हजारों किसानों का मददगार बना खरगोन के पूर्णाशंकर का देसी बीज बैंक
"खरगोन (म.प्र.) के पूर्णाशंकर बार्चे ने दस साल तक जंगलों, पहाड़ियों की खाक छानकर स्वदेसी बीज बैंक बनाया है। खुद जैविक खाद, कीटनाशक तैयार कर रहे हैं। लोगों को घरेलू किचन गॉर्डन में खुद सब्ज़ियाँ उगाने को प्रेरित-प्रशिक्षित कर रहे हैं, ताकि उनकी पत्नी की तरह किसी और की कैंसरस खाद्य से असमय मृत्यु न हो।"
प्राकृतिक खेती और देसी बीजों के संरक्षण में पारंगत खरगोन (म.प्र.) में मेनगांव के कृषि विस्तार अधिकारी पूर्णाशंकर बार्चे को राज्यसरकार ने विगत 14 अगस्त को भोपाल में जैव विविधता बोर्ड ने सम्मानित किया है। बार्चे अब तक खरगोन जिले में 5000 किसानों को देसी बीज से खेती करने के लिए प्रेरित कर चुके हैं। बार्चे प्राकृतिक एवं शून्य बजट खेती के लिए अभियान चलाकर जिले के अलावा प्रदेश के अन्य इलाकों के किसानों को जागरूक कर रहे हैं। वह देसी बीज के इस्तेमाल और खेती में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए किसानों को लगातार प्रेरित कर रहे हैं।
बार्चे बताते हैं कि हाईब्रिड खाद्य फसल से उत्पन्न हो रही बीमारियों को देखते हुए देसी बीजों के संरक्षण पर पर्यावरणविद् वंदना शिवा और अमोल पालेकर से प्रेरित होकर वह पिछले 10 वर्षों से इस मोरचे पर काम कर रहे हैं। जब उनकी पत्नी वर्ष 2008 में केमिकलाइज अन्न के सेवन से कैंसर हो जाने के कारण चल बसी थीं, तभी उन्होंने ठान लिया था कि अब तो इस रासायनिक खेती की जड़ मिटाकर ही दम लूंगा। उसके बाद से वह रासायनिक दैत्य से निपटने के लिए काफी समय तक इस पर रिसर्च भी करते रहे। आखिरकार, देसी बीजों के प्रचार-प्रसार के रूप में उन्हे अपने संघर्ष का एक कारगर हथियार मिल गया।
खरीफ और रबी फसलों को देसी विधि से संरक्षित करने के लिए सत्तावन वर्षीय बार्चे बताते हैं कि वह अब तक देसी मलकापुरी, स्यालू मिर्च, लाल-सफेद अमाड़ी, मसूर, रागी (मिलेट), बाजरा, खपली, ग्वाल कठिया, शुगर फ्री बंशी गेहूं, हल की मूंगफली, काली-लाल अरहर, पीला-हरा मूंग, सूरज कपास, लाल-पीला-सफेद ज्वार, धानी, साठी, पीला मक्का सहित 50 से ज्यादा वैरायटी की फसलों के देसी बीज आदिवासी किसानों तक पहुंचा चुके हैं। किसानों को देसी बीज मुहैया कराने के साथ ही वह बुवाई के बाद उनके खेतों का समय समय पर निरीक्षण भी करने पहुंच जाते हैं।
अब उनके देसी सब्जी-फसल-फल आदि उत्पाद वहां के किसान खरगोन जिले के बाजारों के अलावा खंडवा, रतलाम, अहमदाबाद, वड़ोदरा, इंदौर तक सप्लाई कर रहे हैं। बार्चे ने बताते हैं कि उनको सबसे पहले वर्ष 2010 में एक वर्कशॉप में अमोल पालेकर से देसी बीजों से जैविक खेती की प्रेरणा मिली थी।
उसके बाद से ही वह नौकरी के साथ साथ जैविक खेती के मिशन में भी जुट गए। इसमें खुद योग्यता हासिल कर लेने के बाद वह दूर दूर तक जाकर किसानों के मास्टर ट्रेनर बन गए। इसके साथ ही वह देसी बीजों की तलाश में वनों के आदिवासी किसानों और पहाड़ियों की खाक छानते रहे।
इको-फ्रेंडली लाइफस्टाइल में जी रहे बार्चे बताते हैं कि कितनी मशक्कत से उन्होंने आदिवासी किसानों से मूंगफली, भिंडी, गिलकी, उड़द, अमाड़ी, मक्का, गेंहूँ, चावल, ज्वार, अरहर, बाजरा आदि के देसी बीज जुटाकर अपना स्वदेसी बीज बैंक समृद्ध किया है। उसी सिलसिले में वह एक बार अपने जिले के किसानों के साथ वर्धा (महाराष्ट्र) के किसानों की जैविक खेती के तरीके भी सीखने पहुंच गए।
उसके बाद से वह लगातार मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब तक अपने प्रशिक्षण वर्कशॉप, कृषि प्रदर्शनियों के दौरान किसानों को देसी बीज पहुंचाते आ रहे हैं। वह लोगों को घरेलू किचन गॉर्डन में खुद की सब्ज़ियाँ उगाने के लिए भी प्रोत्साहित करते रहते हैं। वह खुद तरह-तरह की जैविक खाद, कीटनाशक आदि तैयार कर रहे हैं।
बार्चे बताते हैं कि वह किसानों को फ्री में देसी बीज उपलब्ध कराते हैं। अपने वर्कशॉप शामिल होने वाले किसानों से भी वह किसी तरह का शुल्क नहीं लेते हैं। वह किसानों को जैविक प्रशिक्षण का सर्टिफिकेट भी मुहैया कराते हैं। उनका कहना है कि अब दिल्ली, पुणे, बंगलुरु आदि की तरह मध्य प्रदेश (इंदौर) में भी 'जैविक सेतु' नाम से ऑर्गेनिक मार्किट का आगाज हो चुका है। उन्होंने खरगोन में भी एक जैविक स्टॉल खुलवा दिया है।