सरपंच का संकल्प: पानी की समस्या का समाधान करने के बाद ही करेंगी शादी
महाराष्ट्र की महिला सरपंच अलका पवार ने संकल्प लिया है कि वह अपने गांव की पानी समस्या सुलझाने के बाद ही शादी करेंगी। राजस्थान की शैलजा अपनी शादी से पहले दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से खेतों में बने कुंडों को पानी से भरने में जुटी हुई हैं तो बुंदेलखंड में चार सौ महिलाओं का ‘जल सहेली’ समूह सौ से ज्या
पानी की यह कोई मामूली त्रासदी नहीं है। इस समय देश के विभिन्न इलाकों में पानी के लिए महिलाएं चकरघिन्नी बनी हुई हैं। एक वक्त में सूखा-अकाल के समय गांव की महिलाएं निर्वस्त्र होकर रात में सूखे खेतों में हल चलाया करती थीं लेकिन बदलते जमाने के साथ महिलाओं ने पानी के लिए अपने संघर्ष की दिशा भी बदल ली है। नंदुरबार (महाराष्ट्र) के सूखाग्रस्त वीरपुर गांव की तेईस वर्षीय महिला सरपंच अलका पवार ने ऐलान किया है कि जब तक उनके गांव से पानी की समस्या खत्म नहीं हो जाती, वह शादी नहीं करेगी। अलका ने घर-घर पानी पहुंचाने के लिए अभिनेता आमिर खान के 'पानी फाउंडेशन' में ट्रेनिंग ली है।
श्रीगंगानगर (राजस्थान) के पर्यावरण कार्यकर्ता अनिल बिश्नोई की तेईस साल की बेटी शैलजा अपनी शादी से पहले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद से खेतों में बने कुंडों को पानी से भरने में जुटी हुई हैं। बुंदेलखंड में चार सौ महिलाओं का ‘जल सहेली’ समूह उत्तर प्रदेश के झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर जिलों के सौ से ज्यादा गांवों में पानी बचाने और उसे संरक्षित करने की मुहिम चला चला रहा है।
निजी क्षेत्र की मौसम कंपनी स्काई मैट के बाद मौसम विभाग ने भी इस साल दक्षिण पश्चिम मानसून के देर से पहुंचने का अनुमान व्यक्त किया है, जिसके अनुसार यह छह जून को केरल के तट पर पहुंच सकता है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में तो पहले ही सूखे के आसार नजर आ रहे हैं, जहां हाल के वर्षों में भीषण जल संकट देखा गया है। झारखंड के कोयलांचल क्षेत्र स्थित प्रखंड बड़कागांव के डाड़ी कला एवं चेपा खुर्द में पानी की घोर किल्लत से जूझ रही महिलाएं बच्चों के साथ सुबह होते ही पानी की खोज में निकल पड़ती हैं।
रमजान के दिनों एवं शादी विवाह में पानी की भारी किल्लात को लेकर परेशानी बढ़ गई है। रतलाम (म.प्र.) के गांव रोजड़का की महिलाएं रोजाना चौराहे पर एकत्रित होकर एक किमी दूर गजराजसिंह चौहान के खेत पर लगे होल पर पानी भरने जाती हैं। राजस्थान के शहर दौसा में सात सौ से अधिक महिला रोजेदार रोजाना दिनभर प्यासी रहकर पेयजल की जुगत में जुटी रहती हैं। आबिदा, हसीना, नूरजहां, जमीला, बिस्सो, जरीना बताती हैं कि जलदाय विभाग सप्लाई किया जा रहा पानी खारा है। ऐसे में रोजाना दिनभर मीठे पानी के लिए उन्हे दूर-दूर तक जाना पड़ता है।
उत्तरी राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में बिश्नोई समुदाय की लड़कियां शादी से पहले कुंड में पानी भरती हैं। बिश्नोई समुदाय प्रकृति पूजा और वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी अपनी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसी समुदाय की लड़की शैलजा ने एक बेमिसाल पहल की है। उसने अपनी शादी के विवाह संस्कार से पहले हिरणों की प्यास बुझाने के लिए खेत में खोदे गए गड्ढों को पानी से भर दिया है। पिछले सप्ताह शैलजा की इस पहल ने लपट भरी गर्मी से जूझ रहे जंगली जानवरों को बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समुदाय के किसानों ने अपने खेतों में लगभग सत्तर कुंड खोदकर महिलाओं की मदद से उनको पानी से भर दिया है।
शैलजा रोजाना गांव वालों से पक्षियों के लिए छतों पर पानी से भरे कंटेनर रखने की अपील कर रही हैं। यहां की दुल्हनें अपनी शादी में मेहमानों को पौधे भेंट करने के लिए भी मशहूर हैं। शैलजा को कल्याण सीरवी द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म ‘साको- 363 अमृता की खेजड़ी’ से प्रेरणा मिली है, जो लीजेंड अमृता देवी की कहानी पर आधारित है, जिन्होंने गांव में पेड़ों को बचाने के लिए संघर्ष किया था।
नंदुरबार (महाराष्ट्र) के गांव वीरपुर की महिला सरपंच अलका पवार को देखने जब लड़के वाले उनके घर पहुंचे तो उन्होंने यह कहकर वापस भेज दिया कि जब-तक गांव में पानी लाने की उनकी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है, तब तक वह शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हैं। अलका बताती हैं कि उनके गांव में पानी के पानी के लिए गांव की बहन-बेटियों को रोजाना घने जंगल से गुजरते हुए दस किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है।
अलका कहती हैं कि वह अपने पूरे गांव को प्यासा मरने के लिए नहीं छोड़ सकती हैं। आखिर किसी न किसी को तो गांव में पानी लाने का बीड़ा उठाना ही था, सो उन्होंने उठा लिया है। उनके प्रयासों से गांव में पानी जमा करने के लिए अलग-अलग खेतों में गड्ढे बनाए गए हैं। इस काम में गांव के बड़े, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे उनकी मदद कर रहे हैं। बारिश आने के बाद इनमें पानी भरेगा और फिर इसी पानी को साफ कर गांव के लोगों की प्यास बुझेगी।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड दशकों से पानी के संकट से जूझ रहा है। इस त्रासदी ने बड़ी संख्या में लोगों को यहां से पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। अब यहां की महिलाओं का ‘जल सहेली’ समूह गांवों में पानी बचाने और उसे संरक्षित करने की मुहिम चला रहा है। जल सहेलियों ने अब तक 25 से ज्यादा तालाबों का पुनरुद्धार कर उन्हे पानी से भर दिया है। हमीरपुर, जालौन और ललितपुर की साठ ग्राम पंचायतों की जल सहेलियों ने तो पूरी तस्वीर ही बदल दी है। वे इलाके के हैंडपंप ठीक कराकर, टंकी बनवाकर, पाइपलाइन डलवाकर पीने के पानी की समस्या हल करने में जुटी हुई हैं।
अब ये जल सहेलियां ललितपुर, हमीरपुर और टीकमगढ़ के पचास से अधिक तालाबों को गहरा करने में जुटी हैं। वर्ष 2011 में यूरोपियन यूनियन के सहयोग से परमार्थ सेवा संस्थान ने पानी पर महिलाओं की हकदारी परियोजना शुरू की थी। तब गांव में पानी पंचायतें बनीं। इसमें प्रत्येक पंचायत से 15 से 25 महिलाओं को शामिल करने के साथ ही हर पंचायत से दो-दो महिलाओं को जल सहेली बनाया गया। उसके बाद से उनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। चयनित जल सहेलियों को ट्रेनिंग के लिए जलपुरुष राजेंद्र सिंह के पास अलवर (राजस्थान) भैजा जाता है।
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