इंदौर का वो 'चाय वाला' जिसके आज दुनियाभर में 180 कैफ़े हैं

मम्मी-पापा से 6 लाख रुपये लेकर शुरू किया था छोटा सा बिजनेस.

इंदौर का वो 'चाय वाला' जिसके आज दुनियाभर में 180 कैफ़े हैं

Saturday June 25, 2022,

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इंडिया में साल 2021 में चाय की खपत 100 करोड़ किलो थी. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारा देश चाय के बिना नहीं चल सकता. लेकिन चाय पीने का कल्चर भी समय के साथ बदला है. पहले कॉफ़ी बड़े-बड़े कैफ़े में पी जाती थी और चाय ठेलों-टपरियों पर. मगर अब चाय भी महंगे-महंगे कैफ़ेज़ में बिकने लगी है.

10 साल पहले, उस वक़्त 22 की उम्र के एक लड़के को ये कल्चर बदलता हुआ दिखता है और वो सोचता है कि कॉफ़ी के मशहूर कैफ़े की तरह चाय का कैफ़े क्यों न खोला जाए.

शशांक शर्मा बताते हैं:

"मैं 'कैफ़े कॉफ़ी डे' से प्रेरित हुआ. बिज़नेस नेटवर्किंग हो, डेटिंग हो या फिर कोई भी मीटिंग हो, लोग कैफ़े कॉफ़ी डे की तरफ भागा करते थे. ग्रेजुएशन ख़त्म करने के बाद मैं बिज़नेस आइडियाज के बारे में सोचा करता था. एक दिन मैं चाय की एक टपरी पर अपने दोस्त के साथ कैफ़े कॉफ़ी डे की सफलता पर चर्चा कर रहा था. और तब मैंने सोचा, मैं भी टी कैफ़े खोल सकता हूं!"

2012 में पहले ही एक चाय कैफ़े चल रहा था. लेकिन वो सिर्फ बड़े शहरों में मौजूद था. तो शशांक ने सोचा कि क्यों न अपने ही शहर इंदौर से शुरुआत की जाए.

मगर असल चुनौती तो घर पर ही थी. मम्मी और पापा, दोनों ही सरकारी नौकरी में थे और उन्हें ये समझाना कि उनका बेटा एक चाय की दुकान खोलना चाहता है, आसान नहीं था. फिर शशांक ने एक ऐसी 'दुकान' कैसे खोल ली जिसकी UAE, कैनेडा, यूके, नेपाल और बांग्लादेश में मिलाकर कुल 180 ब्रांच हैं?

छोटे शहर से ग्लोबल होने का सफ़र

शशांक ने उन 6 लाख रुपयों से बिज़नस शुरू किया था जो उन्होंने अपने मम्मी-पापा से लिए थे. हाथ में थोड़े से पैसे और बिजनेस इंडस्ट्री का कोई अनुभव नहीं. पर शशांक को सिर्फ एक बात का भरोसा था कि इंडियन लोग चाय ज़रूर पीते हैं. ऐसी जगहें कम ही थीं जहां आराम से घंटों बैठकर चाय पी जा सके.

लेकिन डर इस बात का भी था कि कोई उनके कैफ़े क्यों आएगा, जब वो कुछ ख़ास नहीं दे रहे.

"मैं मुंबई या दिल्ली में नहीं था, जहां लोग घूमने-फिरने आते हैं और कैफ़े में बैठना पसंद करते हैं. इंदौर में कोई किसी से कहे कि चाय पीने के लिए बाहर कैफ़े तक चला जाए तो लोग उस व्यक्ति को मूर्ख समझेंगे. तो मैंने सोचा कि कैफ़े के लुक और ऐम्बिएंस पर काम किया जाए और मेन्यू में ऐसी चीजें जोड़ी जाएं जो लोगों को आकर्षित करें.

शशांक ने 20 रुपये की चाय से लेकर 250 और 500 रुपये की चाय तक रखना शुरू किया जिससे हर तरह के कस्टमर आ सकें.

"मेरे को पता था लोग पागल बोलेंगे. पर भले ही फालतू बोलने के लिए आएं, मगर कम से कम आएं तो सही, यही मेरा लक्ष्य था" शशांक YourStory को बताते हैं.

शशांक का ये प्लान काम कर गया. उस वक़्त सोशल मीडिया इतना ताकतवर नहीं था. फिर भी एक से दूसरे व्यक्ति तक बात फैली और सब देखने आते कि The Tea Factory नाम का ये कैफ़े आखिर क्या परोस रहा है.

"शुरू के कुछ महीने मुश्किल थे लेकिन फिर चीजें सँभलने लग गईं. वक़्त के साथ कई चुनौतियों से लड़ना सीखता गया और एक साल के अंदर मैं एक्सपैंड करने को तैयार था."

2014 में इंदौर में ही पहली फ्रैंचाइज़ी खोली गई. फिर 2017 में द टी फैक्ट्री जोधपुर पहुंचा. 2017 में नेपाल में एक फ्रैंचाइज़ी खुली जिसके साथ द टी फैक्ट्री ने देश के बाहर कदम रखा.

द टी फैक्ट्री फ्रैंचाइज़ी मॉडल पर ही काम करता है. फ़िलहाल इंडिया के साथ साथ यूके, कैनेडा, यूएई मिलाकर द टी फैक्ट्री के 180 आउटलेट हैं. शशांक के मुताबिक़ हर आउटलेट महीने के लगभग 1.5 लाख कप चाय बेचता है.

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

फ्रैंचाइज़ी मॉडल के चलते द टी फैक्ट्री उन वेंडर्स को भी सपोर्ट कर पा रहा है जो अलग-अलग राज्यों में उन्हें दूध, बन, ब्रेड वगैरह सप्लाई करते हैं.

द टी फैक्ट्री और एक्सपैंड करने की राह पर है. शशांक के मुताबिक़, उनका फोकस इंडिया में फ़िलहाल गुजरात और विदेश में यूके और यूएई पर है.

द टी फैक्ट्री एक सेंट्रल किचन बनाने की कोशिश में है. जिससे बिना शेफ के हर आउटलेट में एक ही टेस्ट की चाय मिल सके.

"हालांकि हमारे आउटलेट में ट्रेन्ड शेफ़ काम सकते हैं और हमारा पूरा नेटवर्क कुल 800 शेफ्स का है. फिर भी हम चाहते हैं कि टेक्नोलॉजी की मदद से चाय का एक ऐसा मिक्स तैयार कर सकें जिससे दुनिया के हर आउटलेट में हमारी चाय का एक ही स्वाद हो. ऐसा नहीं है कि हम शेफ़ की ज़रुरत को ही ख़त्म करना चाहते हैं. हम बस ये चाहते हैं कि हर आउटलेट में एक ही स्वाद हो.

आगे की राह

कॉफ़ी और चाय के रिटेल में इंडिया दुनिया का 10वां सबसे तेज़ी से बढ़ता मार्केट है. चाय और कॉफ़ी रिटेल चेन्स की कुल वैल्यू साल 2018 में 2,570 करोड़ रुपये आंकी गई थी. ये डाटा मार्केट रिसर्चर यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल ने जारी किया था.

इंडिया के सबसे बड़े चाय कैफ़े 'चाय पॉइंट' और 'चायोस' हैं. द टी फैक्ट्री का मानना है कि वो इनके मुकाबले छोटे खिलाड़ी हैं और 'चाय सुट्टा बार' या 'MBA चायवाला' जैसे आउटलेट्स के साथ कॉम्पटीशन में है.

शशांक का मानना है कि उनकी सफलता लोगों की वजह से है. उन्होंने प्रचार में कोई पैसे नहीं लगाए. वे कहते हैं कि वो उन लोगों की मदद करने को तैयार हैं जो अपना बिजनेस तो शुरू करना चाहते हैं लेकिन उनके पास फंड्स नहीं हैं. उनके मुताबिक वो एक मिडिल क्लास लोगों की फ्रैंचाइज़ी हैं. आखिर में शशांक कहते हैं:

"मैं मिडिल क्लास से हूं. मिडिल क्लास के सपने होते हैं और सबके सपने पूरे होने चाहिए."  


Edited by Prateeksha Pandey