एशिया की पहली महिला मोटरवुमेन मुमताज़ एम काज़ी
मुमताज़ काज़ी वो नाम हैं, जो मुंबई की तेज़ रफ्तार को अपने हाथों से काबू करती हैं। 45 वर्षीय मुमताज 1991 से भारतीय रेलवे में सेवारत हैं। वो जब 20 साल की थीं, तब उन्होंने पहली बार ट्रेन चलाई थी।अभी हाल ही में महिला दिवस के मौके पर मुमताज एम काज़ी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'नारी शक्ति अवॉर्ड' से सम्मानित किया है।
वैसे तो मुस्लिम परिवारों में लड़कियों पर अब भी हज़ारों पहरे हैं, लेकिन फिर भी मुमताज एम काज़ी उस दौर की डीजल इंजन ड्राइवर हैं, जिन दिनों लड़कियां पर्दे और बुर्के में रहने को मजबूर थीं। मुमताज के लिए ड्राइवर बनने का ये सफर आसान नहीं था। 1989 में उन्होंने जब रेलवे में नौकरी के लिए आवेदन दिया, तो उनके पिता सबसे पहले उनकी खिलाफत करने के लिए खड़े हो गए।
"मुझे ये काम करते हुए बहुत गर्व महसूस होता है। औरत हर काम करने के लिए सक्षम है। वो हर काम कर सकती है, बस उसका हौसला बुलंद होना चाहिए: मुमताज एम काज़ी"
1995 में मुमताज एम काज़ी का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है। साल 1989 में रेलवे भर्ती बोर्ड में हुए बदलाव के बाद मुमताज को अपना हुनर दिखाने का मौका मिला। वो अपनी लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दोनों में मैरिट से पास हुईं। बीस साल के अनुभव के साथ मुमताज दुनिया के सबसे भीड़भाड़ वाले शहर मुंबई लोकल की कमान संभाल रही हैं।
मुमताज़ काथावाला काज़ी 1990 की शुरूआत में भारत की पहली महिला डीज़ल इंजन ड्राइवर बनीं थीं। 26 साल से मुमताज़ मुंबई की पटरियों पर ट्रेन दौड़ा रही हैं। मुंबई सेंट्रल रेलवे पर 700 के आसपास मोटरमैन हैं, जिनमें मुमताज़ काज़ी अकेली महिला मोटरवुमेन हैं। इनके पिता रेलवे में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। मुमताज के लिए डीजल इंजन चालक बनना आसान नहीं था। वह एक मुस्लिम परिवार से हैं। जब उन्होंने 1989 में रेलवे की नौकरी के लिए आवेदन दिया, तब उनके पिता अल्लारखू इस्माइल काथावाला ने उनकी नौकरी का विरोध किया, लेकिन बेटी की इच्छा के आगे पिता को नरम होना पड़ा और उन्होंने मुमताज को उनका पसंदीदा काम करने की इजाज़त दे दी। मुमताज कहती हैं, "बचपन के दिनों में मैं जब ट्रेन को देखती थी, तो उसकी आवाज़ मुझे अपनी ओर आकर्षित करती थी। जब मुझे पता चला कि मेरी नौकरी रेलवे में लग गई है, तो मैंने दो बार नमाज़ पढ़कर सजदा किया और अल्लाह-ताला का इसके लिए शुक्रिया अदा किया।"
साल 1989 में रेलवे भर्ती बोर्ड में हुए बदलाव के बाद मुमताज को अपना हुनर दिखाने का मौका मिला। वो अपनी लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दोनों में मैरिट से पास हुईं। बीस साल के अनुभव के साथ मुमताज दुनिया के सबसे भीड़भाड़ वाले शहर मुंबई लोकल की कमान संभाल रही हैं। मुमताज कहती हैं, "जब मैं ड्यूटी पर जाती हूं तो घर को पूरी तरह भूल जाती हूं। सिर्फ ड्यूटी पर ध्यान देती हूं।" मकसूद काज़ी मुमताज़ के पति हैं, जो बेहद ही सज्जन व्यक्ति हैं और घर में मुमताज के न होने पर बच्चों का अच्छे से ख़याल रखते हैं। मुमताज़ से शादी के दौरान उन्हें मुमताज का ट्रेन ड्राइवर होना अटका तो था, लेकिन मुमताज की काबीलियत को देखकर उन्होंने रिश्ते को सहर्ष स्वीकार कर लिया। मुमताज और मकसूद के दो बच्चे हैं, 14 सा का बेटा तौसीफ और 11 साल की बेटी फ़तीन।
मुंबई की इस जांबाज मोटर ड्राइवर का दिन रसोईं में ही शुरू होता है। बच्चों का खाना तैयार करके मुमताज सुबह 6 बजे घर से बाहर अपनी ड्यूटी पर निकल जाती हैं। मुमताज़ काज़ी का नाम लिम्का बुक अॉफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में "पहली महिला डीज़ल मोटरमैन" के तौर पर दर्ज हो चुका है। लेकिन इनकी काबिलियत की कहानी सिर्फ लिम्का तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये पहली ऐसी ड्राइवर हैं, जो डीज़ल और इलेक्ट्रिक दोनों तरह के इंजन को चलाना जानती हैं। मुमताज पिछले कई सालों से इलेक्ट्रिक मोटरवुमेन के तौर पर काम कर रही हैं।
2015 में मुमताज एम काज़ी को रेलवे जनरल मैनेजर अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। इस वर्ष इन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा 2017 के 'नारी शक्ति पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया है।
45 वर्षीय मुमताज जब 20 साल की थीं, तब उन्होंने पहली बार ट्रेन चलाई थी। वो 1991 से भारतीय रेलवे में नौकरी कर रही हैं। मुमताज कई तरह की रेलगाड़ियां चला चुकी हैं और इन दिनों मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस-ठाणे पर मध्य रेलवे की उपनगरीय लोकल ट्रेन चलाती हैं। यह रेल मार्ग किसी महिला ड्राइवर द्वारा चलाया जानेवाला देश का पहला और सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाला मार्ग है।
मुमताज अपनी नौकरी में ही नहीं, बल्कि अपने निजी जीवन में भी उतनी ही सफल हैं। वो मोटरवुमेन के साथ-साथ एक मां और एक पत्नी होने का फर्ज़ भी बखूबी निभा रही हैं। मुमताज़ की मदद से ही उनके दोनों भाईयों ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और अब वे दोनों विदेश में नौकरी कर रहे हैं। अभी हाल ही में महिला दिवस के मौके पर मुमताज एम काज़ी (जो देश की ही नहीं पूरे एशिया की पहली डीजल इंजन ड्राइवर हैं) को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया है। मुमताज को तीन साल पहले पहली डीजल इंजन चालक होने का गौरव भी प्राप्त हो चुका है।
पटरी पर दौड़ती मुमताज़ काज़ी की ट्रेन उन लोगों को करारा जवाब है, जो महिलाओं को कम आंक कर कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप करते हैं। मुमताज ने यह पूरी तरह साबित कर दिया है, कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं। अब इंतज़ार है उस दिन का है जब रेलवे में मोटरवुमेन नाम से भर्तियां होनीं शुरू हो जायेंगी।