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अबॉर्शन को लेकर क्‍या कहता है दुनिया के तमाम देशों का कानून ?

एक बच्‍ची के साथ रेप हुआ, वो प्रेग्‍नेंट हो गई और इस पूरे मामले में 10 साल जेल की सजा सिर्फ एक व्‍यक्ति को मिली- बच्‍ची के अबॉर्शन में मदद करने वाली टीचर को. ये 50 साल पुरानी कहानी नहीं है. ये पिछले साल अप्रैल, 2021 की बात है.

अबॉर्शन को लेकर क्‍या कहता है दुनिया के तमाम देशों का कानून ?

Tuesday June 28, 2022 , 6 min Read

आज से महज 50 साल पहले तक दुनिया 99 फीसदी देशों में अबॉर्शन पर पूरी तरह प्रतिबंध था. आज दुनिया के 195 देशों में सिर्फ 20 देश ऐसे हैं, जहां हर तरह का गर्भपात गैरकानूनी और प्रतिबंधित है. अंडोरा, अंगोला, कांगो, इजिप्‍ट, हैती, हांडुरास, इराक, फिलीपींस, सेनेगल और सूरीनाम जैसे देशों में यह पूरी तरह प्रतिबंधित है.

सिर्फ 41 देश ऐसे हैं, जो गर्भपात को ‘महिलाओं के संवैधानिक अधिकार’ के रूप में परिभाषित करते हैं. जहां गर्भपात के अधिकार के साथ नियम और शर्तें नहीं हैं. रूस, स्‍पेन, स्‍वीडन, स्विटजरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आर्मेनिया, ऑस्‍ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, अजरबेजान, बेल्जियम डेनमार्क, इटली, लिथुआनिया, लक्‍जमबर्ग, नेपाल, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, रोमानिया, तुर्की और वियतनाम आदि देशों के कानून के मुताबिक यह किसी भी स्‍त्री का अधिकार है कि वह बच्‍चा पैदा करना चाहती है या नहीं. इसकी वजह कुछ भी हो सकती है. यह अपने शरीर और जीवन के बारे में चयन का उसका अधिकार है.

बाकी के सभी देशों में अबॉर्शन का अधिकार तो है, लेकिन वह स्त्रियों का संवैधानिक अधिकार और चयन का अधिकार नहीं है. उसके साथ तमाम नियम और शर्तें लागू हैं. जैसे कुछ देशों में गर्भपात की इजाजत सिर्फ तब दी जा सकती है, जब मां की जान को खतरा हो. कुछ देशों में गर्भपात के साथ महिला की सेहत और आर्थिक स्थिति जैसे शर्तें लागू हैं. कुछ देशों में रेप और इंसेस्‍ट रिश्‍तों से हुई प्रेग्‍नेंसी को टर्मिनेट करने की कानूनी अनुमति है, लेकिन सिर्फ इसलिए इजाजत नहीं है कि कोई 20 साल की लड़की अभी मां नहीं बनना चाहती.

गर्भपात को लेकर हर देश के कानून में बहुत सारी जटिलताएं और पेंच हैं. जैसेकि भारत के कानून में गर्भपात लीगल है, लेकिन उसे महिला के संवैधानिक अधिकार की तरह परिभाषित नहीं किया गया है. भारतीय कानून में गर्भपात के साथ ‘महिला के स्‍वास्‍थ्‍य एवं जीवन की सुरक्षा’ जैसी शर्त लगाई गई है.

महिलाओं की सबसे ज्‍यादा दुर्दशा उन देशों में हैं, जहां या तो गर्भपात पूरी तरह प्रतिबंधित है या सिर्फ मां की जान को खतरा होने की स्थिति में ही किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन देशों में गर्भपात में सहयोग करने वाले व्‍यक्तियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है.

और त्रासदी की कहानियां तो इतनी सारी हैं कि संसार के सब कागज चुक जाएं, लेकिन कहानियां खत्‍म न हों.

Laws around the world on abortion

सजा रेपिस्‍ट को नहीं, 13 साल की बच्‍ची का अबॉर्शन करवाने वाली टीचर को

यह रिपोर्ट अप्रैल, 2021 में न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में छपी थी. वेनेजुएला के मेरिदा शहर में रहने वाली 13 साल की एक लड़की. देश में आर्थिक संकट के चलते उस बच्‍ची का स्‍कूल छूट गया. सिंगल मदर को रोज काम पर जाना होता था और बच्‍ची घर पर अकेली रहती थी. पड़ोस में रहने वाले एक रसूखदार और स्‍थानीय बाहुबली टाइप के 35 साल के आदमी ने छह बार उस बच्‍ची के साथ बलात्‍कार किया. उसे डराया-धमकाया और कुछ कहने पर जान से मार देने की धमकी दी. बच्‍ची डर के कारण कुछ नहीं बोली.

कुछ दिन बाद मां को ये बात तब पता चली, जब बच्‍ची प्रेग्‍नेंट हो गई. ये जानने के बावजूद कि बच्‍ची के साथ क्‍या हुआ है, वो दोनों पुलिस के पास नहीं गईं. वो बहुत गरीब, कमजोर और साधनहीन थे और वो आदमी बहुत रसूख वाला. मां की सबसे बड़ी चिंता ये थी कि 13 साल की बच्‍ची को इस परेशानी से कैसे मुक्‍त किया जाए, जो उसके पेट में पल रही थी.

बच्‍ची की एक पुरानी स्‍कूल टीचर ने उसकी मदद की. मां और टीचर दोनों ने मिलकर चुपके से गैरकानूनी ढंग से बच्‍ची का अबॉर्शन कराया. बात लीक हो गई. पुलिस को पता चला. मामला कोर्ट में गया और कोर्ट ने कानून का उल्‍लंघन करने के आरोप में बच्‍ची की टीचर को दस साल कैद की सजा सुनाई.

Laws around the world on abortion

एक बच्‍ची के साथ रेप हुआ, वो प्रेग्‍नेंट हो गई और इस पूरे मामले में 10 साल जेल की सजा सिर्फ एक व्‍यक्ति को मिली- बच्‍ची के अबॉर्शन में मदद करने वाली टीचर को.

ये 50 साल पुरानी कहानी नहीं है. ये पिछले साल अप्रैल की बात है.

जब रोमानिया में गर्भपात प्रतिबंधित था

आज रोमानिया दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां गर्भपात महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है. 1989 की क्रांति के बाद उस देश में महिलाओं को यह अधिकार मिला. 2007 में रोमानियन फिल्‍ममेकर क्रिस्तियान मुनचियु ने एक फिल्‍म बनाई थी- ‘फोर मंथ्स, थ्री वीक्स एंड टू डेज,’ जो 1987 के रोमानिया में गैरकानूनी तरीके से अबॉर्शन करवाने की कोशिश कर रही दो सहेलियों की कहानी है. 80वें एकेडमी अवॉर्ड में रोमानिया की तरफ से यह फिल्‍म भेजी गई, लेकिन एकेडमी कमेटी ने इसे शामिल नहीं किया क्‍योंकि फिल्‍म अबॉर्शन के बारे में थी. मर्दों और ईसाइयों के लिए यह विवादित विषय था.

इस फिल्‍म का सिनेमाई और ऐतिहासिक महत्‍व यह है कि 2016 में जब बीबीसी ने 21वीं सदी की दुनिया की 100 महान फिल्‍मों की सूची बनाई तो इस फिल्‍म को उसमें 15वां स्‍थान मिला था.

Laws around the world on abortion

आंकड़े तो और भी हैं बताने को. रोमानियन एकादमिक एद्रियाना ग्रैदिया क मुताबिक 1989 के पहले 30 सालों में तकरीबन 10,000 रोमानियन लड़कियों ने चोरी-छिपे अबॉर्शन करवाने के कोशिश में अपनी जान गंवाई. तकरीबन 5 लाख लड़कियों ने गैरकानूनी ढंग से अबॉर्शन करवाने की कोशिश में अपनी जान खतरे में डाली.

लंबी लड़ाई के बाद मिला था औरतों को यह अधिकार

यह ज्‍यादा पुरानी बात नहीं, जब पूरी दुनिया में गर्भपात प्रतिबंधित था. गैरकानूनी ढंग से गर्भपात करवाने की सजा जेल थी. यह सेकेंड वेव फेमिनिस्‍ट मूवमेंट का वक्‍त था. फ्रांस में औरतें अबॉर्शन राइट्स के लिए लड़ रही थीं. अप्रैल, 1971 में उन औरतों ने एक मेनिफेस्‍टो तैयार किया, जिस पर 343 महिलाओं ने हस्‍ताक्षर किए. इस मेनिफेस्‍टो में महिलाओं ने अपने जीवन में गैरकानूनी ढंग से अबॉर्शन करवाने की बात स्‍वीकार की थी.

फ्रांस के लेफ्ट लिबरल अखबार ने इस खबर को छापते हुए उसकी हेडलाइन लिखी- “हू गॉट द 343 स्लट्स/बिचेज फ्रॉम द अबॉर्शन मेनिफेस्टो, प्रेग्नेंट?” मर्द चिढ़ा रहे थे. औरतों ने चिढ़ने के बजाय उस नाम को ही अपने मेनिफेस्‍टो का नाम बना लिया. इतिहास में यह डॉक्‍यूमेंट ‘मेनिफेस्टो ऑफ 343 स्लट्स’ के नाम से जाना गया.

आज जब दुनिया के 90 फीसदी से ज्‍यादा देशों में कुछ नियमों और शर्तों के साथ औरतों को यह अधिकार मिला हुआ है, हमें उस लड़ाई और यात्रा को नहीं भूलना चाहिए, जिसकी वजह से यह मुमकिन हो सका है. हमारे शरीर, स्‍वास्‍थ्‍य और जिंदगी से जुड़ा यह इतना बुनियादी अधिकार सत्‍ता में विराजे मर्दों ने हमें आसानी से थाली में सजाकर नहीं दे दिया. उसके लिए भी औरतों ने लंबी लड़ाइयां लड़ी हैं, कुर्बानियां दी हैं. वरना यूएन के डेटा तो कहता है कि आज भी पूरी दुनिया में हर साल 30,000 महिलाएं असुरक्षित तरीकों से गर्भपात कराने के चक्‍कर में अपनी जान गंवाती हैं.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बैठे जजों को इस बात की समझ और संवेदना होती तो वो इतना क्रूर फैसला क्‍यों सुनाते.