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टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा को है इस बात का मलाल

टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा को है इस बात का मलाल

Tuesday April 21, 2020 , 2 min Read

मुंबई, टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने सोमवार को कहा कि एक वास्तुकार के तौर पर अपने काम को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाने का उन्हें मलाल है। हालांकि टाटा दो दशक से भी अधिक समय तक देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा समूह के प्रमुख रहे हैं।


श्री रतन नवल टाटा, Chairman Emeritus of Tata Sons and Chairman of the Tata Trusts

रतन टाटा, चैयरमेन, टाटा ग्रुप


‘भविष्य के डिजाइन और निर्माण’ विषय पर कॉर्पगिनी के ऑनलाइन संगोष्ठी (वेबिनार) में टाटा ने कहा,

‘‘मैं हमेशा से वास्तुकार बनना चाहता था क्योंकि यह मानवता की गहरी भावना से जोड़ता है। मेरी उस क्षेत्र में बहुत रुचि थी क्योंकि वास्तुशिल्प से मुझे प्रेरणा मिलती है। लेकिन मेरे पिता मुझे एक इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसलिए मैंने दो साल इंजीनियरिंग की।’’

उन्होंने कहा,

‘‘उन दो सालों में मुझे समझ आ गया कि मुझे वास्तुकार ही बनना है, क्योंकि मैं बस वही करना चाहता था।’’

टाटा ने कॉरनैल विश्वविद्यालय से 1959 में वास्तुशिल्प में डिग्री ली। उसके बाद भारत लौटकर पारिवारिक कारोबार संभालने से पहले उन्होंने लॉस एंजिलिस में एक वास्तुकार के कार्यालय में भी कुछ वक्त काम किया।


उन्होंने कहा,

‘‘हालांकि बाद में मैं पूरी जिंदगी वास्तुशिल्प से दूर रही रहा। मुझे वास्तुकार नहीं बन पाने का दुख कभी नहीं रहा, मलाल तो इस बात का है कि मैं ज्यादा समय तक उस काम को जारी नहीं रख सका।’’

संगोष्ठी के दौरान टाटा ने डेवलपरों और वास्तुकारों के शहरों में मौजूद झुग्गी-झोपड़ियों को ‘अवशेष’ की तरह इस्तेमाल करने पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के तेजी से फैलने की एक बड़ी वजह इन झुग्गी झोपड़ी कॉलोनियों को भी बताया।


उन्होंने कहा,

‘‘सस्ते आवास और झुग्गियों का उन्मूलन आश्चर्यजनक रूप से दो परस्पर विरोधी मुद्दे हैं। हम लोगों को अनुपयुक्त हालातों में रहने के लिए भेजकर झुग्गियों को हटाना चाहते हैं। यह जगह भी शहर से 20-30 मील दूर होती हैं और अपने स्थान से उखाड़ दिए गए उन लोगों के पास कोई काम भी नहीं होता है।’’

उन्होंने कहा कि लोग महंगे आवास वहां बनाते हैं, जहां कभी झुग्गियां होती थीं। झुग्गी झोपड़ियां विकास के अवशेष की तरह हैं।



Edited by रविकांत पारीक