पोलियो के सताए अनीश कर्मा ने डिजाइन किया 'काफो' यूनिवर्सल घुटना
बुलंदशहर (उ.प्र.) के एक सामान्य परिवार जनमे, मात्र 12वीं तक पढ़े अनीश कर्मा एक तो खुद ही बचपन से पोलियो पीड़ित रहे, उनकी शादी भी पोलियो पीड़िता से हो गई। उसके बाद उन्होंने एक ऐसा अद्भुत, सस्ता घुटना (कॉफो) ईज़ाद कर डाला, जिसे पहनकर कोई भी दिव्यांग आराम से चल-फिर ही नहीं, वाहन भी चला सकता है।
बुलंदशहर (उ.प्र.) में एक अशिक्षित परिवार में जनमे एवं मात्र 12वीं तक पढ़ाई कर अब यूनिवर्सल डिज़ाइन अवार्ड्स विजेता बने अनीश कर्मा के इनोवेशन की सफलता आज के मेधावी युवाओं के लिए एक प्रेरक दास्तान बन चुकी है। बचपन से ही कर्मा के एक पैर में पोलियो था। उनको लोग तरह-तरह के ताने दिया करते थे कि वह ठीक से काम नहीं करते हैं। इस तरह की रोजमर्रा की बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। वह करते भी क्या, कोई भी काम करते समय उनके पैर का वजनी नी-कैलिपर उनकी शारीरिक सहजता को बाधित करता था।
अनीश कर्मा ने इस मुश्किल को ही उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा चैलेंज मान लिया। फिर तो पढ़ाई-लिखाई के बाद उन्होंने 135 डिग्री फ्लेक्सियन ऐसा कृत्रिम घुटना ईज़ाद कर डाला, जिसके सहारे कोई भी दिव्यांग आराम से चल-फिर-दौड़ ही नहीं सकता बल्कि फटाफट सीढ़ियां चढ़ सकता, साइकिल चला सकता है। अपने इस अद्भुत अनुसंधान के बूते ही ही आज वह 2018 से आईआईटी मुंबई के इन्क्यूबेशन सेंटर में प्रॉजेक्ट टेक्निकल असिस्टेंट पद पर काम कर रहे हैं। इसके लिए उनको कई एक पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
अनीश कर्मा का नवाचार ऑर्थोसिस (काफो-केएएफओ) पोलियो, पक्षाघात, मस्तिष्क पक्षाघात, न्यूरोमस्कुलर विकारों और दुर्घटनाओं से प्रभावित लोगों के लिए एक वरदान जैसा है। यह उपकरण सरकार द्वारा प्रदान किए गए मुफ्त ड्रॉप-लॉक कॉलिपर्स से भी बेहतर है। ड्रॉप-लॉक कॉलिपर्स असहज और कठोर हैं, जो सीढ़ियों पर चढ़ना, वाहन चलाना आदि मुश्किल कर देते हैं। अनीश के काफो उपकरण में स्क्वाटिंग, वॉकिंग और साइकलिंग के लिए 135 डिग्री का कोण है। इसका वजन केवल 1.3 किलोग्राम है और यह 120 किलोग्राम तक वजन वाले व्यक्ति को सहायता प्रदान कर सकता है। इस सब के साथ ही, यह फुटवियर के लिए संगत और अपनी कीमत के भी लिहाज से काफी किफायती है। अन्य आयातित उपकरण सेंसर सिस्टम, रैखिक स्प्रिंग्स, हाइड्रोलिक्स और टॉर्सनल रॉड के कारण बहुत महंगे हैं।
अनीश कर्मा चाहते हैं कि किसी भी तरह की विकलांगता भारतीय युवाओं की सफलता में बाधा न बने। यही मेरा सपना था। अब रीढ़ की हड्डी से पीड़ित लोगों के लिए एक ऐसा प्रोस्थेटिक्स विकसित करना चाहते हैं, जो रीढ़ पीड़ित लोगों के भी दुख दूर कर सके। आगे उनका इरादा खुद की स्टार्ट-अप कंपनी स्थापित करना है।
अनीश बताते हैं कि वह सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ाई कर पाए। विज्ञान में तो वह हमेशा फेल होते रहे। जीवनयापन के लिए उन्हे इधर-उधर मामूली नौकरियां करनी पड़ीं। एक डॉक्टर के घरेलू नौकर के रूप में उनकी अक्सर फजीहत हुआ करती थी। उस फजीहत ने ही उन्हे ऐसी दृढ़ता और संकल्प दिया कि आज उनके बनाए उपकरण को देश में सम्मान मिल रहा है। लोगों की टहल बजाने जैसे अपने छुटपुट, मामूली रोजगार के दिनों में तो वह सोच भी नहीं पाते थे कि आखिर करें क्या, पढ़ाई-लिखाई उतनी है नहीं कि कोई अच्छी नौकरी मिले। पैसा है नहीं कि कोई रोजगार कर लें लेकिन जिंदगी में कुछ कर दिखाने का उनके अंदर का जुनून दिमाग मथता रहा।
आखिरकार एक दिन उन्होंने तय किया कि अब उन्हे कुछ बड़ा करना है। सबसे पहले उन्होंने एक प्राइवेट अस्पताल में अपना पोलियो ऑपरेशन कराया। तकलीफ से थोड़ी राहत मिली। तभी उनकी एक ऐसी दिव्यांग महिला से शादी रचा दी गई, जो कैलिपर उतारने के बाद पैर पर हाथ रखकर चलती थी। उसके बाद उन्होंने एक ऐसा कैलिपर बनाने के लिए सोचा, जो दिव्यांगों की जिंदगी आसान कर दे।
अनीश बताते हैं कि इस प्रक्रिया में सबसे पहले उन्होंने अपनी पत्नी के ही जैबर-फुट में कई तरह के परिवर्तन कर डाले। उसके बाद जब उन्होंने उस जैबर-फुट को स्वयं आजमाया तो वह काफी सहज लगा। फिर उन्होंने वर्ष 2015 में अपने आविष्कृत उपकरण का राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) की मदद से पेटेंट ले लिया। फिर वह ऑर्थोसिस के अपने डिजाइन को विकसित करने के लिए बीटीआईसी लैब में शामिल हो गए। उसी साल उन्होंने अपना दूसरा पेटेंट भी फाइल किया और BIG आइडिया समिट 2018 अवॉर्ड जीता। इस 2019 में उन्होंने BIRAC जैव प्रौद्योगिकी इग्निशन ग्रांट जीता।
अनीश कहते हैं कि हमारे देश में 1.2 मिलियन पोलियो रोगी हैं, जबकि दुनिया में, सेरेब्रल पाल्सी, रीढ़ की हड्डी की चोटों के साथ 100 मिलियन से अधिक रोगी हैं। बेहद महंगे होने के बावजूद भारत में हर साल 40 हजार कैलीपर्स बाहर से मंगाए जाते हैं। बीआईटीसी आईआईटी बॉम्बे के संरक्षक प्रो बी रवि कहते हैं कि आजादी के 72 साल बाद भी आयातित 78 उपकरणों की तुलना में KAFO जैसा स्वदेशी चिकित्सा उपकरण नवाचार इस अंतर को पाट सकता है।