अब संसद में खाना होगा 'महंगा', मिलने वाली सब्सिडी खत्म करने को लेकर सभी पार्टियां राजी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सभी दलों के सांसदों ने मिलकर तय किया है कि संसद के खाने पर मिलने वाली सब्सिडी बंद हो। यानी कि अब सांसदों को भी लागत मूल्य पर ही खाना मिलेगा। इस संबंध में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के सुझाव पर बिजनेस एडवाइजरी कमेटी ने चर्चा की थी।
जब भी महंगाई की बात होती थी, बहस आखिर में जाकर संसद की कैंटीन पर थम जाती है जहां पर सांसदों को सब्सिडी वाला खाना मिलता है। इस सब्सिडी की वजह से संसद की कैंटीन में सांसदों को बाजार दर से काफी सस्ता और अच्छा खाना मिलता है। इसके लिए सब्सिडी के तौर पर 17 करोड़ रुपये सालाना खर्च होते हैं।
अब खबरें आ रही हैं कि खाने पर मिलने वाली सब्सिडी बंद होगी। सभी पार्टियां इस बात पर एकमत हैं कि सांसदों को मिलने वाले खाने पर दी जाने वाली सब्सिडी बंद हो।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सभी दलों के सांसदों ने मिलकर तय किया है कि संसद के खाने पर मिलने वाली सब्सिडी बंद हो। यानी कि अब सांसदों को भी लागत मूल्य पर ही खाना मिलेगा। इस संबंध में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के सुझाव पर बिजनेस एडवाइजरी कमेटी ने चर्चा की थी।
कई बार मांग उठी थी कि आम जनता के टैक्स के पैसों से सांसदों को सस्ता खाना मिलता है। जहां पूरा देश महंगाई से जूझ रहा है, वहीं सांसद बहुत कम पैसों में खाना खा रहे हैं। हाल ही में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्रों ने भी इस तर्क को सबके सामने रखा था।
कई बार कैंटीन के खाने की रेट लिस्ट भी वायरल हुई है जिसे लेकर काफी शोर शराबा भी हुआ। बता दें, पिछली लोकसभा में कैंटीन में मिलने वाले खाने की कीमत बढ़ाई गई थी ताकि सब्सिडी का खर्च कम हो। इस बार उसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। न्यूज 18 में छपी एक खबर के मुताबिक, साल 2012-13 से लेकर साल 2016-17 तक संसद कैटीनों को सब्सिडी के तौर पर कुल 73 करोड़ से अधिक रुपये दिए गए।
पिछले पांच सालों की बात की जाए तो साल 2012-13 में सांसदों के सस्ते भोजन पर 12 करोड़ रुपये, साल 2013-14 में 14 करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर जारी किए गए। इसी तरह साल 2014-15, 2015-16, 2016-17 में हर साल 15 करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर दिए गए थे।