कुमुद ने घर की चारदिवारी से निकल दिखाया अपना जौहर,चलाया मैथिली में पहला ई-पेपर
मैथिली भाषा में है 'इसमाद’...
साल 2007 से चल रहा है 'इसमाद’...
6 महिलाओं ने मिलकर शुरू किया था ई-पेपर...
बदलते वक्त के साथ समाज में महिलाओं की भागीदारी और उनकी भूमिका भी बदली है। क्योंकि कुछ दशक पहले तक ये समझा जाता था कि महिलाओं के पास मुश्किल हालात में फैसले लेने का धैर्य नहीं होता, लेकिन अब ये बात गुजरे जमाने की हो गई है। हाल के वक्त में महिलाओं के प्रति लोगों की सोच बदली है आज महिलाएं घर की चारदिवारी से बाहर आकर अपनी पहचान बना रही हैं। आज महिलाओं में इतना आत्मविश्वास आ गया है कि वो समाज में बदलाव लाने की ताकत रखती हैं। तभी तो पटना में रहने वाली कुमुद सिंह जिनका कभी स्कूल जाना नहीं हुआ, आज वो मैथिली भाषा में 'इसमाद’ नाम का ई-पेपर चला रही हैं। ये मैथिली भाषा का पहला ई-पेपर है।
कुमुद सिंह ने अपनी पढ़ाई घर पर ही रहकर की, क्योंकि उनके माता पिता मधुबनी के एक छोटे से गांव में रहते थे और वहां से स्कूल काफी दूर था। इसलिए घर पर ही उनको पढ़ाने के लिए टीचर आते थे। वक्त के साथ जब वो बड़ी हुई तो उनकी शादी हो गई। उनके पति पेशे से पत्रकार हैं। कुमुद के मुताबिक उनके घर में कम्प्यूटर था जिसमें उनके पति अकसर काम किया करते थे और जब उनके बच्चे भी कम्प्यूटर से जुड़ने लगे तो उनको देखते देखते कुमुद का रूझान भी कम्प्यूटर की ओर होने लगा। धीरे धीरे कुमुद का कम्प्यूटर से इतना लगाव हो गया कि आज उनकी फेसबुक में अलग पहचान हैं। जहां पर वो बेबाकी से अपनी राय रखती हैं। आज वो कम्प्यूटर में अपने ई-पेपर से जुड़े सभी काम करती हैं। फिर चाहे खबर ढूंढनी हो या लिखनी हो। वो खुद ही अपने ई-पेपर का पेज कंपोज करती हैं।
दरअसल कुमुद को ई-पेपर शुरू करने का आइडिया अपने पति की परेशानी को देखकर आया। उनका कहना है कि “मेरे पति पेशे से पत्रकार हैं ऐसे में कई बार उनकी लिखी कई खबरों को अखबार में जगह नहीं मिल पाती थी जिस में वो काम करते हैं। इसलिए कई बार वो घर आकर बेहद दुखी होते थे।” तब कुमुद के मन में ख्याल आया कि क्यों ना पति की तकलीफ को थोड़ा कम करने के लिए कुछ किया जाये। इसके लिए उन्होने सोचा कि क्यों ना ऐसा ई-पेपर शुरू किया जाये जिसमें उनके पति की लिखी खबरें भी शामिल की जा सकें जिसे वो आम लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। इसके अलावा उन्होने सोचा कि क्यों ने आम लोगों तक एक दूसरे से जुड़ी सुख दुख की बातें बांटी जाएं। जिसके बाद उन्होने इस बारे में अपने पति से बात की तो उन्होने उनका समर्थन किया और उनको इस काम को शुरू करने के लिए ट्रेनिंग भी दी।
मैथिली भाषा का ये ई-पेपर साल 2007 से बिना रूके, बिना थके चल रहा है। जब कुमुद ने इस काम को शुरू किया तो टीम में सिर्फ 6 लोग थे खास बात ये थी कि वो सभी महिलाएं थी, लेकिन समय के बदलाव के साथ आज कई पुरुष साथी भी इनकी टीम में जुड़ गये हैं। कुमुद का कहना है कि शुरूआत में लोगों के लिए खबरें पाने का ये बिल्कुल नया तरीका नया था। इसलिए लोगों को उनका आइडिया ज्यादा पसंद नहीं आया। लेकिन कुमुद और उनकी टीम ने हौसला नहीं हारा और वो लगातार मेहनत करते रहे। जिसका असर ये हुआ की धीरे धीरे लोगों को ‘इसमाद’ पसंद आने लगा और इसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी है। मैथिली जानने और बोलने वाले लोगों को अब इंतजार रहता है इसमाद का।
मैथिली भाषा में ही ई-पेपर क्यों ? इसके जवाब में कुमुद का कहना है कि “मैं मैथली भाषा में ही काफी सहज महसूस करती हूं, जितना मैं हिन्दी या दूसरी भाषा नहीं करती। इसलिए मेरे लिये मैथली भाषा के अलावा दूसरी भाषा में अखबार निकालना संभव ही नहीं था।” वो बड़ी खुशी से बताती हैं कि इस अखबार को मैथली भाषा में निकालने का एक फायदा ये हुआ कि जो लोग मैथली भाषा नहीं जानते हैं, वो भी अब मैथली भाषा को पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
‘ईसमाद’ ई-पेपर में राजनीतिक और सामाजिक खबरों के अलावा विदेशों की भी खबरें होती हैं। यहां तक की लंदन जैसे शहरों की खबरें भी इनके अखबार में देखने को मिल जाएगी। लेकिन बिहार से जुड़ी खबरें ये अपने अखबार में प्रमुखता से लेती हैं। वहीं इस अखबार में हत्या या लूटपाट जैसी खबरों के लिए इस ई-पेपर में कोई जगह नहीं होती। खबरों के चयन में ये कभी कभार पति की भी राय लेती हैं लेकिन खबरों के मामले में कोई भी अंतिम फैसला इनका खुद का होता है। अपने ई-पेपर के लिए दूसरे शहरों से खबरें किस तरह मंगाई जाती हैं, खबरों का चुनाव किस तरह किया जाता है, उनको किस तरह लिखा जाता है इन सब की जानकारी उन्होने अपने पति से ही हासिल की है। आज कुमुद का दावा है कि उन्होने जो कुछ भी सीखा है वो अपने पति के बदौलत ही सीखा है।
कुमुद का दावा है कि इस ई-पेपर को जितना बिहार में नहीं पढ़ा जाता उससे कहीं अधिक ये विदेशों में पढ़ा जाता है। क्योंकि उनको नियमित तौर पर अलग अलग देशों से लोगों की विभिन्न तरह की ज्यादातर प्रतिक्रियायें मिलती रहती हैं। घर की जिम्मेदारियों के साथ ई-पेपर की जिम्मेदारी को निभाने के सवाल पर उनका कहना होता है कि वो घर की जिम्मेदारियों से थोड़ा वक्त चुराकर अपने ई-पेपर के लिए वक्त निकाल ही लेती हैं। कुमुद का दावा है कि “मुझे शुरूआत से ही इस बात का भरोसा था कि ये ई-पेपर स्थापित होकर ही रहेगा। क्योंकि मुझे आगे ही चलना था, ऐसे में पीछे मुड़ना मेरे लिए संभव नहीं था।” तभी तो उनका ये ई-पेपर आज इंटरनेट की दुनिया में खासा चर्चित है।