कॉम्पिटिशन बिल में संशोधन और Web3 इकोसिस्टम पर इसका प्रभाव
इस कानून को साल 2002 में पेश किया गया था. उस वक्त से लेकर करीब 20 सालों में आज डिजिटलीकरण और नई टेक्नोलॉजी की वजह से मार्केट में कई तरह के बदलाव आ चुके हैं. हाल ही में संसोधित कॉम्पिटिशन बिल को संसद के दोनों सदनों से पास कर दिया गया है.
कॉम्पिटिशन बिल भारतीय मार्केट में कंपनियों के गलत कारोबारी गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है. साथ ही कंपनियों के बीच कारोबार को लेकर स्वतंत्र तरीके से प्रतिस्पर्धा जारी रखने की कोशिश राह मजबूत बनाता है, जिससे ग्राहकों को फायदा हो और कोई एक कंपनी अपनी मनमानी न कर सके.
हाल ही में संसोधित कॉम्पिटिशन बिल को संसद के दोनों सदनों से पास कर दिया गया है. इसका मकसद 20 साल पुराने कानून में बदलाव करके इकोनॉमी तौर मजबूत बनाना है.
क्यों कानून में बदलाव की पड़ी जरूरत
इस कानून को साल 2002 में पेश किया गया था. उस वक्त से लेकर करीब 20 सालों में आज डिजिटलीकरण और नई टेक्नोलॉजी की वजह से मार्केट में कई तरह के बदलाव आ चुके हैं.
देश की आर्थिक गतिविधि में काफी बदलाव आया है. हमने डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास के बीच स्टार्ट-अप्स की संख्या में उछाल देखा है. इन डिजिटल व्यवसायों की वृद्धि का मतलब था कि भारी मूल्यांकन और बाजार की ताकत वाली संस्थाएं अक्सर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के विलय के नियमों से बच जाती हैं क्योंकि वे निकासी के लिए आवश्यक संपत्ति और बिक्री आधारित मौद्रिक सीमा को पूरा नहीं करती हैं.
आज के वक्त में देश की आर्थिक गतिविधियों में काफी बदलाव आ चुका है. इस वक्त भारत में तेजी से स्टार्ट-अप की संख्या बढ़ी है. इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में उछाल देखा जा रहा है. ऐसे में ज्यादा वैल्युएशन और बड़े मार्केट पावर वाली संस्थाएं भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग यानी CCI के नियमों से बचकर निकल जाती थी. ऐसा इसलिए भी था कि क्लियरेंस के लिए कंपनियों को एसेट्स और सेल बेस मॉनिटरी की सीमा की जरूरत को पूरा करना जरूरी नहीं था.
इन दो दशकों में भारत में कारोबार को आसान बनाने की राह में सुधार की जरूरत थी. यह संशोधन उस दिशा में उठाया गया बिल्कुल सही कदम है, जो आने वाले दिनों में कारोबारी गतिविधियों में तेजी लाएगा. साथ ही कारोबारी वातारण में सही प्रभाव देखने को मिलेगा.
बिल में क्या बदलाव हुए हैं?
कॉम्पिटिशन बिल में कई अहम तरह के बदलाव हुए हैं - जो इस प्रकार हैं -
डील वैल्यू की सीमा
बिल में संसोधन करते हुए सुझाव दिया गया है कि किसी भी तरह की डील का आंकलन कितनी संख्या में लेनदेन हुआ है, उससे तय किया जाएगा. ऐसा इसलिए है, क्योंकि डिजिटल अर्थव्यवस्था के दौर में कई तरह के अधिग्रहण हो सकते हैं, जिसमें अधिग्रहित की जा रही कंपनी के डेटा और बिजनेस इनोवेशन को शामिल किया जाएगा.
उदाहरण के लिए फेसबुक की ओर से साल 2014 में वॉट्सऐप का 18 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण किया गया, उस वक्त वॉट्सऐप की संपत्ति काफी कम थी और पहले के कानून के प्रावधान में कंपनी की टर्नओवर को नहीं शामिल किया गया था.
इसके साथ ही अब 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा के लेनदेन CCI के दायरे में आएंगे. फिर चाहे पारंपरिक एसेट्स और टर्नओवर की सीमा पूरी हो या नहीं. अगर कंपनी का भारत में पर्याप्त बिजनेस ऑपेशन है, तो वो CCI के अंतर्गत आएगी.
निपटान और प्रतिबद्धता
किसी भी एंटी कम्पिटिशन मामले की जांच में तेजी से समाधान निकालने के लिए नए बिल में निपटान और प्रतिबद्धता के लिए नए फ्रेमवर्क को जोड़ा गया है. अगर किसी भी कंपनी की किसी समय जांच शुरू होती है, लेकिन अंतिम जांच रिपोर्ट के जारी नहीं होने तक इन प्रतिबद्धताओं का पालन करना होगा.
इसका मतलब है कि जांच को तेजी से पूरा किया जा सकेगा. इससे मामले में शामिल सभी पार्टियों के पैसों और समय दोनों की बचत होगी.
ग्लोबल टर्नओवर पर पेनल्टी
नया कम्पिटिशन एक्ट CCI को एंटी कम्पिटिशन गतिविधियों में शामिल फर्म पर जुर्माना लागने की पावर देता है. इस बदलाव में साफ कर दिया गया है कि इस तरह के जुर्माने को ग्लोबल टर्न ओवर पर लगाया जा सकता है.
अप्रूवल की समयसीमा में कमी
नए संशोधन में अप्रूवल के ओवरऑल टाइम को कम करके 210 दिनों से 150 कर दिया गया है.
संशोधन में अन्य प्रावधान भी शामिल किए गए हैं. इसमें स्टैंडस्टिल दायित्वों से छूट, कंट्रोल की एक बेहतर परिभाषा, डीजीए के पावर में बढ़ोतरी और पेपरवर्क में कमी को शामिल किया गया है.
क्या बदलाव होने जा रहे है?
यह बदलाव पूरी तरह से ट्रांसपेरेंसी में बढ़ोतरी करेंगे. साथ ही कारोबार को आसान बनाकर बाजार के कामकाज में इजाफा करेंगे. इसके अलावा कारोबार की राह में आने वाली बाधाओं में कमी आएगी. साथ ही कंपनी और उनके अधिग्रहण पर निगरानी करने काम काम करेंगे. इससे कंपनियों पर अनुपालन का बोझ भी कम होगा.
इन सभी बदलावों में सबसे अहम है कि किसी भी एंटी कम्पिटिशन गतिविधियों में शामिल कंपनी पर जुर्माना उसके ग्लोबल टर्नओवर के आधार पर लगाना. इससे पहले तक कंपनी के टर्नओवर के कुछ हिस्से को शामिल किया जाता था, जो कि घरेलू टर्नओवर होता था. ऐसे में कई ग्लोबल कंपनियां अपनी वैश्विक कमाई के कुछ हिस्से को एंटी कम्पिटिशन कामकाज पर खर्च करके बच निकलती थीं.
लेकिन इस बदलाव से साफ हो गया है कि कोई भी कंपनी कंप्टीशन के नियमों का उल्लंघन करके बच नहीं सकती है.
ऐसे में कंपनियां अपने कारोबारी दबदबे का गलत इस्तेमाल बाजार की प्रतिस्पर्धा को कमजोर नहीं कर पाएंगी. नया संशोधन कंपनियों के लिए निवारक का काम करेगा.
इस बदलाव का टेक और क्रिप्टो इकोसिस्टम पर क्या असर होगा?
इस नए बदलाव का सबसे ज्यादा असर बड़ी टेक कंपनियों पर पड़ेगा, क्योंकि बड़ी टेक कंपनियां का कारोबार कई देशों में फैला होता है. ऐसे में टेक कंपनियां आमतौर पर अमेरिका और यूरोप में ज्यादा कमाई करती हैं. जबकि भारत में उनकी कमाई यूरोपीय देशों के मुकाबले कम होती है. ऐसी कंपनियों पर उनके ग्लोबल बिजनेस पर जुर्माने से उन्हें ज्यादा नुकसान होगा.
उदाहरण के लिए CCI की ओर से गूगल पर पिछले दो सालों में दो मामलों में 280 मिलियन डॉलर करीब 2273 करोड़ का जुर्माना लगाया गया. जबकि भारत के मुकाबले गूगल पर यूरोपियन कमीशन यानी EC ने पिछले साल सितंबर में 4 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया है. बता दें कि गूगल को यूरोप में एंटी कप्टीशन प्रैक्टिस फॉलो करने का दोषी पाया गया था.
अगर क्रिप्टो इकोसिस्टम की बात करें, तो यह बदलाव वास्तव में क्रिप्टो के घरेलू इकोसिस्टम को बूस्ट करने का काम करेंगे. भारतीय क्रिप्टो इकोसिस्टम बेहद शुरुआती दौर में है और अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में नया कानून बड़ी कंपनियों को मनमाफिक तरीक से कारोबार करने की छूट नहीं देगा. घरेलू कंपनियों को इससे फायदा होगा. साथ ही मार्केट में प्रतिस्पर्धा का दौर बना रहेगा.
बता दें कि क्रिप्टो कंपनियां भारत को क्रिप्टो हब के तौर पर देख रही हैं. ऐसे में सरकार का कम्पिटिशन एक्ट में बदलाव करना बिल्कुल सही है. यह सही समय पर लिया गया पॉजिटिव रेगुलेशन है.
आइडिया यह था कि बिल को पॉजिटिव क्रिप्टो रेगुलेशन के साथ लाया जाएगा. अगर ऐसा होता, तो यह इंडियन क्रिप्टो इको इकोसिस्टम के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है. यह कंपनियों के ग्लोबल क्रिप्टो हब बनाने के सपने में मदद करता. यह बदलाव देश में ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा करेगा. साथ ही इनोवेटिव डिजिटल इकोसिस्टम को मजबूत करेगा. इसके अलावा इनोवेशन को बूस्ट करने में सही प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा. इससे कारोबारी गतिविधियों में इजाफा होगा.
(लेखक ‘GoSats’ के को-फ़ाउंडर और सीईओ हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक