मेडल ही नहीं बच्चों को खेल का असली मतलब बता रहा है भारत का ये कराटे चैंपियन
कई भारतीय खेल सितारे गरीबी में रहे और सफलता पाने से पहले कई कठिनाइयों का सामना किया। 29 वर्षीय सबरी कार्तिक उनमें से एक हैं।
कई भारतीय खेल सितारे गरीबी में रहे और सफलता पाने से पहले कई कठिनाइयों का सामना किया। 29 वर्षीय सबरी कार्तिक उनमें से एक हैं। उन्होंने कई बाधाओं का सामना किया, और कराटे में भारत के लिए कई पुरस्कार जीते, जिनमें सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय जूनियर कराटे चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक और दक्षिण एशियाई कराटे चैम्पियनशिप और मलेशिया ओपन में रजत पदक शामिल हैं।
सबरी कार्तिक के लिए यात्रा आसान नहीं थी। 11 साल की उम्र में अपने पिता को खोने वाले सबरी को अपने परिवार को पालना था। जब वह 15 साल के थे, तभी उन्होंने तमिलनाडु के कोयम्बटूर में जेन मार्शल आर्ट्स और PSG सर्वजन स्कूल में कराटे सिखाना शुरू कर दिया था। सुबह स्कूल में बिताए जाते थे, और शाम को बच्चों को साइडकिक्स, एल्बो स्ट्राइक और मिड-लेवल पंच लगाना सिखाते थे।
सबरी, और उनकी मां, प्रशिक्षण से प्राप्त आय और परिवार को मिलने वाली 4,500 रुपये पेंशन के साथ अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन का प्रबंधन करती हैं। यह सबरी के लिए कराटे चैंपियन बनने के अपने सपने को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं था, लेकिन उन्होंने इसमें अपना खून, पसीना और आँसू बहाए।
जल्द ही, उन्होंने प्रसिद्ध कोच सेंसेई एन कार्तिकेयन के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया। उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने बड़ी लीग में कदम रखा, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कराटे टूर्नामेंट के एक स्लीव में भाग लेने के लिए चुने गए, और दुनिया में तूफान मचा दिया।
हालांकि, सबरी सिर्फ प्रतियोगिताएं जीतने से संतुष्ट नहीं थे। वह खेल खेलने की वास्तविक शक्ति और उसके लाभ जानना चाहते थे।
सबरी कार्तिक योरस्टोरी को बताते हैं,
"एक खिलाड़ी के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान, मुझे एहसास हुआ कि बच्चों और व्यक्तियों के लिए आउटडोर गेम्स और खेल में लिप्त होना कितना महत्वपूर्ण था। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि हर बच्चा खेलने की खुशी, अपने शरीर में ऊर्जा के प्रवाह का अनुभव करे।”
2017 में, सबरी ने PHASE (शारीरिक स्वास्थ्य और खेल शिक्षा) की स्थापना की, जो एक फॉर-प्रॉफिट सामाजिक उद्यम है। यह बच्चों को खेल के क्षेत्र में उनकी ऊर्जा को चैनलाइज करने में मदद करने के लिए समर्पित है। संगठन स्कूलों के साथ सहयोग करता है और उन्हें स्पोर्ट्स के लिए करिकुलम, ट्रेनिंग प्रोग्राम और मॉनिटरिंग डिजाइन करने का आश्वासन देता है।
शुरुआत
सबरी का जन्म और पालन पोषण तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा एक सरकारी स्कूल में की। उनके पिता, गुनसेकरन, एक पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने सबरी को कराटे सीखने के लिए प्रेरित किया था जब वह सिर्फ आठ साल के थे। तभी वह जेन मार्शल आर्ट्स में शामिल हो गए थे।
कुछ साल बाद, सबरी के पिता की अचानक मृत्यु ने पूरे परिवार को हिला दिया। लेकिन लड़के ने फाइट बैक करने का फैसला किया। उन्होंने कड़ी मेहनत की, अपने सपने पर विश्वास किया और ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कराटे का अभ्यास जारी रखा और जल्द ही मार्शल आर्ट फॉर्म के लिए उनके अंदर बहुत प्यार जाग उठा।
सबरी कहते हैं,
"एक बच्चे के रूप में, मैं विभिन्न किक, पंच और फाइटिंग से काफी फेसिनेटेड था। बाद में मुझे पता चला कि यह सिर्फ तकनीकें नहीं हैं जो किसी को चैंपियन बनाती हैं। यह दिमाग ही है जो सबसे ज्यादा मायने रखता है।"
सभी व्यक्तिगत अभ्यास के अलावा, जब उन्होंने ग्यारहवीं कक्षा में कदम रखा तभी से सबरी ने अकादमी में बच्चों को प्रशिक्षित करना शुरू दिया। हालांकि, इस यात्रा के माध्यम से, उन्होंने एकेडमिक पर पकड़ नहीं खोई। उन्होंने पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी में स्नातक और फिर केसीटी बिजनेस स्कूल में एमबीए किया। सबरी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था जब 2005 में उन्हें अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट, फिलीपींस में कराटे विश्व कप के लिए चुना गया था।
वह याद करते हुए कहते हैं,
“यह शुरूआत में एक संघर्ष था। मुझे स्पॉन्सरशिप, सही कोचिंग और एक अच्छी सहायता प्रणाली प्राप्त करने के लिए मुझे काफी भागदौड़ करनी पड़ी। मैंने अपने पिता की पेंशन से 30,000 रुपये का लोन भी लिया। इसके पुनर्भुगतान ने मासिक आय को कम कर दिया। लेकिन, किसी तरह मैंने इसे निपटाया। मैंने 10 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और जीता।”
उनकी उपलब्धियों में 2010 में चीन में एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करना, 2011 में दक्षिण एशियाई कराटे चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण और रजत पदक हासिल करना, 2009 में दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रमंडल कराटे चैम्पियनशिप में दो कांस्य पदक और 34वें राष्ट्रीय खेलों और राष्ट्रीय कराटे चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण पदक जीतना शामिल है।
हजारों बच्चों के जीवन को छूना
भारत के सर्वश्रेष्ठ कराटे चैंपियन में से एक बनने के बावजूद, सबरी ने माना कि उन्हें "खालीपन महसूस" हुआ। वह खेल के क्षेत्र में बदलाव के अग्रदूत बनना चाहते थे और अपने आसपास के लोगों के जीवन में बदलाव लाना चाहते थे। इसने उन्हें भारतीय पुलिस सेवा में जाने के लिए प्रेरित किया। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा की तैयारी के लिए वह जल्द ही तमिलनाडु के एक हिल स्टेशन ऊटी चले गए।
वहां, सबरी ब्लू माउंटेन स्कूल में कराटे ट्रेनर के रूप में शामिल हुए। एक मोड़ तब आया जब उनके एक छात्र ने उन्हें बताया कि उन्हें कराटे बोरिंग लगता है।
सबरी कहते हैं,
“मैं काफी अचंभित था और जानना चाहता था कि क्या अन्य सभी छात्रों को भी ऐसा ही लगता है। मैंने पाया कि उनमें से अधिकांश मार्शल आर्ट का अभ्यास करने से ज्यादा इधर-उधर भागना और खेल खेलना पसंद करते थे। उसी समय मेरे दिमाग में मेरे खुद के एक संगठन को शुरू करने का आइडिया आया।"
सबरी केवल पदक जीतने के लिए बच्चों को प्रशिक्षित नहीं करना चाहते थे। वह चाहते थे कि बच्चे खेलों का बड़ा, व्यापक उद्देश्य और लाभ देखें। उन्होंने यह भी महसूस किया कि खेलों ने उन्हें खुद का सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनाने में मदद की। और, यही वह सबक था जो वह छोटे बच्चों को सिखाना चाहते थे।
इसलिए, 29 वर्षीय सबरी ने कोयंबटूर वापस जाकर अपने खुद के फंड से PHASE स्पोर्ट्स प्राइवेट मिलिटेड शुरू किया।
संगठन स्कूल स्तर पर खेल और खेल के माध्यम से बच्चों को खुश और स्वस्थ इंसान बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
PHASE स्कूलों के साथ सहयोग करता है और उन्हें खेल पाठ्यक्रम और कार्यक्रमों को डिजाइन और कार्यान्वित करने में मदद करता है जो न केवल शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति में सुधार करते हैं, बल्कि लोकोमोशन, तनाव प्रबंधन, टीमवर्क, संचार और नेतृत्व जैसे कौशल भी विकसित करते हैं। संगठन सेवा के लिए स्कूलों से उचित शुल्क लेता है।
पिछले दो वर्षों में, सबरी के संगठन ने भारत के कई स्कूलों में 5,000 से अधिक बच्चों की मदद की है। इनमें हरियाणा में विद्या देवी जिंदल स्कूल, रामकृष्ण मैट्रिकुलेशन स्कूल और कोयंबटूर में विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल के साथ-साथ तिरुपुर में अन्नई अबराममी स्कूल शामिल हैं।
संगठन में 15 से अधिक कर्मचारी हैं और बढ़ रहे हैं। सबरी कहते हैं,
"मेरा लक्ष्य यह है कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं उसे जारी रखूं और खेल पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान दूं।"