इस 21 साल के सरपंच ने अपने गाँव को कोरोना से कुछ ऐसे जीत दिलाई कि अब सभी कर रहे हैं तारीफ
महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर स्थित घाटणे गाँव ने कोरोना संक्रमण की घातक दूसरी लहर के बीच कुछ ऐसा कर दिखाया है कि इसे एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। करीब 15 सौ की आबादी वाले इस गाँव ने कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का मुक़ाबला एकदम युद्ध स्तर पर किया है।
"महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर स्थित घाटणे गाँव ने कोरोना संक्रमण की घातक दूसरी लहर के बीच कुछ ऐसा कर दिखाया है कि इसे एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। करीब 15 सौ की आबादी वाले इस गाँव ने कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का मुक़ाबला एकदम युद्ध स्तर पर किया है।"
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के आते ही देश भर में स्वास्थ्य सेवाएँ चरमराती हुई सी नज़र आने लगीं। शहरों में बेहताशा बढ़ते नए कोरोना मामलों के बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड की कमी, इलाज के लिए बेहद जरूरी दवाओं की किल्लत और यहाँ तक कि शमशान घाट में भी लोगों को कोविड से मरे अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतज़ार करने की नौबत आ गई।
इस सब के बीच यह माना गया कि कोरोना संक्रमण के ग्रामीण इलाकों में दस्तक देने के साथ ही हालात और भी अधिक बेकाबू हो सकते हैं, हालांकि आधिकारिक आंकड़ों में ऐसा कुछ नज़र नहीं आया। इसी बीच कई गांवों से ऐसी खबरें भी सामने आईं जब गाँव के लोगों ने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सराहनीय कदम उठाए। ऐसे ही एक 21 साल के सरपंच की चर्चा आज हर तरफ हो रही है।
कोरोना से दो कदम आगे
महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर स्थित घाटणे गाँव ने कोरोना संक्रमण की घातक दूसरी लहर के बीच कुछ ऐसा कर दिखाया है कि इसे एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। करीब 15 सौ की आबादी वाले इस गाँव ने कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का मुक़ाबला एकदम युद्ध स्तर पर किया है।
गाँव को इस मुहिम में आगे खड़ा करने का सबसे अधिक श्रेय गाँव के 21 साल के सरपंच ऋतुराज देशमुख को जाता है। NCP पार्टी से ताल्लुक रखने वाले ऋतुराज ने रसायन विज्ञान में स्नातक किया है और फिलहाल LLB की पढ़ाई कर रहे हैं।
जब दूसरी लहर ने दी दस्तक
जब कोरोना महामारी की पहली लहर ने देश में अपना कहर बरपाया तब किसी तरह घाटणे गाँव के लोग खुद को बचाने में सफल हो गए, लेकिन दूसरी लहर के आगमन के साथ ही गाँव के एक घर में दो लोग कोरोना पॉज़िटिव आ गए और इन दोनों की ही अप्रैल महीने में मौत हो गई। इन दो मौतों के बाद गाँव में डर का माहौल सा बन गया और इस दौरान लोग सहम गए।
ऋतुराज के भाई आकाश ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि इसके बाद लोगों ने अपने खेतों में ही रहना शुरू कर दिया। संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरपंच ऋतुराज ने गाँव में ही एक टीम का गठन किया और ‘बी पॉज़िटिव, अपने गाँव को रखो कोरोना नेगेटिव’ नाम से एक कैम्पेन शुरू किया।
इस दौरान सरपंच ने घर-घर जाकर लोगों से बात करते हुए उन्हे कोरोना के प्रति जागरूक करना शुरू किया और इसी के साथ ग्रामीणों के भीतर से कोरोना को लेकर बना भय भी कम होना शुरू हुआ।
कैसे किया ये सब?
ऋतुराज ने अपने गाँव को बचाने के लिए एक पाँच सूत्रीय कार्यक्रम तैयार कर उसे लागू किया। इसके तहत गाँव में संभावित कोरोना मरीज को ढूंढना, संक्रमण होने के साथ मरीज तक इलाज पहुंचाना, जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन की व्यवस्था करना और मरीज का तापमान चेक करना, कोविड नियमों का पालन सुनिश्चित कराना और इसी के साथ वैक्सीनेशन का काम तेज करना शामिल है।
इस काम को करने के लिए 4 आशा वर्कर की भी मदद ली गई। अभियान के तहत लोगों के घरों में एक-एक कोरोना किट उपलब्ध कराई गई, जिसमें मास्क, साबुन और सैनेटाइजर आदि शामिल है। मालूम हो कि गाँव में 50 हज़ार रुपये की ये कोरोना किट अब तक बांटी जा चुकी हैं। गाँव में संक्रमण को फैलने से रोका जा सके इसके लिए एंटीजेन टेस्ट की भी सुविधा उपलब्ध है।
इस सब के साथ ही गाँव में फिलहाल दो वैक्सीनेशन सेंटर भी उपलब्ध हैं। सरपंच की मानें तो गाँव में 45 वर्ष से अधिक उम्र वाले 70 प्रतिशत लोगों को कम से कम पहला डोज़ लगाया जा चुका है। ऋतुराज अपने गाँव वालों को वैक्सीन के प्रति भी लगातार जागरूक कर रहे हैं और यही कारण है कि गाँव के लोग वैक्सीनेशन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
Edited by Ranjana Tripathi