकल्प भी तो नहीं है। कुमार ने कहा, ‘‘ ई-क्लास ने जीवन कठिन बना दिया है।’’
सैकड़ों किलोमीटर दूर मुम्बई की आर कॉलोनी में कक्षा दसवीं की छात्रा ज्योति रांधे को स्मार्टफोन अपनी मां के साथ साझा करना पड़ता है जो फोन लेकर काम पर जाती है। उसकी दोस्त रोशनी नरे को अपनी दो बहनों के साथ फोन साझा करना पड़ता है।
कुछ विद्यार्थियों के पास तो यह विकल्प भी नहीं है। निगम के विद्यालय में पढ़ने वाले सुमित वाडकर के पास फोन नहीं है। सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले उसक पिता लक्ष्मण वाडकर ने कहा कि उनकी तनख्वाह इतनी नहीं है कि वे स्मार्टफोन खरीद लें।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वय मंत्रालय का 2017-18 का आंकड़ा कहता है कि बस 10.7 प्रतिशत भारतीयों के पास कंप्यूटर और 23.8 प्रतिशत के पास इंटरनेट कनेक्शन हैं।