अमेरिकन रिसर्च: सिर्फ खाने के लिए भी डेट पर जाती हैं कुछ लड़कियां
आजकल की कुछ शहरी लड़कियों की इस हरकत को अजीब-ओ-गरीब आदत कहें या 'फूडी कॉल' कि वे लंबा रिश्ता बनाने अथवा रोमांस के लिए युवाओं से नहीं जुड़तीं, बल्कि सिर्फ मुफ्त में खाना खाने की ललक में डेट पर जाती हैं। ये बात हम नहीं कह रहे, बल्कि एक ताज़ा रिसर्च में सामने आई है।
एक देशज शब्द है- 'चटोरापन', जिसे अक्सर एक वाहियात किस्म के शौक, लिप्सा में भी शुमार कर लिया जाता है। इस शब्द को याद रखें तो आगे की पूरी दास्तान बड़ी मजेदारी से समझ में आ सकती है। दरअसल, 'चटोरापन' एक प्रकार का नशा है, जिसे अन्य व्यसनों की तरह स्वभाव का अंग बना लिया जाता है और वह अपनी ललक बुझाने के लिए बार-बार मचलता रहता है।
दरअसल, अपनी आंखों में पल्स वाली हरी नमकीन चमक लाकर चटोरेपन की इच्छा रखने वाली लड़कियां सामने वाले लड़कों को बेवकूफ समझती या बनाती हैं। इन दिनों यह शब्द (चटोरापन), जिसे नए जमाने की शब्दावली में 'फूडी कॉल' कहा जाने लगा है, एक बड़ी मजेदार रिसर्च में पूरी तरह खुल गया है। इसे नई पीढ़ी की जीवनशैली कहें या स्टाइल, अमेरिकी शोधार्थियों की इस ताजा स्टडी में बताया गया है कि आजकल हर चार में से एक लड़की लंबा रिश्ता बनाने अथवा रोमांस के लिए युवाओं की ओर नहीं लपकती है, बल्कि सिर्फ अपने चटोरेपन (मुफ्त में खाने की ललक) के कारण वह डेट पर जाती है। चटोरेपन की आदत से मजबूर ऐसी लड़कियां किसी ऐसे व्यक्ति को डेट करती है, जिससे वह प्यार का इरादा न रखकर केवल मुफ्त के खाने का लुफ्त उठाना पसंद करती हैं। इस पर रिसर्च के दौरान शोधार्थियों ने पाया कि उस वक़्त आठ सौ बीस महिलाओं और लड़कियों में से लगभग तैंतीस फीसदी 'फूडी कॉल' (चटोरेपन) में व्यस्त मिलीं।
कैलिफोर्निया की अजुसा पैसिफिक यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, मेरेड की शोध स्टडी में बताया गया है कि जिन महिलाओं ने व्यक्तित्व लक्षणों (साइकोपैथी, मैकियावेलिज्म, नार्सिसिज्म) के 'डार्क ट्रायड' पर उच्च स्कोर किया है, साथ ही पारंपरिक भूमिका में विश्वास व्यक्त किया है, वे एक 'फूडी कॉल' में संलग्न पाई गई हैं और उन्हें यह स्वीकार्य लगता है। 'सोशल साइकोलॉजिकल एंड पर्सनैलिटी साइंस' में प्रकाशित इस शोध-लेख में एजुसा पैसिफिक यूनिवर्सिटी के ब्रायन कॉलिसन ने लिखा है- 'कई डार्क लक्षणों को रोमांटिक संबंधों में भ्रामक और शोषणकारी व्यवहार से जोड़ा गया है, जिनमें वन नाइट स्टैंड, झूठे...सुख का अनुभव कराना या अनचाही... तस्वीरें भेजना शामिल हैं।'
पहले रिसर्च में 820 महिलाओं को शामिल किया गया। उन्होंने उन सवालों की एक श्रृंखला का जवाब दिया, जो उनके व्यक्तित्व लक्षणों, लिंग भूमिकाओं के बारे में विश्वास और उनके 'फूड कॉल' के इतिहास को मापते हैं। उनसे यह भी पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि 'फूडली कॉल' सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। पहले समूह की 23 फीसद महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया कि वह 'फूड कॉल' में शामिल हैं।
उन आठ सौ बीस महिलाओं, लड़कियों में से कई एक का ये भी जवाब मिला कि वे ऐसा (फूडी कॉल) अधिकांश नहीं, कभी-कभार या शायद ही कभी ऐसा करती हैं। दरअसल, फूडी कॉल उन्हे कत्तई स्वीकार्य नहीं। जो महिलाएं फूडी कॉल में व्यस्त पाई गईं, उनका मानना था कि यह आदत ही उन्हे सर्वाधिक स्वीकार्य है। एक और दूसरे अध्ययन में 357 विषमलैंगिक महिलाओं, लड़कियों के प्रश्नों के समान सेट का विश्लेषण किया गया तो रिसर्च में पता चला कि उनमें से 33 प्रतिशत उस वक्त 'फूडली कॉल' में संलिप्त थीं।
इससे शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मॉडर्न लाइफस्टाइल में, खासकर लड़कियां प्यार जैसे रिश्ते में भी आत्म-केंद्रित होती जा रही हैं। रिश्ते की असली तासीर हवा होती जा रही है। हर चौथी लड़की किसी भी कीमत में मुफ्त का खाना खाने की आदती हो चली है, भले उसे लाइफ एन्जॉय करने, सामने वाले को साधने के लिए रोमेंटिक नाज़-नखरों का भी सहारा क्यों न लेना पड़े। उनका इरादा कत्तई सामने वाले से कोई स्थायी रिश्ता बनाना अथवा रोमांस करना नहीं होता है।
इसी तरह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के इंटर मेडिसिन विभाग में वरिष्ठ सलाहकार डॉ़ रंदीप गुलेरिया का कहना रहा है कि अस्पताल में पहुंचने वाले लगभग 70 प्रतिशत टीन्स में एक साथ ड्रिंक्स, खाने-पीने और टिश्यु पेपर शेयर करने की वजह से संक्रमण होता है। कॉलेज जाने वाले ज्यादातर लड़के-लड़कियां फ्रेंडशिप को तमाम औपचारिकताओं से अलग मानते हैं और खुद को बिंदास दिखाने के चक्कर में सर्दी-जुकाम, खांसी होने पर भी कोई एहतियात नहीं बरतते, नतीजा वे संक्रमण की गिरफ्त में आ जाते हैं। सर्दी, खांसी, गले में दर्द और वायरल संक्रमण होने पर भी एक दूसरे से खाने-पीने की चीजें शेयर करते हैं। ग्रुप में छींकने और खांसने पर मुंह पर रुमाल नहीं रखते और वायरल होने पर भी कॉलेज में एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर घूमते हैं, नतीजा यह कि एक तो वह खुद जल्दी ठीक नहीं होते, साथ ही दोस्तों में भी संक्रमण फैलाते हैं।
चटोरेपन का आलम ये है कि औरों की तो बात छोड़िए, विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर तक को फिटनेस के साथ-साथ अपना चटोरापन भी पसंद है लेकिन उन्हें अपनी मां के हाथों बना राजमा-चावल ही सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगता है। चोटी की अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स ने अपने नाम कई रिकॉर्ड्स और ख़िताब किए हैं लेकिन उनके नाम के साथ एक और उपलब्धि जुड़ी है। एक बार उन्होंने चटोरेपन में कुत्ते का खाना भी चख लिया, ये बात अलग है कि इस उपलब्धि के बाद बजाए खुशी के नाचने के वह जा पहुंची डॉक्टर के पास। दरअसल वह जब एक होटल में ठहरी हुई थीं, उनकी नज़र डॉग फुड के मेनू पर पड़ी तो बस उनका दिल मचल उठा। फिर बाद में, उन्होंने सफाई दी कि क्यों उन्हे डॉग फूड इतना अच्छा लगा और उनकी लार टपकने लगी तो उन्होंने फ़ौरन उसे चख़ लिया। तकलीफदेह ये रहा कि वो चटोरापन उनको भारी पड़ गया था।