एक दिन की देरी से पहली महिला सीबीआई डायरेक्टर बनने से चूक गईं रीना मित्रा
सेलेक्शन कमेटी की बैठक से ठीक एक दिन पहले रिटायर हो जाने के कारण आईपीएस रीना मित्रा देश की पहली महिला सीबीआई डायरेक्टर बनने से वंचित रह गईं। यह झटका उनकी पूरी जिंदगी का सबसे दुखद बन गया। वह अपने इस दर्द को दबा नहीं पा रही हैं। वह कहती हैं- 'क्या वाकई यह मेरे प्रोफेशनल करियर की आखिरी शीशे की छत थी, जिसका मैं सामना कर रही थी?'
नए सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति पर पूर्व स्पेशल डीजी और मध्य प्रदेश कैडर की आईपीएस रीना मित्रा एतराज जता रही हैं। मन को लाख थामने के बावजूद आखिकार उनके अंदर का दर्द छलक ही पड़ा है। रीना मित्रा ने 1983 में भारतीय पुलिस सेवा में कार्यभार ग्रहण किया और उनको मध्य प्रदेश संवर्ग दिया गया। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय से परा-स्नातक तथा मद्रास विश्वविद्यालय से एम.फिल हैं। वह नेशनल डिफेंस कॉलेज की छात्रा रही हैं।
पुलिस में उन्होंने 34 वर्षों के कार्यकाल के दौरान, मध्य प्रदेश के तीन जिलों में जिला पुलिस अधीक्षक, डीआईजी एवं आईजी सीआईडी, महानिरीक्षक (लीगल/पर्स), विशेष डीजीपी (प्रशिक्षण) और विशेष डीजीपी, पीएचक्यू के रूप में अपने शीर्ष सुरक्षा दायित्वों का निर्वाह किया है। भारत सरकार में, उन्होंने सीबीआई, रेलवे बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन (डब्यूसीसीबी), आईजी बीपीआर, निदेशक, एनआईसीएफएस के पद भी संभाले हैं। वर्ष 1999 में सराहनीय सेवा के लिए उनको पुलिस मेडल और वर्ष 2008 में राष्ट्रपति का विशिष्ट पुलिस मेडल प्रदान किया गया। उन्होंने 1 मार्च 2017 को विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) के रूप में गृह मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण किया। इस साल के पहले ही महीने वह सरकारी सेवा से निवृत्त हुई हैं।
रीना मित्रा कहती हैं कि 'सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए एक सेट क्राइटेरिया है। वह अभी पिछले सप्ताह ही 31 जनवरी को रिटायर हुई हैं। उसके अगले दिन ही नया सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त कर दिया गया। एक दिन में सब कुछ कैसे तय हो सकता है? क्राइटेरिया नहीं होता तो कोई बात नहीं थी।' उल्लेखनीय है कि सीबीआई डायरेक्टर पद के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने जो नाम तय किए थे, उनमें एक रीना मित्रा थीं। वरिष्ठता सूची में वह सबसे ऊपर थीं लेकिन 31 जनवरी को वह रिटायर हो गईं और एक फरवरी को पूर्व डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला को डायरेक्टर नियुक्त कर दिया गया। इसी चयन प्रक्रिया को लेकर रीना मित्रा का एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने नियुक्ति पर सवाल उठाए। मंगलवार को भास्कर ने जब उनसे इन्हीं सवालों के बारे में पूछा तो मित्रा ने कहा कि जो होता है वही लिखा है। किसी को तो लिखना ही था।
दरअसल मित्रा ने उस आर्टिकल में लिखा है कि देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआई की डायरेक्टर बनने के लिए वे सभी मापदंडों को पूरा करती हैं। सीबीआई और एंटी करप्शन में अनुभव के क्राइटेरिया में वह थीं। चयन प्रक्रिया में एक दिन की देरी ने उन्हें सीबीआई डायरेक्टर बनने से रोक दिया, जिसे आसानी से टाला जा सकता था। वे चाहती थी कि मेरिट के आधार पर उन्हें सीबीआई का डायरेक्टर बनाया जाए।
रिटायर होने के सिर्फ एक दिन के फासले पर सीबाआई डायरेक्टर बनने से वंचित रह गईं रीना मित्रा ने अपनी भावनाओं का अंग्रेजी अखबार 'द टेलिग्राफ' में भी इजहार किया है। रीना मित्रा पांच साल तक सीबीआई अधिकारी के तौर पर भी काम कर चुकी हैं। उनका नाम उन 12 अफसरों की सूची में शामिल था, जिनके नाम पर सिलेक्शन कमिटी में विचार हुआ। बताया जाता है कि इस पद के लिए योग्यता संबंधी सभी मानदंडों पर वह खरी उतरी थीं क्योंकि उनका रिकॉर्ड अन्य की अपेक्षा काफी साफ-सुथरा रहा है। वह हमेशा सत्ता प्रतिष्ठानों के किसी भी तरह के विवादों और राजनीतिक रिश्ते-नातों संबंधी उलाहनों से दूर रही हैं।
बताते हैं कि सीबीआई डायरेक्टर चुनने के लिए हुई सिलेक्शन कमिटी की बैठक टल गई और बैठक से एक दिन पहले वह रिटायर हो गईं। एक सच और है कि उनके साथ ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। अपने तमाम अनुभवों के बावजूद इससे पहले तीन बार और वह देश की पहली महिला सीबीआई निदेशक बनते-बनते रह गईं थीं। वह कहती हैं- 'मैं ये सोचने को बाध्य हो गई कि क्या ये वाकई मेरे प्रोफेशनल करियर की आखिरी शीशे की छत थी, जिसका मैं सामना कर रही थी?'
रीना मित्रा अपने बचपन के दिनों का जिक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह उनके भाइयों ने उनकी पढ़ाई के लिए पिता से लड़कर मदद की। इतना ही नहीं, जब वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला आईपीएस चुनी गईं, तब भी लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। उस वक्त लोगों ने कमेंट करते हुए कहा था कि 'मिल तो गया, कर लेगी क्या?' इतना ही नहीं, लोगों ने उनकी काबिलियत को हमेशा कम कर के आंका, चाहे वह उनके शादी का मामला रहा हो या मां बनने का वक्त लेकिन सभी तरह की मुश्किलों पर पार पाते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी। सभी समस्याओं का जमकर सामना किया।
वह कहती हैं- 'मेरी बातों से जूनियर अधिकारियों को बिलकुल निराश होने की जरूरत नहीं है। खासकर अगर आप महिला अधिकारी हैं, तो आपको ऐसे कई चैलेंज मिलेंगे लेकिन उनसे घबराने की कोई जरूरत नहीं। महिला होने के कारण पुरुष प्रधान समाज में लिंगभेद का सामना करने के लिए बस जरा अधिक कोशिश करनी पड़ती है।'
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