Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

ट्रेन हादसे में खो दिये थे पैर, महामारी के दौरान ऑटोरिक्शा चलाकर लोगों के भीतर भर रहे हैं हौसला

ट्रेन हादसे में खो दिये थे पैर, महामारी के दौरान ऑटोरिक्शा चलाकर लोगों के भीतर भर रहे हैं हौसला

Friday July 17, 2020 , 3 min Read

एक ट्रेन दुर्घटना में नागेश काले ने अपने दोनों पैर खो दिए, लेकिन उस घटना से उनका हौसला नहीं टूटा। महामारी के दौरान भी 27 वर्षीय नागेश पुणे में एक ऑटो-रिक्शा चलाकर जीवनयापन कर रहा है।

महामारी के दौरान भी नागेश रोजाना लगभग 8 से 10 घंटे तक रिक्शा चलाते हैं। (चित्र साभार: हिंदुस्तान टाइम्स)

महामारी के दौरान भी नागेश रोजाना लगभग 8 से 10 घंटे तक रिक्शा चलाते हैं। (चित्र साभार: हिंदुस्तान टाइम्स)



27 वर्षीय नागेश काले साल 2013 में एक दर्दनाक ट्रेन हादसे से गुजरे, जिसमें उनके पैरों को बुरी तरह चोट आई। उनके पैरों को संक्रमण से बचाने के लिए डॉक्टरों को उनके पैर अलग करने पड़े।


लेकिन वो भयानक घटना ने उनकी अदम्य भावना और इच्छा शक्ति को प्रभावित नहीं कर सकी। कक्षा 8 के बाद स्कूल छोड़ने वाले नागेश ने कुछ रिश्तेदारों की मदद से एक ऑटोरिक्शा खरीदा और तब से वह अपने परिवार की आर्थिक रूप से मदद कर रहे हैं।


इस हालत में एक तीन पहिया वाहन को चलाने के लिए नागेश ने पैरों से लगने वाली ब्रेक को मॉडिफाई कर उसे हाथ से लगाने लायक तैयार किया है। कोरोना वायरस महामारी के दौरान भी नागेश ने कमाई की है।


नागेश ने द हिंदुस्तान टाइम्स को बताया,

“अगर मुझे दैनिक ग्राहकों के साथ कुछ लंबी दूरी तय करनी है, तो यह मेरी मदद करता है, लेकिन मैं अभी भी अपने दम पर कमा सकता हूं।”

नागेश अपनी पत्नी और मां के साथ पुणे के चिखली में रहते हैं। लॉकडाउन से पहले वह प्रति दिन लगभग 800 से 900 रुपये कमाते थे। आज, वह हर दिन 200 से 300 रुपये कमा रहे हैं। वास्तव में, वह अपने कई ग्राहकों के लिए प्रेरणाश्रोत रहे हैं, जो अपनी आशावाद के लिए प्रशंसा के पात्र भी हैं।





नियमित रूप से नागेश के साथ यात्रा करने वाले पुणे के निवासी सागर धवन ने द बेटर इंडिया को बताया,

“लॉकडाउन के दौरान हमें शहर के आसपास गाड़ी चलाने के अलावा, नागेश ने मेरे परिवार की बहुत मदद की। वह मेरे ससुराल वालों के लिए किराने का सामान लेने गया, जो अकेले रह रहे हैं और वह उसने उसके बाद भी यह सुनिश्चित किया कि उनके पास सारा समान है।”

कोरोनावायरस महामारी के चलते लागू हुए लॉकडाउन ने दुनिया भर में एक बड़ी आबादी के बीच कई मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को जन्म दिया है, इसके चलते कई ने आत्महत्या का प्रयास करके अपने जीवन को समाप्त कर दिया। यहां तक कि नागेश के भी ऐसे ही विचार थे, लेकिन उन्होंने इन विचारों को कभी अंदर हावी नहीं होने दिया।


वह आगे कहते हैं,

“मेरे जीवन में मुझे तीन बार आत्महत्या करने का अहसास हुआ- पहला, जब दुर्घटना हुई; दूसरा, जब मैं ससून अस्पताल में था और मेरे माता-पिता को सब कुछ करना पड़ा; और तीसरा मेरे इलाज के अंतिम चरण के दौरान जैसा कि मैं अपने भविष्य के बारे में अनिश्चित था। अपने परिवार और दोस्तों की मदद और समर्थन के साथ, मैंने इसे हावी नहीं होने दिया और आज मैं खुशी से रहता हूं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि समस्या क्या है, व्यक्ति बच सकता है। मेरा जीवन एक ऐसा ही उदाहरण है।”