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फुटपाथ पर नहाने और सड़क किनारे खाना खाने वाला आदमी कैसे बन गया 'लिंक पेन' का मालिक

लिंक पेन के मालिक सूरजमल जालान आज हैं 350 करोड़ की कंपनी के मालिक... 

फुटपाथ पर नहाने और सड़क किनारे खाना खाने वाला आदमी कैसे बन गया 'लिंक पेन' का मालिक

Wednesday June 14, 2017 , 6 min Read

एक व्यक्ति जो लगभग छह दशक पहले एकदम फटेहाल स्थिति में कोलकाता आया था, आज देश में तीसरी सबसे बड़ी पेन कंपनी 'लिंक पेन' का मालिक है और उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर '350 करोड़' से भी अधिक है। 78 साल के 'सूरजमल जालान' ने अपनी कठिन मेहनत से जो कंपनी बनाई थी, वो कंपनी 40 साल से ऊपर का सफर तय कर चुकी है। उनकी कंपनी साल भर में करोड़ों पेन बनाती है और ये पेन दुनिया के 50 देशों में इस्तेमाल किये जाते हैं।

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लिंक पेन के मालिक 'सूरजमल जालान', फोटो साभार: theweekendleadera12bc34de56fgmedium"/>

एक समय ऐसा भी था, जब लिंक पेन के मालिक सूरजमल जालान के सिर पर कोई छत नहीं थी, पैसों की तंगी के चलते उन्हें अपने एक दोस्त के यहां सोना पड़ता था, नहाने के लिए फुटपाथ पर जाना पड़ता था और वहीं सड़क किनारे लगे ढाबों में खाना खाना पड़ता था, लेकिन तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि ज़िंदगी को इस कड़वाट के साथ गुज़ारने वाला व्यक्ति भविष्य में 350 करोड़ का टर्नओवर देने वाली कंपनी का मालिक होगा।

1938 में राजस्थान के सीकर जिले में लच्छमन गढ़ी गांव में पैदा हुए सूरजमल का बचपन अत्यंत साधारण माहौल में बीता। उनके पिता कुछ नहीं करते थे, उनके दो बड़े भाई घर का खर्च संभालते थे। छह भाई-बहनों में वे पांचवे नंबर पर थे, इसलिए उन्हें सबका लाड़-प्यार मिला। घर की हालत अच्छी नहीं थी, लेकिन फिर भी सूरजमल के बड़े भाई चाहते थे कि वह पढ़ाई पूरी करें। हाई स्कूल पास करने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई करने के लिए घर से 18 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। वहां उन्होंने 2 साल तक पढ़ाई की। 18 किलोमीटर दूर सफर करके कॉलेज पहुंचने में ज्यादा खर्च लगता था। इसलिए उनके घरवालों ने कहा कि वह गांव के पास किसी स्कूल में दाखिला ले लें, लेकिन सूरजमल अपनी पढ़ाई से किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहते थे।

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"1957 में सूरजमल ने 19 साल की उम्र में अपना भविष्य खुद बनाने का फैसला कर लिया। उस वक्त उनके गांव के कुछ दोस्त कोलकाता में रहा करते थे और वे कोलकाता में बिज़नेस के लिए तमाम अवसर के बारे में बताते थे। उनका भी मन हुआ कि वे कोलकाता जाएं।"

सूरजमल के घर वाले उनके कोलकाता जाने के फैसले पर राजी नहीं थे। वे चाहते थे कि सूरजमल पहले शादी कर लें उसके बाद वे कोलकाता जाएं। सूरजमल ने पहले तो सीधे मना कर दिया लेकिन उनकी ज़िद के आगे घरवालों को झुकना पड़ गया। जब वे कोलकाता के लिए रवाना हुए तो उनकी जेब में एक भी पैसे नहीं थे। उन्होंने किसी तरह ट्रेन में थर्ड क्लास का टिकट लिया और कोलकाता पहुंचे। कोलकाता में हैरिसन रोड पर एक कारपेट शोरूम में उन्हें पहली नौकरी मिली। उस वक्त उन्हें 60 रुपये महीने की सैलरी मिलती थी। वह शोरूम में सेल्स, अकाउंटिंग और जनरल एडमिनिस्ट्रेशन का काम देखते थे। इतनी कम पगार में उनका गुजारा काफी मुश्किल से होता था। उनका एक दोस्त ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता था। उसी के यहां वे रात को सोते थे और फुटपाथ पर नहाने के लिए जाते थे। सड़क के किनारे ढाबों पर उनका भोजन होता था।

"पैसे कम होते थे इसलिए वह बस या रिक्शे की बजाय पैदल चलते थे। इस स्थिति में उन्हें घर की याद आती और वे रो पड़ते। उन्हें लगा कि इस नौकरी से उनका गुजारा नहीं हो रहा है। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कंघी बनाने वाली फैक्ट्री में नौकरी कर ली। यहां उन्होंने दो साल तक काम किया और 1960 मे उनकी शादी हो गई।"

शादी के बाद सूरजमल ने सिलीगुड़ी में एक राइस मिल और टी गार्डन की कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर काम करना शुरू किया। यहां उन्हें 500 रुपये हर महीने मिलने लगे थे। घर से काफी दूर रहने की वजह से घरवाले उन्हें याद करते थे और वापस लौट आने के लिए कहते थे। उनके घर में बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। 1966 में वह वापस गांव लौट आए। कोलकाता में इतने दिनों नौकरी करने के बाद उन्होंने 5,000 रुपये बचाए थे। इन पैसों से उन्होंने पेन खरीदीं और घर-घर जाकर बेचना शुरू कर दिया। इस वक्त उन्हें लगा कि भारत में अच्छी क्वॉलिटी की पेन बनती ही नहीं हैं।

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जल्दी ही उन्हें लगने लगा कि वह गांव में रहकर कुछ नहीं कर सकते हैं और 2 साल के भीतर ही वह वापस कोलकाता लौट गए। यहां उन्होंने बागरी मार्केट में पेन के लिए एक रीटेल काउंटर खोल लिया। धीरे-धीरे वह होलसेल पेन का बिजनेस करने लगे। लेकिन वह हमेशा से पेन की फैक्ट्री स्थापित करना चाहते थे। उनकी ससुराल कोलकाता में ही थी और उन लोगों ने सूरजमल की काफी मदद की। उत्तरी कोलकाता के मालापाड़ा एरिया में उनकी ससुराल में 10X10 की जगह खाली पड़ी थी। वहीं पर सूरजमल ने अपनी फैक्ट्री स्थापित कर ली।

"सूरजमल ने 10,000 रुपयों से अपना बिजनेस शुरू किया और बॉल पॉइंट पेन के लिए प्लास्टिक के पार्ट बनाने शुरू कर दिये। जल्द ही उनका प्रोडक्ट मार्केट में काफी पॉप्युलर हो गया, लेकिन उनका इरादा तो अपना खुद का ब्रांड बनाने का था और 1976 में उन्होंने कोलकाता में ही 700 स्क्वॉयर फीट की जगह किराए पर लेकर खुद की कंपनी 'लिंक पेन' स्थापित की, जिसमें 3 लाख का इन्वेस्ट किया।"

शुरुआती दिनों में सूरजमल की कंपनी में सिर्फ पांच एम्प्लॉई थे। कंपनी का नाम लिंक कैसे पड़ा? इसके बारे में बताते हुए सूरजमल कहते हैं कि उनके एक दोस्त ने यह नाम सुझाया था। उसने बताया था कि लिंक का मलब कनेक्ट होता है। पेन के साथ ही उन्होंने स्टेशनरी आइटम जैसे नोटबुक और फाइल फोल्डर भी बनाने शुरू कर दिए। कंपनी स्थापित होने के बाद वह खुद से दुकान-दुकान सामान की सप्लाई करने जाते थे और सीधे ग्राहकों से प्रोडक्ट के बारे में पूछते थे। इसी मेहनत की बदौलत कंपनी शुरू करने के कुछ ही सालों में उन्हें अच्छा खासा प्रोफिट होने लगा। 1980 में उनकी कंपनी का टर्नओवर 1.5 करोड़ हो गया।

1986 में बंगाल के 24 परगना जिले में उन्होंने 10 लाख के इन्वेस्टमेंट से पहली मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई। 1992 में उन्हें जापान से पेन सप्लाई करने का ऑफर आया। उन्होंने इसी साल दक्षिण कोरिया में भी पेन सप्लाई करना शुरू कर दिया। 1995 में उनकी कंपनी का टर्नओवर बढ़कर 25 करोड़ हो गया। उसी साल कंपनी कोलकाता और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हुई और 2001 में टर्नओवर 52 करोड़ के पार हो गया। आज ईस्टर्न इंडिया में लिंक पेन के 13 स्टोर हैं।

सूरजमल जालान की कंपनी लिंक पेन आज की तारीख में 50 से ज्यादा वेराइटी के पेन बेचती है। 2008 में बॉलिवुड के किंग खान शाहरुख को कंपनी ने अपना ब्रांड ऐम्बैसडर बनाया था।

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