पूरे देश में महिलाओं को मिले ‘पेड पीरियड लीव’, सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका
पीरियड लीव को लेकर एक देशव्यापी नियम हो, जो सभी सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों पर समान रूप से लागू हो.
महिलाओं के लिए पीरियड के दौरान पेड लीव की मांग को लेकर पिछले एक दशक से आवाज उठ रही है. दुनिया भर में कई देशों और कंपनियों ने इसे लेकर कुछ नियम भी बनाए हैं. लेकिन यह पहली बार हुआ है कि भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) में मेन्ट्रुअल लीव को लेकर एक पीआईएच (जनहित याचिका) दायर की गई है.
यह याचिका दायर करने वाले हैं वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी. जनहित याचिका में कहा गया है कि महिलाओं को प्रेग्नेंसी के समय पर तो वैतनिक अवकाश मिलता है, लेकिन पीरियड्स को लेकर इस तरह का कोई नियम नहीं है. कुछ कंपनियां स्वैच्छिक रूप से एक या दो दिन का अवकाश देती हैं. साथ ही भारत के कुछ राज्यों में भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को दो दिन की पेड लीव मिलती है. लेकिन इसे लेकर कोई देशव्यापी एक नियम नहीं है, जो कि होना चाहिए.
याचिका में विस्तार से बताया गया है कि एक प्राकृतिक अवस्था होने के साथ-साथ पीरियड्स काफी तकलीफदेह अनुभव भी होता है. याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की एक स्टडी का हवाला दिया गया है. यह स्टडी कहती है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को उतना दर्द होता है, जितना कि हार्ट अटैक पड़ने पर होता है.
पीरियड्स के समय भी दफ्तर आने की मजबूरी का प्रभाव महिलाओं के काम और उनकी प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है. याचिका में कहा गया है कि पीरियड लीव कोई लक्जरी नहीं, बल्कि महिलाओं की बहुत नैसर्गिक जरूरत है, जिसे लेकर हमारे समाज में आमतौर पर कोई संवेदनशीलता नहीं है.
याचिका में उन कंपनियों का भी जिक्र है, जहां महिला कर्मचारियों को पेड पीरियड लीव देने का प्रावधान है, जैसेकि ज़ोमैटो (Zomoto), इविपनन (Ivipanan), स्विगी (Swiggy), बायजू (Byju), मैग्टर (Magzter), मातृभूमि (Matrubhumi), फ्लाईमाईबिज़ (FlyMyBiz), एआरसी (ARC) और गूज़ूप. ये वो कंपनियां हैं, जहां महिला कर्मचारियों को एक से दो दिन की पेड पीरियड लीव मिलती है.
याचिका में उन देशों का भी जिक्र है, जहां महिलाओं को पेड पीरियड लीव दिए जाने का कानून है. जैसेकि वेल्स, चीन, यूके, जापान, इंडोनेशिया, ताइवान, स्पेन, जांबिया और साउथ कोरिया.
याचिका में भारत में इस पर हुई बहसों और लिए गए फैसलों को भी जगह दी गई है. इसमें कहा गया है कि 2018 में शशि थरूर ने ‘विमेन सेक्सुअल रीप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रूअल राइट्स बिल’ पेश किया था, जिसमें महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगहों पर मुफ्त में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई थी, लेकिन उसमें पीरियड लीव का कोई जिक्र नहीं था.
सिविल सर्विसेज में महिलाओं के लिए पेड पीरियड लीव के सवाल पर एक केंद्रीय मंत्री ने लोकसभा में कहा था कि ‘सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972’ में महिलाओं के लिए पीरियड लीव का कोई प्रावधान नहीं है.
इस याचिका के जरिए मांग की गई है कि पीरियड लीव को लेकर एक देशव्यापी नियम होना चाहिए, जो सभी राज्यों की सभी सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों पर समान रूप से लागू होता हो. यह फैसला राज्यों और कंपनियों के विवेक पर छोड़ देना दरअसल महिलाओं के साथ भेदभाव है.
Edited by Manisha Pandey