वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
20,000 से अधिक गायों को बचाने वाली पद्मश्री पुरस्कार विजेता सुदेवी माताजी
जर्मन मूल की फ्रेडराइक ब्रूनिंग, जिन्हें लोकप्रिय रूप से सुदेवी माताजी के नाम से जाना जाता है, ने एक घायल बछड़े की दुर्दशा देखी, जिसके कारण उन्होंने यूपी में राधा सुरभि गौशाला खोली, जिसमें 2,500 से अधिक गायें हैं।
लगभग 40 साल पहले, 19 वर्षीय फ्राइडेरिक ब्रूनिंग एक पर्यटक के रूप में और जीवन के उद्देश्य की तलाश में जर्मनी से भारत आई थी। अपनी समृद्ध संस्कृति, आध्यात्मिक विरासत और परंपराओं से प्रेरित होकर, वह कहती हैं कि उन्हें भगवत गीता में उनके उत्तर मिले। लेकिन एक गुरु के मार्गदर्शन के लिए, उन्होंने अपनी खोज जारी रखी।
सुदेवी YourStory को बताती हैं, "उस बछड़े को बदहवास वहाँ फेंक दिया गया था। उसका अगला पैर टूट गया था और तेज हड्डी के सिरे से एक बड़ा घाव बन गया था। कीड़े घाव में चले गए थे और उसके आधे शरीर में फैल गए थे। उन्होंने शरीर के दूसरे हिस्सों को खाना शुरू कर दिया था।"
इस भयानक दृश्य को देखने के बाद, उन्होंने बछड़े को अपनी शरण में ले लिया और उसकी देखभाल की। और इस तरह से गायों और बछड़ों को छोड़ कर घायल, और बीमार लोगों की मदद की यात्रा शुरू की। जानवरों की संख्या बढ़ने के साथ, सुदेवी गाँव के बाहरी इलाके में एक बड़े स्थान पर स्थानांतरित हो गई।
वर्तमान में, गौशाला में लगभग 2,500 गाय हैं। वह कहती हैं कि स्वस्थ गायों को मथुरा के पास बरसाना में एक और बड़ी गौशाला में भेजा जाता है। उन्हें हर दिन औसतन 5 और 15 नए मामले मिलते हैं, और पिछले 15 वर्षों में 20,000 से अधिक गायों को बचाया है।
केरल की 'वॉकिंग लाइब्रेरियन' केपी राधामणी
64 वर्षीय केपी राधामणी वायनाड स्थित प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी की पहल के तहत किताबें बांटने के लिए हर दिन पैदल चलकर चार किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करती हैं। वर्तमान में उनके साथ 102 लाइब्रेरी मेंबर हैं, जिनमें से 94 महिलाएं हैं।
राधामणी केरल के वायनाड के मोथकारा के वेल्लमुंडा में स्थित प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी में काम करती हैं, ने जब से 'वॉकिंग लाइब्रेरीयन' की कमान संभाली है, तब से यह उनकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा है।
राधामणी ने केरल राज्य पुस्तकालय परिषद की पहल के बाद महिलाओं को अपने घरों में किताबें ले जाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए काम करना शुरू किया और उनका ध्यान आकर्षित किया। यह वनिता वायना पद्धति (महिलाओं के पढ़ने के लिए चलाई गई परियोजना) के तहत शुरू हुई, जो वनिता वायोजाना पुष्टका विथानरा पद्धाती (महिला और बुजुर्गों के लिए पुस्तक वितरण परियोजना) में विकसित हुई है।
वॉयस ऑफ रूरल इंडिया के लिए अपनी कहानी लिखते हुए, राधामणी कहती हैं, "पहले तो इन महिलाओं को किताबें पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वे केवल मंगलम और मनोरमा जैसी स्थानीय पत्रिकाएँ ही पढ़ती थीं, लेकिन आखिरकार जब उन्होंने राधामणी द्वारा दिए गए उपन्यासों में दिलचस्पी लेनी शुरू की, अधिक से अधिक लोगों ने उन्हें पढ़ने के लिए उनसे उधार लेना शुरू कर दिया। अब वह उनसे यह भी सुझाव लेती है कि किताबों के रूप में वे क्या रखें जो एक बार पढ़ने के बाद वे उधार लें।"
राधामणी - जिन्होंने केवल दसवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है - खुद एक बहुत पढ़ी-लिखी पाठक बन गई हैं। वह हरिता कर्म सेना के साथ रीसाइक्लिंग के लिए प्लास्टिक इकट्ठा करने का काम भी करती है। वह केरल के गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम कुदुम्बश्री का हिस्सा थीं।
आदिवासी महिलाओं का जीवन संवारने वाली पडाला भूदेवी
पडाला भूदेवी शुरुआत से ही पढ़ाई में तेज़ थी, लेकिन उनकी शादी बेहद कम उम्र में कर दी गई। जब पडाला भूदेवी की शादी हुई तब वह महज 11 साल की ही थीं। इसके बाद से ही पडाला भूदेवी के लिए परेशानियाँ शुरू हो गईं। मायके से ससुराल पहुँचने के साथ ही पडाला भूदेवी को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ गई।
शादी के महज कुछ सालों बाद ही पडाला भूदेवी को एक बेटी हुई, इसके बाद उन्हे दूसरी बेटी हुई और फिर तीसरी बेटी हुई। तीन बेटियों के जन्म के साथ ही ससुराल वालों का रवैया उनके प्रति रूखा होता चला गया। यहाँ से पडाला देवी के जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ और उन्हे ससुराल में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा।
पडाला भूदेवी के लिए अब उनके ससुराल में रहना बदतर होता जा रहा था और अंततः उन्होने एक बड़ा फैसला लिया और साल 2000 में वह अपनी तीनों बेटियों के साथ अपने पिता के पास वापस आ गईं। मायके आने के बाद पडाला भूदेवी ने श्रीकाकुलम में आदिवासी परिवार की महिलाओं के बदतर हालात देखे और यहीं से उन्होने इस दिशा में काम करने का मन बनाया।
पडाला भूदेवी ने सबसे पहले आदिवासी महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों के बारे में गहन अध्ययन किया और इसके बाद उन्होने आदिवासी समुदाय की महिलाओं को इस बारे में जागरूक करना शुरू कर दिया। यह सब देख पडाला भूदेवी के पिता ने उन्हे चिन्ना आदिवासी विकास सोसाइटी की जिम्मेदारी भी थमा दी। पडाला भूदेवी के पिता द्वारा साल 1996 में शुरू किए गए इस खास संगठन का काम आदिवासी समुदाय की मदद करना था।
आज पडाला भूदेवी को आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में एक रोल मॉडल की तरह देखा जाता है। गौरतलब है कि पडाला भूदेवी खुद भी आंध्र प्रदेश के सबरा आदिवासी समूह से आती हैं। मालूम हो कि पडाला भूदेवी के प्रयासों की तारीफ खुद पीएम मोदी भी कर चुके हैं।
भूमि पेडनेकर ने लॉन्च किया अपना ब्रांड
Dolce Vee, सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली कंपनी साल्टस्काउट का एक नया 'प्री-ओन्ड' या 'प्री-लव्ड' ब्रांड है। एक्ट्रैस भूमि पेडनेकर ने इसे इस साल Earth Day (पृथ्वी दिवस - 22 अप्रैल) के मौके पर इस ब्रांड और इसके खास एनवायरमेंटल फूटप्रिंट कैलकुलेटर को लॉन्च किया है।
डोल्से वी के साथ अपने जुड़ाव पर बात करते हुए, भूमि कहती हैं, "मैं अपनी अलमारी के कुछ कपड़ों को नया जीवन देने में बहुत खुश हूं। साथ ही इस कैलकुलेटर को लॉन्च करने में भी, ताकि आप प्री-लव्ड कपड़े चुनने के अपने फैसला का वास्तविक प्रभाव देख सकें।"
क्लाइमेट पर काम करने वाली सभी योद्धाओं को आह्वान करते वह कहती हैं, “जलवायु योद्धाओं, अब यह आपकी बारी है। यदि आपके पास अच्छी स्थिति के कपड़े और सामान हैं, जिन्हें आप साझा करना चाहते हैं, तो आप उन्हें एक चैरिटी सेल्स के लिए भी दान कर सकते हैं। आपको बस इंस्टाग्राम पर डोल्से वी को मैसेज करना है, फिर आप पूरे भारत में जहां भी होंगे, हम वहां पहुंच कर आपके घर से पिकअप कर सकते हैं। इसके साथ ही आपको अपने योगदान से पानी और कार्बन की हुई बचत का अनुमान भी दिया जाएगा। ”
आपको बता दें कि 2018 में कॉर्नेल में अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई पूरी कर रही कोमल हीरानंदानी ने 2018 में निरंतरता और सतत प्रयासों को आगे लाए जाने की जरूरत महसूस की। अगले तीन सालों में उन्होंने अपने पति सिद्धार्थ शाह के साथ मिलकर 'SaltScout' नाम की एक कंपनी बनाई, जिसका मकसद लोगों के लिए पर्यावरण के अनुकूल चीजों को अधिक सुलभ और आकर्षक बनाना है।
आज तीन साल बाद, इस 'अर्थ डे' पर SaltScout एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर के साथ मिलकर 'डोल्से वी' (Dolce Vee) नाम से एक ब्रांड लॉन्च किया है। यह ब्रांड 'प्री-ओन्ड' या इनकी टीम के कहने के मुताबिक 'प्री-लव्ड' फैशन पर फोकस करती है। प्री-ओन्ड उन चीजों को कहते हैं, जो नई नहीं है या जिनका एक बार इस्तेमाल हो चुका हैं। आमतौर पर लोग इन्हें सेकेंड-हैंड चीजें भी कहते हैं।
मुंबई के 'ऑक्सिजन हीरो'
कोरोना वायरस महामारी की इस दूसरी लहर में पूरे भारत में जैसे हाहाकार मचा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तमाम शहरों में लोग ऑक्सिजन और जरूरी दवाओं के लिए भी परेशान देखे जा रहे हैं, इस बीच देश भर में बड़ी तादाद में सामान्य लोग जरूरतमंदों की मदद के लिए सामने भी आए हैं।
ऐसे ही एक शख्स हैं मुंबई के शाहनवाज शेख जिन्होने कोरोना मरीजों की मदद के लिए अपनी लाखों रुपये कीमत वाली एसयूवी बेच दी है।
मुंबई के मलाड इलाके में रहने वाले शाहनवाज शेख महज एक फोन कॉल के बाद कोरोना मरीजों तक फौरन ऑक्सिजन सिलेन्डर पहुंचा रहे हैं। मालूम हो कि शाहनवाज शेख के इस नेकदिल काम के कारण ही लोग उन्हे ‘ऑक्सिजन मैन’ और ‘ऑक्सिजन हीरो’ जैसे नामों से संबोधित कर रहे है।
कोरोना मरीजों की मदद के लिए जब शाहनवाज शेख को आर्थिक जरूरत महसूस हुई तब उन्होने अपनी फोर्ड एंडेवर एसयूवी बेंच दी। अपनी एसयूवी बेचने के बाद शाहनवाज शेख को जो पैसे मिले उससे उन्होने 160 ऑक्सिजन सिलेन्डर खरीद लिए और इसी के साथ उन्होने लोगों की मदद करना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि शाहनवाज शेख ने अपनी एसयूवी कार को बेचकर 22 लाख रुपये जुटाये थे। शाहनवाज़ शेख ने 40 सिलेन्डर खुद भी किराए पर लिए हुए हैं और इस तरह उनके पास फिलहाल 200 सिलेन्डर हैं।
अपनी टीम के साथ मिलकर कोरोना प्रभावित लोगों की सेवा में लगे शाहनवाज़ शेख अब तक 4 हज़ार से अधिक कोरोना मरीजों तक ऑक्सिजन सिलेन्डर पहुंचाने का काम कर चुके हैं।