वैज्ञानिकों ने खोजी अल्जाइमर्स की नई दवा, इस साल आ सकती है मार्केट में
WHO की रिपोर्ट के मुताबिक आज पूरी दुनिया में 5.5 करोड़ लोग अल्जाइमर्स से पीडि़त हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक आज पूरी दुनिया में 55 मिलियिन यानी 5.5 करोड़ लोग अल्जाइमर्स से पीडि़त हैं और हर साल अल्जाइमर रोगियों की संख्या में 1 करोड़ की दर से इजाफा हो रहा है. इस बीमारी का शिकार हो रहे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.
मेडिसिन की भाषा में अल्जाइमर्स को टाइप 3 डायबिटीज भी कहा जाता है क्योंकि लांग टर्म डायबिटीज, इंसुलिन रेजिस्टेंस और असंतुलित इंसुलिन लेवल का अल्जाइमर्स या डिमेंशिया के साथ सीधा संबंध है.
लेकिन इस संबंध में एक अच्छी खबर यह है कि 18 महीने की लंबी रिसर्च और मेहनत के बाद वैज्ञानिक एक ऐसी दवा बनाने में कामयाब हुए हैं, जो अल्जाइमर्स के असर को 27 फीसदी तक कम करने की क्षमता रखती है. इस दवा का नाम है लेसानेमाब.
अपनी वैज्ञानिक प्रयोग की प्रक्रिया में डॉक्टरों ने पाया कि लेसानेमाब अल्जाइमर्स के प्रभाव और अल्जाइमर्स की स्थिति में मस्तिष्क को पहुंच रहे नुकसान को 27 फीसदी तक धीमा कर देती है.
हालांकि साथ ही इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी देखे गए हैं, जैसेकि मस्तिष्क में सूजन होना या ब्लीडिंग होना. इन सारे तथ्यों की जानकारी रिसर्च डेटा के साथ प्रकाशित की गई है.
लेसानेमाब को लेकर हुए ट्रायल की पूरी जानकारी और उसका डीटेल डेटा ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में पब्लिश हुआ है.
इस दवा को बायोजेन और आइसाय नाम की दो कंपनियों ने बनाया है. रिसर्च में इन दोनों कंपनियों द्वारा बनाई गई दवाओं को शामिल किया गया है. रिसर्च और ट्रायल की प्रक्रिया में दोनों ही तरह की दवाओं से कुछ मरीजों की मौत भी हुई.
फिर भी दवा के सक्सेस रेट को देखते हुए इसे अल्जाइमर्स के इलाज की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि की तरह देखा जा रहा है. दोनों ही मामलों में ट्रायल में शामिल मरीजों में से कुछ की मौतें भी देखी गईं. फिर भी, शोधकर्ताओं और मरीजों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस दवा को मिली कामयाबी का स्वागत किया है.
इस दवा के बारे में यूके डिमेंशिया रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक बार्ड डे स्ट्रूपर का कहना है इस दवा के क्लिनिकल लाभ सीमित होने के बावजूद लंबे समय तक इस दवा का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है. उन्होंने कहा है कि कि यह पहली इस तरह की दवा है, जो अल्जाइमर्स के मरीजों के इलाज को वास्तव में मुमकिन कर सकती है.
लेसानेमाब दवा एम्लॉयड को ही निशाना बनाती है. डे स्ट्रूपर कहते हैं कि दवा इस प्रोटीन की सफाई में कामयाब रही है और साथ ही "ताव समेत अल्जाइमर की अन्य वजहों पर फायदेमंद प्रभाव डालती है.”
मनुष्य के शरीर का मेटाबॉलिकल सिस्टम अगर लंबे समय तक गड़बड़ रहे तो धीरे-धीरे उसका प्रभाव मस्तिष्क तक भी पहुंच जाता है. जब शरीर में अल्जाइमर्स की शुरुआत होती है तो शरीर दो तरह के प्रोटीन बनाता है. इन प्रोटीन्स का नाम है एम्लॉयड बीटा और ताव. ये प्रोटीन मस्तिष्क के मैमोरी वाले हिस्से पर सबसे पहले अटैक करते हैं. वहां की कोशिकाएं सिकुड़ने लगती हैं.
रोग चरम स्थिति पर पहुंच जाने पर वह कोशिकाएं पूरी तरह खत्म भी हो सकती हैं. अल्जाइमर्स की चरम अवस्था में मनुष्य की स्मृति या मैमोरी पूरी तरह खत्म हो जाती है. इसे इस तरह समझें कि यदि आपके सामने एक सेब रखा हो तो आपको पता है कि वह सेब क्या है और उसका कैसे उपयोग किया जाता है. यानी सेब खाने की चीज है.
लेकिन अल्जाइमर्स की चरम अवस्था में रोगी यह भी भूल जाता है कि सेब खाने की चीज है. अगर आप उसके सामने सेब रखें तो वह कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं देगा. क्योंकि उस व्यक्ति की यह सहज, इनबिल्ट मैमोरी भी नष्ट हो चुकी है.
इस दवा के ट्रायल की प्रक्रिया में तीसरे और अंतिम चरण में 1,800 लोग थे. इन लोगों को दो समूहों में विभाजित किया गया. एक समूह को लेसानेमाब दवा खिलाई गई जबकि दूसरे समूह को प्लेसिबो दवा खिलाई गई. यह प्रक्रिया 18 महीने तक चली. इन 18 महीनों के दौरान दवा के जरिए यह देखने की कोशिश की गई कि लेसानेमाब और प्लेसिबो का एम्लॉयड बीटा पर क्या असर पड़ रहा था. ट्रायल में पाया गया कि प्लेसिबो के मुकाबले लेसानेमाब ज्यादा प्रभावकारी ढंग से मैमोरी सेल्स को रिपेयर करने का काम कर रही थी.
Edited by Manisha Pandey