अपनी सैलरी लगा कर बचा रहे हैं 1250 पेड़, बच्चों जैसा पालते हैं पेड़ पौधो को तुलसीराम
बूंदी जिले के एक स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं तुलसीराम...
श्रमदान के अलावा साल की एक महीने की तनख्वाह लगाते हैं 1250 पेड़-पौधों के रखरखाव में...
पेड पौधों को अपने बच्चों की तरह पालते हैं तुलसीराम...
किसी बड़े बदलाव के लिए हमेशा किसी बड़े काम को करने के लिए जरूरत नहीं होती कई बार आपके द्वारा किए गए छोटे-छोटे प्रयास ही बहुत बड़े कार्य की नीव रख देते हैं और वो कार्य समाज में सकारात्मक संदेश देने में सफल होते हैं। राजस्थान के बूंदी जिले के एक स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तुलसीराम ने भी एक ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं जिसकी वजह से आज बूंदी जिले के लोग उनकी मिसाल देते हैं। तुलसीराम ने अपने प्रयास से अपने इलाके में हरियाली बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
तुलसीराम एक गरीब व्यक्ति हैं जो राजस्थान के बूंदी जिले में रहते हैं वे एक सरकारी स्कूल में काम करते हैं स्कूल का कंपाउंड काफी बड़ा है और उस कंपाउंड में ऐसी जमीन थी जो खाली पड़ी रहती थी जिसपर लोग कूड़ा फेंक देते थे। यहां पर सदैव गंदगी बनी रहती थी साथ ही अंधरा होते ही असमाजिक तत्व यहां पर शराब वगैरा पीने आया करते थे। सन 2007 में बूंदी जिले के तत्कालीन कलेक्टर एसएस बिस्सा ने उस पूरे क्षेत्र में लगभग 1250 पौधे लगवाए और पूरे इलाके को हरा भरा करने का प्रयास किया उन्होंने इस जगह का नाम पंचवटी रखा। लेकिन थोड़े समय बाद ही उनका वहां से ट्रांस्फर हो गया अब समस्या ये थी कि कौन इन पौधों का रखरखाव करेगा और फिर से इस जगह को कूड़ेदान में बदलने से रोकेगा। ऐसे में तुलसीराम आगे आए और उन्होंने पंचवटी के रखरखाव की जिम्मेदारी ली और संकल्प किया कि वे इस इलाके की हरियाली और खूबसूरती कम नहीं होने देंगे।
पर्यावरण के प्रति तुलसीराम पहले से ही काफी सजग थे। प्रकृति से और पेड़ पौधों से उन्हें बहुत प्रेम था। उन्होंने पौधों को बच्चों की तरह पालना शुरू किया लेकिन श्रमदान के अलावा इतने बड़े इलाके के रखरखाव में पैसे की भी जरूरत थी तुलसीराम के सामने समस्या थी कि वे पैसा कहां से लाएं। तुलसीराम का कहते हैं- "जब मुझे किसी से मदद नहीं मिली तो मैंने तय किया कि मैं खुद ही पंचवटी का रखरखाव करूंगा लेकिन मेरी खुद की तनख्वाह काफी कम थी तो घर चलाने और पंचवटी को संभालने में काफी दिक्कत आने लगी। तब मैंने तय किया कि साल के एक महीने की तनख्वाह पंचवटी के रखरखाव में लगाऊंगा।"
तुलसीराम के घरवालों ने और मित्रों नें उन्हें इस जिम्मेदारी को न निभाने की सलाह दी लेकिन तुलसीराम नहीं माने और हरियाली बचाने और पर्यावरण संरक्षण के अपने इस प्रायस में लगे रहे।
तुलसी बताते हैं कि पेड़ पौधों को बचाना मनुष्य का धर्म है हम केवल बड़े-बड़े कारखाने लगा कर देश को आगे नहीं बड़ा सकते हमें साथ में पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा। वे इन पेड़ पौधों को अपना बच्चों की तरह पालते हैं और जैसे ही समय मिलता है वे बगीचे में आकर वहां पर काम करने लगते हैं।
तुलसीराम मानते हैं कि अगर हम पेड़ पौधों को बचाते हैं तो इससे हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ वातावरण देने में सक्षम होंगे। आजकल हर जगह डेवलपमेंट के नाम पर वृक्षों को काटा जा रहा है पेडों को काटकर कारखाने बनाए जा रहें हैं जिनसे वातावरण और प्रदूषित हो रहा है और इससे नई नई रोग जन्म ले रहे हैं। तुसलीराम विकास के विरोधी नहीं हैं लेकिन वे पर्यावरण की कीमत पर विकास के सख्त विरोधी हैं।
अपने इस प्रयास में तुलसीराम को काफी मेहनत करनी पड़ती है वे पहले स्कूल की नौकरी करते हैं उसके बाद पंचवटी में आकर वहां का रखरखाव और साफ सफाई करते हैं।
तुलसीराम के अथक प्रयास से जो पौधे 2007 में लगाए गए थे वे आज फलदार वृक्ष बन चुके हैं। पंचवटी में नींबू, अमरूद, आंवला, अनार, कल्पवृक्ष के अलावा भी कई और फलदार वृक्ष लगे हैं। जिनकी संख्या 1200 के ज्यादा है। तुलसीराम बताते हैं कि इन पौधों के रखरखाव में उन्होंने काफी पसीना बहाया है, बहुत संघर्ष किया है। जानवर पौधों को नुक्सान पहुंचाते थे पौधों को उनसे बचाना होता था। नौकरी के बाद धूप में पसीने से तथपथ वे पौधों की देखभाल करते थे और आज भी तुलसी प्रतिदिन यहां पर काम करते हैं। तुलसीराम ने इन पेड़ पौधों को अपने बच्चों की तरह सहेजा है। वे कहते हैं कि पेड पौधों को सहजने में उन्हें आनंद आता है।
पंचवटी के चारों ओर दीवार है और तारबंदी की गई थी ताकि असामजिक तत्व वहां न आ सकें और कोई यहां पर कूड़ा भी न फेंक सकें।
तुलसीराम कहते हैं कि उनके पास ज्यादा पैसा नहीं है लेकिन पेड़ पौधों के संरंक्षण के लिए धन से ज्यादा संकल्प की जरूरत है। लोगों को समझना होगा कि वातावरण को शुद्ध बनाए रखना कितना जरूरी है ऐसे में हर किसी को आगे आना होगा और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना होगा।