दुनिया की चार बड़ी कंपनियां, फर्श से अर्श तक का सफर
कोई भी नया उद्यम शुरू करने से पहले किसी के पास क्या होना चाहिए ? कोई शानदार आइडिया ? बढ़िया टीम ? या पैसा ? उद्यम शुरू करने के लिए ये सब जरूरी है लेकिन इससे बढ़कर जो ज्यादा जरूरी चीज है वो है विश्वास। ये विश्वास ही है जो हर मुश्किल चीज को सुलझाने की राह में ले जाता है। कई बार ये जानकार हैरानी होती है कि आज जो कंपनियों बड़ी बनी हैं, उनकी कहानी में बड़ी सादगी है। आईये जानते हैं ऐसी ही कुछ कहानियों के बारे में।
1. फ्रेड स्मिथ, फेडरल एक्सप्रेस
फ्रेड स्मिथ साल 1965 में याले विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाये। अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होने अमेरिका में मालढुलाई के बारे में जानकारी जुटाई। उन्होने देखा कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर एक जगह से दूसरी जगह सामान ढोने के लिए जलमार्ग का इस्तेमाल होता है। जबकि ट्रक से छोटा सामान और जरूरी सामान के लिए हवाई मार्ग का इस्तेमाल होता है। उन्होने फैसला किया कि वो इससे जुड़ा ही कोई काम करेंगे और 1971 में अपनी कंपनी की स्थापना कर दी। लेकिन तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद उनकी कंपनी फेडरल एक्सप्रेस दिवालिया घोषित हो गई। इसकी वजह थी तेल के ऊंचे दाम। जिसके कारण कंपनी को एक महीने 1 मिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। स्मिथ ने पैसा जुटाने के लिए कई जगह हाथ पैर मारे लेकिन उनको हर जगह निराशा ही हाथ लगी।
ऐसे मौके पर कोई दूसरा व्यक्ति होता तो वो अपनी कंपनी को बंद कर भाग खड़ा होता। लेकिन स्मिथ ने हार नहीं मानी और वो डटे रहे। कुछ करने के इरादे से वो लॉस वेगास गए और अपनी जमा पूंजी 5 हजार डॉलर दांव पर लगा दी। इसके बाद फेडरल एक्सप्रेस के खाते में 32 हजार डॉलर आ गए। इन पैसों से ना सिर्फ कंपनी के जहाजों में तेल भरा जा सकता था बल्कि वो कुछ और दिन अपने काम को जारी रखने में भी सफल हो सके। जल्द ही कंपनी ने निवेश भी हासिल कर लिया और आज फेडरल एक्सप्रेस दुनिया भर के 220 से ज्यादा देशों में अपना कारोबार चला रही है और उसकी सालाना आय है 45 बिलियन डॉलर।
2. फारुशियो लेम्बोर्गिनी, लेम्बोर्गिनी
फारुशियो वास्तव में किसान थे जिन्होने ट्रैक्टर बनाया था। उनका कारोबार काफी बढ़िया चल रहा था और वो इटली के धनवान लोगों में से एक थे। उनके पास कई दूसरी कारों के अलावा फेरारी भी थी जो अक्सर खराब हो जाती थी। पेशे से मैकेनिक फारुशियो ने जब इसकी जांच की तो पाया कि फेरारी में उसी क्लच का इस्तेमाल हो रहा था जिसका इस्तेमाल उन्होने अपने ट्रैक्टर में किया था। कार के क्लच की दिक्कत ना सिर्फ उनको आ रही थी बल्कि उनके जानने वाले और लोग जिनके पास फेरारी थी वो सब इसी समस्या से परेशान थे। फारुशियो कार में आ रही दिक्कत को दूर करने के लिए मैकेनिक के पास गए तो वो उसे ठीक कर देता या फिर नया लगा देता बावजूद हर बार जब कार को तेज चलाया जाता को क्लच फिसल जाता था और वो काम नहीं करता था। बार बार मैकेनिक के पास जाने के कारण उनका काफी वक्त खराब होता। तब उन्होने फैसला लिया कि वो इस समस्या को लेकर एंज़ो फेरारी से बात करेंगे और इसके लिए उनको लंबा इंतजार भी करना पड़ा। और जब फारुशियो की एंज़ो फेरारी से बात हुई तो उन्होने कहा कि तुम्हारी कार बकवास है। जिसके बाद गुस्से में एंज़ो ने फारुशियों से कहा कि लेम्बोर्गिनी तुम ट्रैक्टर चलाने के काबिल हो और तुम फेरारी जैसी कार को सही तरीके से संभाल नहीं सकते। ये वो बात थी जो फारुशियों को चुभ गई, तब उन्होने फैसला लिया वो एक परफेक्ट कार बनाएंगे। इस तरह लोगों को मिली एक शानदार कार लेम्बोर्गिनी।
3. कर्नल सैंडर्स, केंटकी फ्राइड चिकन
कर्नल सैंडर्स को 65 साल की उम्र में सामाजिक सुरक्षा चैक के तौर पर 99 डॉलर मिले। तब उन्होने चीजों को बदलने का फैसला लिया। उनके दोस्तों को उनका बनाया हुआ चिकन काफी पसंद था। तब उन्होने तय किया कि वो इस पर काम करेंगे। वो केंटकी शहर को छोड़ अमेरिका के दूसरे हिस्सों में गए और अपना आइडिया लोगों को बेचने की कोशिश की। वो रेस्टोरेंट मालिकों से कहते कि उनके पास चिकन बनाने की खास विधि है जिसको लोग पसंद करते हैं और वो उनको मुफ्त में ये विधि बताने को तैयार हैं बदले में जो भी माल उनका बिकेगा उसका एक अंश उनको दे देंगे। लेकिन उनको कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी। इस दौरान वो करीब एक हजार लोगों के पास अपना ये आइडिया लेकर गए और हर जगह उनको निराशा ही हाथ लगी। बावजूद इसके उन्होने हार नहीं मानी। अंत में 1009 लोगों से मिलने के बाद उनको पहली बार हां मिली। इस सफलता के बाद कर्नल हार्टलैंड सैंडर्स ने लोगों की खाने की आदत को ना सिर्फ अपने देश में बल्कि दुनिया भर में बदल दिया और आज यही लोकप्रिय केंटकी फ्राइड चिकन, केएफसी के रूप में जाना जाता है।
4. सोइचिरो होंडा, होंडा मोटर कंपनी
सोइचिरो होंडा एक गेराज में मैकेनिक थे। उनका काम था रेसिंग के लिए आने वाली कारों को ट्यून करना। होंडा ने टोकाई सेखी की स्थापना 1937 में की जो पिस्टन के छल्ले का निर्माण करती थी। कंपनी में बनने वाले पिस्टन के छल्ले टोयटा कंपनी को सप्लाई किये जाते थे। लेकिन खराब क्वॉलिटी के कारण टोयटा ने पिस्टन के छल्ले लेने से मना कर दिया। जिसके बाद कंपनी ने टोयटा के क्वालिटी कंट्रोल प्रोसेस को समझा और 1941 में होंडा फिर बड़े स्तर पर पिस्टन के छल्ले बनाने लगा। जिसे टोयटा कंपनी भी दोबारा इस्तेमाल करने लगी। टोयटा ने टोकाई सेखी में 40 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर लिया लेकिन होंडा ने अध्यक्ष पद से लेकर वरिष्ठ प्रबंध निदेशक तक के पद अपने पास रखे। 1944 के युद्ध में अमेरिका के हमलों से टोकाई सेखी का मैन्यूफेक्चरिंग प्लांट बर्बाद हो गया। जिसके बाद होंडा ने टोयटा को ये कंपनी बेच दी। जिसके बाद सोइचिरो होंडा ने 1946 में होंडा तकनीकी अनुसंधान संस्थान की नींव रखी। शुरूआत में 12 लोगों की मदद से 172 वर्गफुट के कमरे में उन्होने काम करना शुरू किया। जहां पर उनकी टीम ने एक खास तरह की मोटर बनाने के काम शुरू किया जिसे ग्राहक अपनी साइकिल के साथ जोड़ सकते थे। थोड़ी ही वक्त में होंडा मोटर कंपनी बड़ी हो गई और 1964 तक उसकी गिनती दुनियां में सबसे ज्यादा मोटरसाइकिल बनाने के लिए होने लगी। इसके बाद होड़ा ने पिक अप ट्रक और कार के क्षेत्र में भी कदम रखा। आज ये कंपनी टोयटा को कड़ा मुकाबला दे रही है।
जाहिर है ये सभी कंपनियां आज जिस मुकाम पर हैं उनको यहां तक पहुंचने के लिए दशकों लग गए। लेकिन इनके संस्थापकों के पास आइडिया था और उस आइडिये पर इनको विश्वास भी था। खास बात ये है कि इन लोगों ने अपने आइडिये को हकीकत में बदलने के लिए काम भी किया।