अब तक के नए निचले स्तर पर पहुंचा पाउंड, मंदी की आशंका तेज
ब्रिटेन में टैक्स कटौती और सरकारी खर्च बढ़ाने के ऐलानों से पाउंड में एक बार फिर गिरावट का दौर शुरू हो गया है. सोमवार के कारोबारी सत्र की शुरुआत में पाउंड डॉलर के मुकाबले 1.0349 डॉलर के निचले स्तर पर गया. बाद में यह 2.3 फीसदी लुढ़कर 1.0671 डॉलर पर पहुंच गया.
ब्रिटेन की करंसी पाउंड में एक बार फिर डॉलर के मुकाबले गिरावट आनी शुरू हो गई है. पिछले सप्ताह ही ब्रिटेन सरकार की तरफ से टैक्स में कटौती और खर्च बढ़ाने के ऐलान के बाद इसमें गिरावट का सिलसिला शुरू हुआ. सोमवार के कारोबारी सत्र की शुरुआत में पाउंड डॉलर के मुकाबले 1.0349 डॉलर के निचले स्तर पर गया. बाद में यह 2.3 फीसदी लुढ़कर 1.0671 डॉलर पर पहुंच गया.
सरकार के टैक्स कटौती के प्लान को पहले तो बाजार ने पॉजिटिव लिया मगर बाद में इस बात को लेकर चिंदा बढ़ी कि सरकार की उधारी बढ़ने से देश में महंगाई की स्थिति और बिगड़ सकती है. शुक्रवार को पाउंड में 3 फीसदी से ज्यादा की कमी आई थी. यह 1980 के शुरू में दिखे स्तरों पर ट्रेड करता दिख रहा है.
ब्रिटेन में टैक्स कटौती की खबर के बाद से डॉलर की मांग एकाएक बढ़ गई है. जिसकी वजह से डॉलर इंडेक्स भी रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. शुक्रवार को यूएस डॉलर इंडेक्स 20 साल के हाई लगाते हुए 113 पर पहुंच गया. हालांकि डॉलर के मुकाबले अकेले पाउंड की ही हालत नहीं खराब है. बाकी करंसी का भी यही हाल है.
फेडरल बैंक की तरफ से महंगाई से निपटने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के बाद दुनिया भर की करंसी का हाल बेहाल हो रहा है. जापान में भी सेंट्रल बैंक ने पिछले सप्ताह येन को सपोर्ट देने के लिए कदम उठाए.
यूके के ट्रेजरी चीफ क्वासी क्वार्टेंग ने शुक्रवार को टैक्स कटौती का ऐलान करते हुए कहा था कि इससे इकनॉमिक ग्रोथ में तेजी दिखेगी और रेवेन्यू भी बढ़ेगा. मगर फिर उन्होंने कहा कि सरकार आगे भी टैक्स में कटौती के बारे में सोच सकती है. इस बयान के बाद सोमवार पाउंड में एक बार फिर बिकवाली का दौर दिखा.
निवेशकों को डर है इस तरह के कदम यूरोप को जल्द ही मंदी की तरफ ढकेल सकते हैं. यूरोप के शेयर बाजारों पर भी पाउंड में कमजोरी का साया नजर आया. FTSE200 दो पर्सेंट तक नीचे आ गया.
ग्लोबल बाजारों में चल रही उठापटक से इंडिया अछूता नहीं है. सोमवार को कारोबारी सत्र में रुपया भी डॉलर के मुकाबले 81.55 के निचले स्तर पर आ गया. रुपये में गिरावट के चलते इंडिया का आयात बिल बढ़ जाएगा. इससे सरकारी खजाने पर तो भार बढ़ेगा ही साथ में देश में इंपोर्टेड इन्फ्लेशन का रिस्क बढ़ जाएगा.
ऐसा होने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जो पहले से ही ऊंचे महंगाई दर की स्थिति से जूझ रहा है, उसके सामने ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव होगा. बता दें कि इस सप्ताह के आखिरी आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक के नतीजे आने वाले हैं. उम्मीद जताई जा रही है आरबीआई एक बार फिर से ब्याज दरें बढ़ा सकता है.
Edited by Upasana