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वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!

यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।

इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।

बैडमिंटन खेलने के लिए छोड़ दिया स्कूल

गुजरात की तसनीम मीर वर्ल्ड नंबर 1 अंडर-19 बैडमिंटन चैंपियन बनने वाली पहली भारतीय हैं। वह शीर्ष स्थान हासिल करने, बैडमिंटन खेलने के लिए स्कूल छोड़ने और सीनियर सर्किट के लिए तैयार होने के बारे में YourStory से बात करती है।

तसनीम मीर

हाल ही में, तसनीम मीर की सनसनीखेज दौड़ ने तीन जूनियर अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन टूर्नामेंट में खिताब हासिल किया और उन्हें जूनियर विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान दिलाया। तसनीम शीर्ष स्थान हासिल करने वाली पहली भारतीय बन गई हैं।

गुजरात के मेहसाणा जिले की 16 वर्षीया ने कभी नहीं सोचा था कि जब से उन्होंने जूनियर सर्किट में खेलना शुरू किया है, तब से वह दो साल के भीतर इतनी ऊंचाई तक पहुंच सकती है।

तसनीम YourStory से बात करते हुए बताती है, “शीर्ष स्थान प्राप्त करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मुझ पर एक बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि देश की उम्मीदें मुझ पर टिकी हैं। इसने मुझे बेहतर प्रदर्शन करने, अधिक पदक जीतने और किसी दिन ओलंपिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रेरित किया है।”

उनकी राय में, उन्होंने अभी तक कुछ बड़ा हासिल नहीं किया है क्योंकि सीनियर सर्किट अधिक कठिन है। वह इस उपलब्धि को इस दिशा में "एक छोटा कदम" कहती हैं।

बैडमिंटन के साथ उभरती शटलर का कार्यकाल सात साल की उम्र में शुरू हुआ जब वह अपने पिता और कोच इरफान मीर के साथ स्टेडियम जाती थी। 11वीं कक्षा में, तसनीम अब केवल परीक्षा देने के लिए स्कूल जाती है।

“मैंने सातवीं कक्षा में स्कूल छोड़ दिया क्योंकि मेरे लिए पढ़ाई और बैडमिंटन में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था। मैं बैडमिंटन में अच्छा प्रदर्शन कर रही थी, इसलिए मैंने इसे जारी रखने का फैसला किया। मेरा स्कूल बहुत सहायक रहा है, और मैं केवल अपनी परीक्षा देने जाती हूं, ” वह कहती हैं, जब वह नियमित रूप से स्कूल जाती थीं तो वह पढ़ाई में अच्छी थीं।

'बादशाह मसाला' की कहानी

साइकिल पर मसाले बेचने से लेकर 154 करोड़ रुपये के रेवेन्यू वाली कंपनी बनने तक

बादशाह मसाला

“स्वाद सुगंध का राजा, बादशाह मसाला !!”

ऊपर दी गई ये टैगलाइन कुछ जानी पहचानी लग रही है न? हम सभी इस जिंगल विज्ञापन को सुनते हुए और टीवी विज्ञापन में दिखाई गई डिशेस पर लार टपकाते हुए बड़े हुए हैं। हाल ही में, कई इंस्टाग्राम इनफ्लूएंसर्स ने इस जिंगल विज्ञापन को अपनी तरह से इस्तेमाल किया है और 90 के दशक में रेडियो और टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले इस विज्ञापन की यादों को फिर से ताजा कर दिया। 

यह ब्रांड 1958 में अपनी स्थापना के बाद से अपने ग्राहकों का दिल जीत रहा है, लेकिन फिर भी बहुत से लोग भारत की सबसे पुरानी मसाला कंपनियों में से एक के पीछे के व्यक्ति को नहीं जानते हैं। YourStory ने मेड इन इंडिया ब्रांड की विरासत को समझने के लिए दूसरी पीढ़ी के उद्यमी और बादशाह मसाला के प्रबंध निदेशक हेमंत झावेरी के साथ बातचीत की और यह समझने की कोशिश की कि वित्त वर्ष 20-21 में 154 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाली ये कंपनी समय के साथ प्रासंगिक कैसे बनी रही।

बादशाह मसाला की कहानी 1958 की है जब जवाहरलाल जमनादास झावेरी ने मुंबई में सिर्फ गरम मसाला और चाय मसाला के साथ कारोबार शुरू किया था।

हेमंत योरस्टोरी को बताते हैं, “मेरे पिता सिगरेट बेचने के लिए इस्तेमाल होने वाले टिन के डिब्बे इकट्ठा करते थे। फिर उन्हें साफ करते, उन पर लगे लेबल छुटाते, और उनमें मसाला पैक कर बेचते थे। अपनी साइकिल पर सवार होकर, वह उन्हें आस-पास के इलाकों में बेच देते थे।” मसाला जल्दी लोकप्रिय हो गया, वे कहते हैं, "एक क्वालिटी प्रोडक्ट को सफलता मिलने में देर नहीं लगती।"

10 रुपये में मरीजों का इलाज करने वाली डॉक्टर

हैदराबाद की डॉ. रोसलिन आज तेलंगाना के मेडचल मलकाजगिरी जिले के नेरडमेट में स्थित अंबेडकर भवन में एक क्लीनिक का संचालन कर वहाँ आए गरीब और जरूरतमंद मरीजों का इलाज महज 10 रुपये फीस लेकर कर रही हैं।

डॉ. रोसलिन

इस खास क्लीनिक का आयोजन करने वाले गोपाल ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि वे बीते 30 सालों से चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और अब वे महज 10 रुपये में गरीब मरीजों को इलाज उपलब्ध कराकर समाज के लिए कुछ खास करना चाहते हैं।

डॉ. रोसलिन ने बताया है कि वे जिस क्षेत्र में पैदा हुई हैं उसी इलाके में लोगों को महज 10 रुपये में इलाज उपलब्ध कराकर खुश महसूस कर रही हैं। डॉ. रोसलिन के अनुसार, वे नेरेडमेट इलाके में रहती हैं और इस आइडिया के साथ आयोजकों ने उनसे संपर्क किया था।

आयोजकों के इस प्रस्ताव के बाद डॉक्टर रोसलिन लोगों की मदद के लिए फौरन तैयार हो गईं और उन्होने क्लीनिक पर अपनी सेवाएँ देना शुरू कर दिया।

डॉक्टर ने मीडिया से के साथ मरीजों से ली जाने वाली 10 रुपये की फीस के पीछे का कारण साझा करते हुए बताया है कि आमतौर ओर मरीज चिकित्सक के क्लीनिक जाकर 200 या 300 रुपये खर्च करते हैं और कई बार चिकित्सक की फीस भरने के बाद उनके पास दवा आदि खरीदने के भी पैसे नहीं बचते हैं। अब इस क्लीनिक में कम फीस के जरिये मरीजों को जरूरी मदद मिल पा रही है।

आयोजकों ने बताया है कि अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचाने के उद्देश्य से इस पहल के विस्तार किए जाने पर भी विचार किया जा रहा है। इसी के साथ अब क्लीनिक में स्त्री रोग, त्वचा संबंधी रोग और ईएनटी जैसी सुविधाएं भी जोड़ने पर विचार किया जा रहा है।

कंटेंट क्रिएटर्स को जीविका कमाने में सक्षम बना रहा है स्टार्टअप Knackit

प्लेटफॉर्म क्रिएटर्स को अन्य श्रेणियों के बीच पेंटिंग, गायन, फोटोग्राफी और डांस क्लासेस, पढ़ाने और मनोरंजक सामग्री बनाने में सक्षम बनाता है।

Knackit

जब भारत में बाइटडांस के टिकटॉक पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो घरेलू स्टार्टअप शॉर्ट-फॉर्म वीडियो स्पेस में इस शून्य का लाभ उठाने के इरादे से ऐसी ऐप लॉन्च करने के लिए दौड़ पड़े। कंप्यूटर इंजीनियर प्रांजल कुमार, जो पहले ओरेकल में काम करते थे, उन्होने भी एक शॉर्ट-वीडियो ऐप लॉन्च किया, लेकिन यह एक अलग मकसद के साथ था।

प्रांजल ने YourStory से बात करते हुए बताया है कि, "मैंने हमेशा ऐसे लोगों को पाया जो कलात्मक व्यवसायों में अन्य व्यवसायों के लोगों की तुलना में बहुत कम पैसा कमाते थे। मैंने यह पहली बार तब देखा था जब मैं कॉलेज आया था। मैं गिटार बजाता था और मुझे लगता था कि मैं इसमें बहुत अच्छा हूं, लेकिन वास्तविक दुनिया ने मुझे दिखाया कि एक कलाकार के रूप में जीवनयापन करना कितना मुश्किल था, यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ लोगों के लिए भी।”

इसने उन्हें कंटेन्ट क्रिएटर्स के लिए प्लेटफॉर्म बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया, जहां वे अपने कंटेन्ट को मॉनेटाइज़ कर सकें।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में पंजीकृत और सह-संस्थापक और सीईओ प्रांजल और उनकी संस्थापक टीम परेश पाटिल, नीरव प्रजापति और देवंगी छतबर द्वारा शुरू किया गया यह स्टार्टअप नैकिट कंटेन्ट क्रिएटर्स को अपने दर्शकों को उनके कंटेन्ट का एक्सेस प्राप्त करने के लिए सदस्यता शुल्क का भुगतान करने के लिए कहने की अनुमति देता है। 

वर्तमान में 258,000 मासिक सक्रिय यूजर्स के साथ मंच पर 1 लाख 64 हज़ार क्रिएटर्स हैं। उनमें से 30 हज़ार क्रिएटर्स के पास सब्सक्रिप्शन प्रोग्राम है। सदस्यता की लागत और इसकी अवधि पूरी तरह से क्रिएटर्स द्वारा तय की जाती है।

प्रांजल कहते हैं, “क्रिएटर्स पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो के लिए शुल्क ले सकते हैं या लाइव क्लास संचालित कर सकते हैं। पेंटिंग और गायन के लिए, क्रिएटर्स आमतौर पर लाइव क्लास लेते हैं। लेकिन डांस की मांग बहुत अधिक नहीं है क्योंकि कई असंगठित प्रतियोगी हैं और बहुत सारी मुफ्त सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध है।”

'स्मार्ट आर्मी कैंप' तैयार करने वाला युवा इनोवेटर

सैनिकों को ठंड में थोड़ी राहत के साथ ही पूरी सुरक्षा मिल सके इसके लिए देश के एक युवा इनोवेटर ने बड़ा ही खास कैंप तैयार किया है, जिसे ‘स्मार्ट आर्मी कैंप’ का नाम दिया गया है।

श्याम चौरसिया

मेरठ में एमआईईटी इंजीनियरिंग कॉलेज के अटल कम्युनिटी इनोवेशन सेंटर के इस इनोवेटर ने देश के सैनिकों के लिए एक स्मार्ट कैंप तैयार किया है, जो न केवल बर्फीले ऊंचाइयों पर तैनात सैनिकों को ठंड से बचाएगा, बल्कि उनसे 50 किलोमीटर तक की दूरी पर बैठे दुश्मन की हरकतों को भी भापने में सैनिकों की मदद करेगा।

इस इंजीनियरिंग छात्र का नाम श्याम चौरसिया है, जिन्होने अपने इस खास स्मार्ट आर्मी कैंप में छोटी हीटर प्लेट लगाई गई हैं। यह हीटर प्लेट सैनिकों को बेहद बर्फीले मौसम में भी कैंप के अंदर भी गर्म रखने में उनकी मदद करेगी।

सैनिक जिन परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी निभाते हैं, आमतौर पर वहाँ बिजली तो दूर सूर्य की रोशनी भी शायद ही नज़र आती है। हालांकि श्याम द्वारा विकसित किए गए इस स्मार्ट कैंप को गर्म रखने के लिए किसी भी तरह की बिजली या सौर ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी।इस स्मार्ट आर्मी कैंप को गर्म रखने के लिए इसमें एक चार्जर दिया गया है, जिसे सैनिक अपने हाथों से घुमाएंगे और इस तरह कैंप में लगी हुईं हीटर प्लेटों को गर्म किया जा सकेगा।

हालांकि श्याम ने बैकअप के तौर पर इसमें एक बैटरी भी स्थापित की है, जिसे जरूरत पड़ने पर कैंप को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्मार्ट कैंप में चार मानव रेडियो सेंसर हैं जो सैनिकों को दुश्मन के आने की जानकारी देने में मदद करेंगे। ये सेंसर कैंप के चारों ओर लैंडमाइंस की तरह लगाए गए हैं और रेडियो फ्रीक्वेंसी के जरिए ये सीधे कैंप से जुड़े होते हैं।