सबरीमला मामले पर जल्द बैठक करेगा त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड

सबरीमाला मंदिर
सबरीमला भगवान अय्यप्पा मंदिर का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह जल्द ही बैठक कर पहाड़ पर बने मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और भक्तों की श्रद्धा की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।
यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि उच्चतम न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ 13 जनवरी से 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के साथ साथ मुस्लिम एवं पारसी महिलाओं के साथ कथित रूप से भेदभाव के विवादास्पद मुद्दों वाले मुद्दों पर सुनवाई करने जा रही है।
टीडीबी के अध्यक्ष एन वासु ने संवाददाताओं से कहा कि बोर्ड धर्मस्थल को हिंसा का स्थान बनने नहीं देना चाहता।
वासु ने कहा,
“हम भक्तों के हितों, सबरीमाला फैसले के संबंध में कानूनी मुद्दों और धर्मस्थल की वर्तमान स्थिति पर विचार करेंगे। हम चाहते हैं कि इस तीर्थस्थल में शांति और सद्भाव बना रहे।”
इस बीच, राज्य के देवस्वाम मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने कहा कि वामपंथी सरकार उच्चतम न्यायालय में सबरीमाला पर धर्म पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद महिलाओं के प्रवेश पर फैसला लिए जाने के अपने पहले के रुख को दोहराएगी।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 2007 और 2016 में दाखिल किए गए हलफनामों में भी यही रुख व्यक्त किया है और जरूरत पड़ने पर इसे दोहराया जाएगा।
उन्होंने कहा,
‘‘सबरीमला पर राज्य सरकार हमेशा से एक ही पक्ष में थी जिसका उल्लेख 2007 के हलफनामे में किया गया था। हमने 2016 के हलफनामे में भी यही दोहराया है। अगर जरूरत पड़ी तो हम उच्चतम न्यायलय में भी इसे दोहराएंगे।”
सुरेंद्रन ने कहा कि चूंकि यह मामला अनुष्ठानों और परंपराओं से संबंधित है इसलिए हिंदू धर्म के विशेषज्ञों से मिलकर विचार करने के बाद महिलाओं के प्रवेश पर फैसला किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने छह जनवरी को एक नोटिस जारी कर भारतीय यंग लायर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका को सूचीबद्ध करने की सूचना दी थी। इस याचिका में 28 सितंबर, 2018 को उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के फैसले की समीक्षा करने की मांग की गई थी।
पिछले साल 14 नवंबर को पांच सदस्यीय न्यायधीशों की पीठ ने 3:2बहुमत निर्णय के साथ 28 सितंबर, 2018 के फैसले की समीक्षा सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दी थी
हालांकि यह कहा गया था कि महिलाओं और लड़कियों के पूजा स्थल में प्रवेश पर रोक जैसी धार्मिक प्रथाओं की संवैधानिक वैधता के बारे में बहस सबरीमला मामले तक ही सीमित नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों और 'दरगाह' में महिलाओं के प्रवेश और गैर-पारसी पुरुषों से शादी करने वाली पारसी महिलाओं को पवित्र अग्नि वाले स्थानों पर जाने को लेकर प्रतिबंध है।






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