कहीं सेल्फी बन रही मौत की वजह तो कहीं कमाई का जरिया भी
हमारा देश एक ओर तो मस्ती में सेल्फी लेने के दौरान होने वाली मौतों के मामले में पूरे विश्व में अव्वल आ चुका है, दूसरी ओर कुछ लोग इंस्टाग्राम पर सेल्फी पोस्ट कर उससे पैसे भी कमा रहे हैं। कहीं बंदर की सेल्फी का मामला अदालत तक पहुंच गया, सेल्फी से होने वाली आय बंदर के नाम हो गई तो कर्नाटक में एक किसान अपने सूरजमुखी के खेत में सेल्फी लेने का सूचना पट लगाकर कमाई करने लगा है।
सेल्फी की दीवानगी ऐसी हो गई है कि रेस्तरां, शॉपिंग मॉल, बाजार, पिकनिक स्पॉट ही नहीं, राह चलते बस अड्डा, रेलवे स्टेशन कहीं भी युवाओं को इस नशे में डूबते देखा जा सकता है। जर्मनी के कोलोन शहर में तो ऐसा म्यूजियम खुल गया है, जहां लोग मस्ती में सिर्फ सेल्फी लेने आते हैं। आज कुछ लोग इंस्टाग्राम पर सेल्फी पोस्ट कर उससे पैसे भी कमा रहे हैं। ये लोग अपने साथ प्रोफेशनल कैमरामैन रखते हैं, जो सैकड़ों तस्वीरें लेता रहता है और फिर उनमें से अच्छी तस्वीरों को छांट कर इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया जाता है। कितनी दिलचस्प बात है कि जब एक बंदर ने सेल्फी ली तो झमेला पैदा हो गया कि उस पर किसका अधिकार है? मामला संघीय अपीली अदालत में जाने से पहले इंडोनेशिया के अटॉर्नी तक पहुंच गया। अटॉर्नी ने फैसला दे दिया कि उस सेल्फी का कॉपीराइट बंदर के पास है।
प्राणी-अधिकार समूह के वकीलों के मुताबिक, वह तस्वीर लेने के लिए जिस फोटोग्राफर के कैमरे का इस्तेमाल हुआ था, उसने भविष्य में तस्वीरों से मिलने वाले राजस्व का पचीस प्रतिशत इंडोनेशिया में बंदरों की विशेष प्रजाति के संरक्षण का काम करने वाली धर्मार्थ संस्थाओं को देने की घोषणा कर दी। उससे पहले अदालत का कहना था कि कॉपीराइट का अधिकार वन्य प्राणियों को नहीं मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि उससे पहले पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स ने कुछ वर्ष पूर्व विशेष प्रजाति के नारूटो नाम के बंदर की ओर से वह मुकदमा दायर किया था। बंदर की ओर से ही पेटा ने तस्वीरों का वित्तीय नियंत्रण देने की मांग की थी। वह सेल्फी तस्वीरें वर्ष 2011 में इंडोनेशिया के सुलावेसी में खींची गई थीं।
भले ही तकनीक के विकास से सेल्फी एक संक्रामक रोग की तरह फैल चुकी हो, इन दिनों सेल्फी शौक ही नहीं, कमाई का जरिया भी बन चुका है। लोग सेल्फी लेने के लिए रोज नए-नए तरीके आजमाते हैं। कर्नाटक के एक किसान ने इसी सेल्फी क्रेज के चलते खूब कमाई की है। कम बारिश के कारण पैदावार कम हुई तो उसने पैसा कमाने की सेल्फी वाली तरकीब खोज निकाली। उसने केरल और ऊटी के (एनएच-766) हाइवे पर पड़ने वाले अपने खेत में सूरजमुखी रोप दी। फूलों से भरा खेत वहां से गुजरने वालों को सुहाना लगने लगा। उधर से गुजरने वाले पर्यटक केरल और ऊटी जाते समय उस खेत के पास रुकते और सूरजमुखी के फूलों के साथ सेल्फी लेने लगे। इस बीच किसान ने खेत के बाहर एक बोर्ड भी लगा दिया कि 'एक सेल्फी के 20 रुपए' देने पड़ेंगे। इससे उसकी रोजाना अच्छी-खासी कमाई होने लगी। बाद में तो वहां पर्यटकों की इतनी चहल-पहल बढ़ी कि नारियल और आइसक्रीम वालों भी वहां दुकानें लगाने लगे।
ताजा विश्व-घटनाक्रम पर नजर डालें तो सेल्फी का एक दुखद पहलू भी है। सेल्फी लेने के क्रेज में 2011 से अब तक पूरी दुनिया में हुई 137 घटनाओं में 259 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें पहला नंबर भारत का है, जहां 159 की मौतें हो चुकी हैं। स्मार्टफोन, इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता, पहुंच और इंस्टाग्राम समेत दूसरे सोशल साइट्स पर अपनी अनूठी सेल्फी डालने की ललक युवाओं को खतरे के मुंह में धकेल रही है। हमारे देश में सेल्फी लेने के दौरान एक बार तो सात लोगों की सामूहिक मौत भी हो चुकी है। ऐसी ज्यादातर मौतें पहाड़ी से गिरने, पानी में डूबने या ट्रेन से कटने की वजह से हुई हैं। अब तो 'सेफ्टी' नाम से एक ऐप भी विकसित हो चुका है, जो लोगों को खतरों से आगाह करता है।
एम्स, नई दिल्ली और आईआईटी, कानपुर के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत समेत पूरे विश्व में सेल्फी से होने वाली घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। वर्ष 2011 में भारत में सेल्फी लेने के दौरान तीन, 2013 में दो, लेकिन 2017 में यह संख्या 93, और पिछले साल 105 तक पहुंच गई। अकेले पश्चिम बंगाल में ही दस युवक सेल्फी लेते हुए अपनी जान गंवा बैठे। जर्नल ऑफ फेमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में छपी उक्त अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी घटनाओं में आधे से अधिक यानी पचास प्रतिशत से ज्यादा युवाओं की मौतें हुई हैं। मृतकों में से 72.5 प्रतिशत पुरुष रहे हैं।
फिर भी ये नशा कुछ इस तरह युवाओं सिर चढ़कर बोल रहा है कि झाड़ू लगाएं तो सेल्फी, दीया जलाए तो सेल्फी, वोट डालें तो सेल्फी, पटाखे फोड़ें तो सेल्फी। उसके लिए किसी भी काम को करने का मतलब हो गया है सेल्फी खींचना। आज सेल्फी ने लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ रखे हैं। रामराज में बाघ और बकरी के एक ही घाट पर पानी पीने की कहावत की तरह आज सेल्फी युग में खुद की जिंदगियां भी शर्म से पानी-पानी हुई जा रही हैं। इस बदहवासी को रोकने के सारे तरह के इंतजाम, प्रतिबंध नाकाफी साबित हो चुके हैं। उधर, नोट कमाने वालों ने सेल्फी से भी आमदनी का जरिया खोज लिया है।
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