अपने खर्च पर पक्षियों का इलाज कर नई जिंदगी देने वाले दिल्ली के दो भाई
प्रकृति में जितना हक हम इंसानों का है उतना ही हक उन बेजुबान पशु-पक्षियों का है जिन्हें हमारी आधुनिकता से बेघर होना पड़ रहा है। आज शहरी इलाकों में विकास की अंधी दौड़ में हमने जानवरों और पक्षियों के जीने की उम्मीदें खत्म कर दी हैं। यही वजह है कि शहरों में अब पशु पक्षियों के लिए कोई ठिकाने नहीं बचे हैं। वहीं अगर कोई पक्षी लाचार हो जाए या घायल हो जाए तो उसकी देखभाल करने के लिए किसी के पास वक्त भी नहीं है। लेकिन दिल्ली में दो भाई पिछले 15 सालों से घायल पक्षियों का इलाज कर इंसानियत की नई मिसाल पेश कर रहे हैं।
दिल्ली के वजीराबाद में रहने वाले नदीम शहजाद और मोहम्मद सऊद अपने घर के बेसमेंट में ही पक्षियों का एक अस्पताल चलाते हैं। खास बात ये है कि उनके पास वेटिरनरी की कोई डिग्री नहीं है और न ही उन्होंने कहीं से डॉक्टरी की तालीम ली है। बस बेजुबानों का दर्द उनसे देखा नहीं गया और वे 'बर्ड सर्जन' बन गए। हालांकि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वे पक्षियों का इलाज करेंगे। लेकिन वे बचपन से ही पक्षियों को आकाश में उड़ता देख अचंभित होते थे और यहीं से उनका पक्षी प्रेम आज यहां पहुंच गया।
बाकी पशु चिकित्सालयों में जहां ज्यादातर पालतू पक्षियों की देखभाल होती है वहीं नदीम और मोहम्मद शिकार करने वाले पक्षियों का इलाज करते हैं। इंडियाटाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक नदीम ने इसकी शुरुआत 2003 में की थी जब उन्हें एक घायल चील मिली थी, जिसे लेकर वे अस्पताल गए, लेकिन मांस खाने की वजह से अस्पताल वालों ने उसका इलाज करने से इनकार कर दिया।
नदीम ने कहा, 'चील काफी बुरी तरह से घायल हो गई थी और उसकी देखभाल की आवश्यकता थी, लेकिन अस्पताल के इनकार करने पर हमने उसे वहीं छोड़ दिया जहां से हमने उसे उठाया था। लेकिन कुछ दिनों बाद हमें फिर से एक घायल पक्षी मिला तो हम उसे लेकर एक जानवरों के डॉक्टर के पास ले गए। तब से घायल पक्षियों का इलाज करने का सिलसिला चलता रहा जो अब तक जारी है। हम आज भी ज्यादा गंभीर रूप से घायल पक्षियों को लेकर डॉक्टर के पास जाते हैं।'
पक्षियों का इलाज करने के बारे में जब लोगों को मालूम चला तो उन्होंने नदीम और सऊद की काफी तारीफ की। इसके बाद जब भी कोई पक्षी घायल अवस्था में दिखता तो लोग उसे लेकर नदीम के पास आते। सऊद सिर्फ हाईस्कूल पास हैं और उन्होंने इंटरनेट से पक्षियों के इलाज से जुड़ी जानकारी इकट्ठा की। वे बताते हैं कि पतंग उड़ाने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में बिकने वाला चाइनीज मांझा इन पक्षियों के घायल होने की सबसे बड़ी वजह है। उन्होंने बताया कि प्रतिबंधित करने के बाद भी इनका बड़े पैमाने पर पतंगबाजी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
वे कहते हैं, 'इन मंझों पर कांच का लेप चढ़ा होता है जो कि इंसानों को लिए भी खतरनाक हैं। चील जैसे पक्षी अक्सर पेड़ों से लटके हुए टूटे तारों के अंदर फंस जाते हैं या कभी-कभी आकाश में उड़ते वक्त फंस जाते हैं। इन मंझों से मांस और यहां तक कि उनकी हड्डियां तक कट जाती हैं। एक छोटी सी चोट भी उन्हें असहाय कर देती है क्योंकि वे उड़ने के काबिल नहीं रह पाते हैं।' शुरू में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि पक्षियों की चोटों का इलाज कैसे किया जाए।
मोहम्मद कहते हैं, 'हमने कभी पक्षियों की सर्जरी के बारे में नहीं सुना था। यहां तक कि पशु चिकित्सकों का कहना था कि पक्षियों का मांस काफी नर्म होता है इसलिए उनकी सर्जरी नहीं की जा सकी। लेकिन हमें लगा कि अगर हम इन्हें नहीं बचाएंगे तो ये तड़पते हुए मर जाएंगे। इसलिए हमने एक बार कोशिश की और हम सफल भी हुए।' आज वे इतनी सफलतापूर्वक पक्षियों का इलाज करते हैं कि पशुओं के डॉक्टर भी उनसे सीखने के लिए आते हैं।
आज तक वे 15,000 से भी ज्यादा पक्षियों का इलाज कर चुके हैं। उनके पास हर एक पक्षी का रिकॉर्ड है। वे पक्षियों के चोट का प्रकार, तारीख और इलाज में दी गई दवाओं तक का रिकॉर्ड रखते हैं। आम आदमी, दिल्ली पुलिस, फायर ब्रिगेड वाइल्डलाइफ रेस्क्यू जैसे संस्थान भी उनकी मदद लेते हैं। नदीम बताते हैं कि हर रोज उन्हें औसतन 3 से 4 केस मिलते हैं। वे बताते हैं, 'अगर पुलिस या फायर ब्रिगेड द्वारा हमें कॉल आती है तो हमें पता होता है कि वे पक्षियों को वेटरनरी डॉक्टर के पास ले जाएंगे जहां वे साधारण पट्टी बांध कर पक्षी को छोड़ देते हैं। लेकिन हम घायल पक्षियों की अच्छे से देखरेख करते हैं।'
नदीम चोटों की पहचान करने के लिए पक्षी को पूरी तरह से स्पर्श के सहारे देखते हैं। इसके बाद चोटों की जांच कर यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि पक्षी का ऑपरेशन होगा या फिर वे साधारण दवा से ठीक हो जाएंगे। एक और चुनौती होती है पक्षियों के ठीक होने का प्रॉसेस। उन्हें ठीक होने में काफी वक्त लगता है। कई बार तो महीनों लग जाते हैं। इस स्थिति में नदीम पक्षियों को अपनी छत पर बनाए एक शेल्टर में छोड़ देते हैं। ये पक्षी तब तक वहीं रहते हैं जब तक कि वे उड़ने के लायक न हो जाएं। सबसे खास बात ये है कि इन पक्षियों के इलाज में आने वाला खर्च दोनों भाई खुद ही वहन करते हैं। वे कहते हैं कि पक्षियों के दोबारा आसामान में उड़ने की खुशी की कोई कीमत नहीं हो सकती। पक्षियों की दवाओं से लेकर खाने पीने तक हर महीने लगभग 50,000 रुपये का खर्च आता है। एक बिजनेस फैमिली से संबंध रखने के नाते वे इस खर्च को वहन कर लेते हैं।
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