कफ सीरप पीकर मरे 18 बच्चों की मौत पर WHO की चेतावनी के क्या मायने हैं
WHO ने कहा कि भारतीय कंपनी ने स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों के मामले में बरती खतरनाक लापरवाही.
भारत की एक दवा कंपनी ने कफ सीरप बनाया, जिसे पीकर पिछले साल दिसंबर में उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत हो गई. कंपनी का नाम है मैरियन बायोटेक और यह फार्मास्युटिकल फर्म नोएडा में स्थित है.
अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट करते हुए विश्व भर में चेतावनी जारी की है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साफ शब्दों में कहा है कि मैरियन बायोटेक के उत्पाद घटिया क्वालिटी के थे और उनके निर्माण में स्वास्थ्य और सुरक्षा के मानकों के मामले में खतरनाक लापरवाही बरती गई थी.
इस हफ्ते फार्मास्युटिकल फर्म मैरियन बायोटेक का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है.
यह इस तरह की पहली और इकलौती घटना नहीं है. यह लगातार दूसरी बार है कि डब्ल्यूएचओ ने भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी को लेकर वर्ल्डवाइड एलर्ट जारी किया है. पिछले साल 5 अक्तूबर को भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हरियाणा की एक दवा कंपनी को लेकर ऐसा ही अलर्ट जारी किया था, जिसके बनाए जहरीले कफ सीरप को पीकर अफ्रीका के गैम्बिया में 66 बच्चों की मौत हो गई थी.
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उस कफ सीरप की लैब टेस्टिंग में पता चला कि उसमें एथिलिन ग्लाइकॉल (ईजी) और डायथिलिन ग्लाइकॉल (डीईजी) की मात्रा बहुत ज्यादा थी. ये दोनों ही केमिकल्स मानव शरीर के लिए जहर हैं. इनका सेवन करने से किडनी खराब हो सकती है और यहां तक कि मौत भी हो सकती है.
देखने वाली बात ये है कि दवा बनने से पहले जांच और अप्रूवल की कई प्रक्रियाओं से गुजरती है. और इस दवा में एथिलिन ग्लाइकॉल और डायथिलिन ग्लाइकॉल की बहुत ज्यादा मात्रा होने के बावजूद उसे हर स्तर पर मंजूरी मिल गई और दवा को बनाकर विदेशों में निर्यात भी किया गया. इसकी कीमत 66 बच्चों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.
इस घटना के बाद केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने विशेषज्ञों की एक टीम गठित की और हरियाणा के राज्य औषधि नियंत्रक के साथ मिलकर इस पूरी घटना की जांच की. भारत के ड्रग रेगुलेटरी बोर्ड ने अपनी जांच में दवा के नमूनों में कोई कमी नहीं पाई. सरकारी प्रयोगशाला के नजीते कह रहे थे कि उस दवा के निर्माण में किसी दिशा-निर्देश के पालन में लापरवाही नहीं की गई है.
ऐसे मामलों में सभी अपना बीच-बचाव करने की कोशिश करते ही हैं. लेकिन एक के बाद एक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की जा रही चेतावनियां और भारतीय कंपनियों के बनाई दवाओं के सेवन से हो रही मौत कोई अच्छा संकेत नहीं है. पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भी ईजी/डीईजी की मिलावट वाली खांसी की दवाई से कुछ बच्चों के मामले सामने आए हैं.
भारत की फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री कोई छोटी-मोटी इंडस्ट्री नहीं है. कुल 42 अरब डॉलर का भारतीय फार्मा उद्योग है और हमारा देश दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवाओं का उत्पादन करने वाला देश है. पिछले वित्त वर्ष 2020-21 से देश में कुल 24.6 अरब डॉलर के फार्मा उत्पादों का निर्यात किया गया.
भारत से दवाएं आयात करने वाले देशों में टॉप पर है- यूएसए, यूके, दक्षिण अफ्रीका, रूस और नाइजीरिया. अमेरिका में बिकने वाली तकरीबन 40 फीसदी जेनेरिक दवाएं और ब्रिटेन में बेची जाने वाली सभी दवाओं का एक चौथाई भारत से निर्यात होता है.
इतने बड़े दवा उद्योग में यह दो घटनाओं मामूली लापरवाही लग सकती हैं. लेकिन सच तो यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए यह हमारे लिए सोचने और अपनी फार्मा इंडस्ट्री के रगुलेशन को एक बार फिर ध्यान से देखने की जरूरत है. अगर किसी लेवल पर लूपहोल्स रह गए हैं और लापरवाही हो रही है तो उस पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है.
इतने बड़े दवा उद्योग में यह दो घटनाओं मामूली लापरवाही लग सकती हैं. लेकिन सच तो यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए यह हमारे लिए सोचने और अपनी फार्मा इंडस्ट्री के रगुलेशन को एक बार फिर ध्यान से देखने की जरूरत है. अगर किसी लेवल पर लूपहोल्स रह गए हैं और लापरवाही हो रही है तो उस पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है. इतने बड़े दवा उद्योग में यह दो घटनाओं मामूली लापरवाही लग सकती हैं. लेकिन सच तो यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए यह हमारे लिए सोचने और अपनी फार्मा इंडस्ट्री के रगुलेशन को एक बार फिर ध्यान से देखने की जरूरत है. अगर किसी लेवल पर लूपहोल्स रह गए हैं और लापरवाही हो रही है तो उस पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है.
Edited by Manisha Pandey