वायु प्रदूषण हर साल 1.2 लाख नवजातों की ले रहा है जान, हर साल करीब 3.5 लाख बच्चे बन रहे हैं अस्थमा का शिकार
दिल्ली-एनसीआर की हवा कितनी खराब हो चुकी है इसका अंदाजा विशेषज्ञों के इस बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी क्षेत्र में प्रत्येक दस में आठ बच्चे सांस से जुड़ी समस्या से जूझ रहा है. मालवीय नगर स्थित रेनबो चिल्ड्रेन हास्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स डा अनामिका दुबे के अनुसार, इस मौसम में ओपीडी में आने वाले बच्चों में दस में से आठ ऐसे हैं जिन्हें सर्दी, खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत है. आम तौर पर खराब हवा के कारण छोटे बच्चों में सर्दी-खासी जैसे फ्लू के लक्षण दिखाई देते है, लेकिन बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होना एक गंभीर समस्या है. हवा में जहरीली गैसों के बढ़ जाने से नवजात और बच्चों के फेफड़ों पर असर डाल रहे हैं. आज-कल सांस संबंधी समस्या आम हो गई है, कोविड महामारी के बाद सांस से जुडी समस्याओं पर विशेषज ध्यान देने की ज़रूरत है.
पर्यावरण में प्रदूषण इस स्तर बढ़ चूका है कि अजन्मे बच्चे भी अब इसका शिकार हो रहे हैं. दुनिया में ये अभी आए भी नहीं हैं, पर दुनिया का ज़हर इनके अन्दर आ चूका है. कई स्टडीज में ये बात पुख्ता हुई है कि गर्भ में पल रहे शिशु पर भी प्रदूषण का असर पड़ता है. अब वैज्ञानिकों को पहली बार 3 महीने के भ्रूण शरीर में वायु प्रदूषण के कण मिले हैं. गर्भ में पल रहे शिशु के लिवर, फेफड़े और मस्तिष्क में नैनो पार्टिकल्स पाए गए हैं. ये इस बात का सबूत है कि प्रदूषण मां की सांस से होते हुए प्लेसेंटा को पार कर शिशु के शरीर में प्रवेश कर सकता है. स्कॉटलैंड के एबरडीन विश्वविद्यालय और हैसेल्ट विश्वविद्यालय, बेल्जियम के रिसर्च में ये बात सामने आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रेगनेंसी के पहले 3 महीने में वायु प्रदूषण के कण प्लेसेंटा को पार कर शिशु के शरीर में पहुंच सकते हैं. इस स्टडी को अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में पब्लिश किया गया है. ये नतीजे पूरी दुनिया के लिए गंभीरता का विषय है. खासतौस से भारत जैसे देशों में जहां वायु प्रदूषण का स्तर हर साल ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी में पहुंच ही जाता है.जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में पब्लिश एक रिसर्च में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में हर साल 349,681 महिलाएं वायु प्रदूषण के कारण मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं.
एनर्जी पालिसी इंस्टीटयूट ऐट द सेंटर ऑफ शिकागो (EPIC) के अनुसार उत्तरी भारत में प्रदूषण का असर पूरी दुनिया से 10 गुणा ज्यादा होता है.
वायु प्रदूषण से हर साल करीब 3.5 लाख बच्चे अस्थमा का शिकार बन रहे हैं.
हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट में प्रकाशित आंकड़ों की मानें तो भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण हर साल 1.2 लाख नवजातों की जान ले रहा है.
साल 2020 में प्रदूषण से 54 हज़ार प्रीमैच्योर डेथ अकेले सिर्फ दिल्ली में हुई है. वहीँ 2019 में पुरे भारत में 17 लाख प्रदूषण के कारण मौत हुई.
वहीँ 413 बच्चों पर कंडक्ट किए गए हेल्थ सर्वे पर नज़र डालें तो पाएंगे कि 75.4 प्रतिशत ने सांस लेने में दिक्कत महसूस किया, 24.2 प्रतिशत ने आंखों में जलन की शिकायत की, 22.3 प्रतिशत ने बहती नाक और 20.9 प्रतिशत बच्चों ने कफ की शिकायत की.
ये बच्चे 14-17 उम्र के हैं.