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स्वदेशी उत्पादों के जरिए ग्रामीण शिल्पकारों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने में जुटी अक्षया श्री

स्वदेशी उत्पादों के जरिए ग्रामीण शिल्पकारों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने में जुटी अक्षया श्री

Monday October 28, 2019 , 7 min Read

अक्षया श्री को ट्रेडिशनल हैंडीक्राफ्ट यानी परंपरागत हस्तशिल्प बचपन से ही काफी पसंद था। वह अपने परिवार के साथ अधिकतर धार्मिक यात्राओं और कभी-कभी पिता के डॉक्युमेंट्री प्रोजेक्ट्स के लिए घूमने जाती रहती थीं। वह बीते दिनों को याद करती हैं,

'मेरी मां ट्राइबल साड़ियां, बेडशीट, सामान रखने का बक्सों से लेकर और भी बहुत सी दूसरी चीजें खरीदती थीं। उस वक्त जहां मेरी उम्र की बाकी लड़कियां बॉयफ्रेंड और नए ट्रेंड के बारे में गपशप करती थीं, वहीं मैं लगातार किसी ऐसी चीज के साथ लगी रही जिसे मैंने अपने हालिया सफर में खरीदा था या उसके बारे में लोकगीतों में सुना था। मैं आदिवासियों के कपड़े और उन्हें पहनने के तरीकों पर भी गौर करती थी। वह सबकुछ काफी लुभावना होता था।'


अक्षया का हस्तशिल्प के प्रति बचपन का लगाव कई साल बाद 'शिल्पकर्मण' नाम के लाभकारी सामाजिक उद्यम में बदल गया। यह देश के ग्रामीण इलाकों में कई समूहों और शिल्पकारों के साथ मिलकर काम करता है। शिल्पकर्मण अपने कारोबार में बांस (बंबू) जैसे स्वदेशी फाइबर का इस्तेमाल करता है। इससे गरीब कारीगरों और कामगारों को रोजी-रोटी मिलने के अलावा आधुनिक फैशन के लिहाज शानदार उत्पाद भी बन जाते हैं।


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बांस से बनाई सफलता की सीढ़ी

दिल्ली में पली बढ़ीं अक्षया ने पहले बिजनेस इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद दिल्ली के ही इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड से एक्सपोर्ट मैनेजमेंट में शॉर्ट कोर्स भी किया। अक्षया बताती हैं,

'यहां तक कि मैंने बैंक पीओ एक्जाम तकरीबन क्लियर कर लिया था, लेकिन मैं अपना कोई बिजनेस शुरू करना चाहती थी। हालांकि, मुझे इसका कोई ठीक-ठाक अंदाजा नहीं था कि मुझे करना क्या है। जब मैं एक्सपोर्ट मैनेजमेंट का कोर्स कर रही थी तो मेरे पिताजी ने सलाह दी कि बांस के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशनी चाहिए। यहां से मुझे एक आइडिया मिल गया। मेरी बचपन की यादों ने आकार लेना शुरू किया और एक उद्यम में तब्दील हो गईं।'


अक्षया आगे कहती हैं,

'मैंने 2014 में ग्रेजुएशन किया और 2015 तक मैंने बांस को लेकर रिसर्च भी शुरू कर दी थी। उसी साल मैंने अपनी पहली एक्सपोर्ट एग्जिबिशन (निर्यात प्रदर्शनी) भी आयोजित की। मैंने अगस्त 2016 में अपनी कंपनी टैड उद्योग प्राइवेट लिमिटेड बनाई और मई 2017 में शिल्पकर्मण के जरिए कारोबार शुरू किया। हमने अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी 2018 में थेस्लोनिकी (Thessaloniki),ग्रीस में की थी। हमारी कंपनी ने प्रीमियम प्रोडक्ट्स की रेंज तैयार कर ली है, जो फरवरी 2020 में पेश होंगे।'

अक्षया का विचार शिल्पकर्मण के जरिए लोगों को उनकी जड़ों की ओर वापस लाने के साथ-साथ ग्रामीण शिल्प को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाना था।


उनका कहना है,

'मैं यह नहीं चाहती हूं कि लोग शिल्पकर्मण के उत्पादों को ईको-फ्रेंडली (पर्यावरण के अनुकूल) या टिकाऊ होने की वजह से खरीदें। हालांकि, ये उत्पाद पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल और टिकाऊ दोनों हैं। लेकिन मैं चाहती हूं कि लोग इन्हें इसलिए खरीदें क्योंकि ये सही मायनों में खूबसूरत हैं। इनके जरिए सभी लोगों के सामने आदिवासियों की अनकही कहानियां आती हैं और उन्हें उन जगहों की सैर कराती हैं, जिन्हें लोगों ने अभी तक देखा नहीं है।'


शिल्पकर्मण की त्रिपुरा में दो वर्कशॉप हैं। इसने प्रोडक्ट्स बनाने के लिए पांच शिल्पकार समुदाय समूहों के साझेदारी भी कर रखी है। सबसे पहले आदिवासी क्षेत्रों से बांस आते हैं और फिर उन्हें शिल्पकर्मण में कटर्स (कटाई करने वाले लोग) काटते हैं। इसके बाद उन स्टिक्स को वर्कशॉप में लाया जाता है, जहां कंपनी उन्हें अपने मनमुताबिक उत्पाद बनाने में लगाती है।


जहां फर्नीचर जैसे उत्पाद बनाने के लिए कंपनी बांस को केमिकल के साथ प्रयोग में लेती है। वहीं घरेलू और इंटिरियर सामानों के लिए ऑर्गेनिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। एक बार बांस लाने और कटाई होने के बाद इन्हें शिल्पकार समुदाय समूहों के पास भेजा जाता है जहां पर उन्हें काटकर मनचाही आकृति प्रदान की जाती है। इसके बाद बने उत्पादों को ऑइल फिनिशिंग और क्वॉलिटी चेक के लिए अगरतला स्थित शिल्पकर्मण के वेयरहाउस भेजा जाता है और फिर वहां से सीधे ग्राहकों के पास या दिल्ली ऑफिस में भेजा जाता है।


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निर्यात पर फोकस

चूंकि, शिल्पकर्मण अमेजन की सहेली प्रोग्राम का हिस्सा है। इस वजह से कंपनी को अमेजन की बेवसाइट पर प्रमोट भी किया जाता है। इसकी ज्यादातर बिक्री निर्यात प्रदर्शनी के जरिए होती है। कंपनी के प्रोडक्ट्स इंडियामार्ट और अलीबाबा जैसी B2B यानी बिजनेस टू बिजनेस वेबसाइटों पर लिस्टेड हैं। शिल्पकर्मण के 60 प्रतिशत उत्पाद यूरोप और दक्षिण अफ्रीका के बाजारों में बिकते हैं। किचेन में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों का दाम 200 रुपये और फर्नीचर का 2,000 रुपये से शुरू होता है। वहीं, दीवार पर लटकने वाले (हैंगिंग) उत्पाद, लैम्प और सजाने वाले आइटम्स की बिक्री 500 रुपये से शुरू होती है।


अक्षया अभी तक अपने कारोबार में 15 लाख रुपये लगा चुकी हैं, जिसे उन्होंने अपने माता-पिता से उधार लिया था। उन्हें इस साल तक ब्रेक इवन यानी नफा-नुकसान बराबर की स्थिति में आने का भरोसा है।

उतार-चढ़ाव भरा सफर

एक उद्यमी के तौर पर अक्षया की जिंदगी आसान तो कतई नहीं रही है। वह बताती हैं,

'पिछले साल थेस्लोनिकी (ग्रीस) के मेले में एक प्रदर्शनी के लिए मैंने आठ लाख रुपये का निवेश किया था। हालांकि, मुझे जैसी उम्मीद थी, वैसे नतीजे नहीं मिले। उस समय पहली मुझे अपने उद्यमी बनने के फैसले पर गुस्सा आया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या करना है। मैं माता-पिता के पास नहीं जा सकती थी। मैं अपने फैसले के साथ वहां अकेली खड़ी थी और वह मेरी तरफ देख रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं एकदम बेवकूफ हूं। मैं पागलों की तरह रोई। फिर जब मैं दिल्ली लौटी तो मैंने कंपनी बंद करके फिर कभी इस ओर नहीं लौटने का मन बना लिया। हालांकि, कोई भी शख्स एक बार उद्यमी बनने के बाद हमेशा उद्यमी ही रहता है। मेरे माता-पिता ने मुझे सपोर्ट किया। कारोबार के लिहाज कुछ सकारात्मक चीजें भी हुईं। फिर मैं कारोबारी दुनिया में वापस आ गई।'


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अक्षया 250 से अधिक शिल्पकारों के लिए आमदनी का बेहतर जरिया बनने की वजह से भी खुश हैं। उन्हें खुशी है कि शिल्पकर्मण ने ऐसी उत्पादन प्रक्रिया बनाई है, जो शिल्पकारों की जीवन शैली से मेल खाती है। अक्षया के पास भविष्य को लेकर महत्वाकांक्षी योजनाएं भी हैं।


उनका कहना है,

'मैं शिल्पकर्मण को वैश्विक मंच ले जाने के साथ अपने उत्पादों के लिए खरीदारों का मजबूत आधार बनाना चाहती हूं। मैं शिल्पत्व (Silpatva) नाम के एक नए ब्रांड पर भी काम कर रही हूं। यह शिल्पकर्मण के एक सहयोगी ब्रांड की तरह काम करता है। इसमें हम ग्राहकों के लिए डिजाइन और इंटीरियर सॉल्यूशन (घर के अंदर की साज-सज्जा) जैसी सेवाएं देते हैं। हालांकि, हमारे सभी उत्पाद हाथ से बने होते हैं और उन्हें हम सीधे शिल्पकारों से लेते हैं।'


अक्षया आगे कहती हैं,

'मैं 2022 तक दो फ्लैगशिप स्टोर खोलने की योजना लेकर चल रही हूं। इनमें से एक स्टोर भारत और दूसरा विदेश में होगा। इसके जरिए हम हस्तशिल्प से जुड़े लोगों को एक मंच पर लाएंगे। यहां आप उत्पाद खरीद सकेंगे। अगर हमारे साथ मिलकर प्रोडक्ट्स बनाना चाहते हैं तो हम आपको उसकी भी सहूलियत देंगे। इसके अलावा, इंटीरियर सॉल्यूशंस भी उपलब्ध कराएंगे, जिसके तहत एक छत के नीचे में हम फर्श से लेकर फर्नीचर तक सारी चीजें देंगे। मैं इन उत्पादों को बनाने वाले शिल्पकारों की पहचान करवाने के लिए टूर की योजना भी बना रही हूं। इसके साथ ही मैं बंबू चारकोल के वैकल्पिक ऊर्जा, वाटर फिल्टरेशन (पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया) जैसे अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग की संभावनाएं तलाश रही हूं।'