दिल्ली के इस स्टार्टअप ने तैयार किए ऐसे डिवाइस, जो बताएंगे आपके खाने में केमिकल्स हैं या नहीं
फ़ूड ऐंड ऐग्रीकल्चर ऑर्गनाइज़ेशन (एफ़एओ) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हर साल 275 मिलिटन टन खाद्य पदार्थों का उत्पादन होता है। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि जिस देश में इतनी पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थों का उद्पादन हो रहा हो, वहां पर 190.7 मिलियिन लोग भूखे पेट सोने को मजबूर क्यों हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि हर साल भारत में 92,000 करोड़ की क़ीमत के 67 मिलियन टन खाद्य पदार्थ फ़सलों की कटाई समेत अन्य कई प्रकार की प्रक्रियाओं में, पैकेजिंग में, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में और अन्य कई वजहों से बर्बाद हो जाते हैं। यह आंकड़ा क्लीन इंडिया जर्नल के हवाले से है।
दिल्ली के एक सोशल एंटरप्राइज़ आरएएवी टेकलैब्स का उद्देश्य है कि सप्लाई चेन की विभिन्न प्रक्रियाओं के अंतर्गत क्वॉलिटी ऐनालिसिस डिवाइसों का उपयोग करते हुए खाद्य पदार्थों की बर्बादी की रोकथाम की जाए। ये डिवाइसेज़, न्यूट्रीशन और अडल्ट्रेशन का पता लगा सकती हैं।
आरएएवी टेकलैब्स के को-फ़ाउंडर राहुल कुमार ने योर स्टोरी को बताया, "हम दो डिवाइस विकसित कर चुके हैं, जो न्यूट्रीशन वैल्यू आदि से संबंधित रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराते हैं, जिसकी बदौलत भंडारण, ट्रांसपोर्ट और कटाई की प्रक्रियाओं को इस तरह से योजनाबद्ध किया जा सकता है कि फ़सल या खाद्य पदार्थों की बर्बादी न हो।
कैसे काम करती हैं ये डिवाइस?
राजस्थान की एनआईआईटी यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र राहुल कुमार, वार्श्ने राज, अभिनंदन भार्गव और ऐलफ़ॉन्स धास ऐंटनी 2018 में आरएएवी टेकलैब्स की शुरुआत करने के लिए साथ आए और उन्होंने मिलकर एक फ़्रूट ऐनलाइज़र और मिल्क ऐनलाइज़र डिवाइस डिज़ाइन और विकसित कीं, जिनकी मदद से कई मानकों के आधार पर कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को परखा जा सके।
फ़्रूट ऐनलाइज़र एक पोर्टेबल और हाथ में पकड़ा जा सकने वाला डिवाइस है, जिसे किसी भी फल या सब्ज़ी के संपर्क में लाने पर, उसके केमिकल कॉम्पोज़िशन और उससे होने वाले नुकसान को मापा जा सकता है। इस डिवाइस की मदद से फ़्रूट ऐनलाइज़र की न्यूट्रीशनल वैल्यू का पता लगाया जा सकता है। आरएएवी के को-फ़ाउंडर वार्श्ने राज बताते हैं कि यह डिवाइस बताती है कि फल या सब्ज़ी को ग्राहकों तक पहुंचाने की अंतिम समय-सीमा क्या हो सकती है।
फ़ूड सेफ़्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक़, भारत में बिकने वाले 68 प्रतिशत दूध या डेयरी उत्पाद मिलावटी होते हैं। इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए आरएएवी टेकलैब्स ने मिल्क ऐनलाइज़र डिवाइस विकसित की है,जो दूध में मौजूद अशुद्धियों या मिलावटी पदार्थों जैसे के कि पानी, मिल्क पाउडर, यूरिया, डिटर्जेंट्स या पेंट आदि की मात्रा का पता लगाती है। साथ ही, यह डिवाइस दूध या डेयरी उत्पादों में मौजूद फ़ैट, प्रोटीन और एसएनएफ़ कॉन्टेन्ट का पता लगाती है।
इन सभी टेस्ट्स के परिणाम यूज़र (उपभोक्ता) के स्मार्टफ़ोन पर देखे जा सकते हैं, जिनसे ये डिवाइसेज़ कनेक्ट होते हैं। इसके लिए उपभोक्ता को अपने फ़ोन पर स्पेक्टर नाम का ऐप डाउनलोड करना होता है।
कंपनी के को-फ़ाउंडर राहुल बताते हैं कि खाद्य सामग्री के हिसाब से ऐनलाइज़र के इस्तेमाल की लागत 20 पैसे से 1 रुपए तक आती है। उन्होंने जानकारी दी कि उनकी टीम अभी प्राइसिंग मॉडल को किफ़ायती बनाने की कोशिश में लगी हुई है।
कंपनी द्वारा विकसित किए गए उपकरण विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन और मॉल्यूक्यूल्स के साथ उनके मेल का अध्ययन करते हैं। इसके अलावा, रियल टाइम डेटा जेनरेट करने के लिए ये उपकरण आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एलएल) टूल्स से भी लैस हैं। आरएएवी टेकलैब्स को इस तकनीक के प्रोविशनल पेटेन्ट मिल चुका है। फ़िलहाल आरएएवी टेकलैब्स कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कई बिज़नेस वेंचर्स के साथ मिलकर पायलट प्रोजेक्ट्स चला रहा है और इसे यूज़र्स की अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
आरएएवी के को-फ़ाउंडर राहुल ने बताया कि उनके एंटरप्राइज़ को अभी तक साइंस ऐंड टेक्नॉलजी डिपार्टमेंट से निधि प्रयास, गुजरात सरकारी की ओर से प्रोडक्ट डिवेलपमेंट और यस बैंक की ओर से यस स्केल ग्रांट्स मिल चुके हैं। उन्होंने जानकारी दी कि एक सोशल इनक्यूबेशन एंटरप्राइज़ 'विलग्रो' और एक इंटरनैशनल सेंटर फ़ॉर ऑन्त्रप्रन्योरशिप ऐंड टेक्नॉलजी 'आईक्रिएट' की ओर से भी सहयोग मिल रहा है।
आरएएवी टेकलैब्स अपने उपकरणों की मैनुफ़ैक्चरिंग के लिए जल्द से जल्द एक यूनिट की शुरुआत करने की योजना बना रहा है। एंटरप्राइज़ का लक्ष्य है कि जुलाई 2019 तक आम, अंगूर और चीकू के ऐनालिसिस के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले उपकरणों का कमर्शल लॉन्च किया जाए।
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