एक शख्स ने आदिवासियों के लिए छोड़ी बड़ी नौकरी, मोबाइल से आज कर रहा है उनकी समस्याओं का समाधान
अकसर कहा जाता है कि अच्छा आदमी वो है जो इस दुनिया में सफलता पाए, लेकिन उससे अच्छा आदमी वो कहलाता है जो सफलता तो पाए पर अपनी जड़ों को और मजबूत बनाए। जड़ों की मजबूती के लिए उसमें ज़रूरी कदम उठाए और फिर उसको हरा-भरा कर दे। पत्रकारिता के क्षेत्र में दुनिया के बड़े संस्थानों बीबीसी और गार्डियन में दो दशक तक काम करने वाले एक शख्स को आखिरकार अपनी मिट्टी खींच लाई और उसने वो काम करना शुरू किया जिससे लोग जागरुक हो सकें। शुभ्रांशु चौधरी, एक ऐसे शख्स जिन्होंने आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों की दिक्कतों को जाना, नक्सल समस्या की वजह तलाशी और फिर आधुनिक संचार माध्यमों जैसे मोबाइल और इंटरनेट के जरिये उन चीजों का हल खोजने की कोशिश की। ये कहानी उस इंसान की है जिसने एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया, जिसके जरिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है और जहां पर आम आदमी भी रिपोर्टर बन कर अपनी समस्या दूसरों के सामने बेबाक तरीके से रख सकता है। वो भी सिर्फ अपने मोबाइल फोन के जरिये।
शुभ्रांशु चौधरी छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले के मनेंद्रगढ़ में पले पढ़े। इसलिए बचपन से इन्होंने आदिवासियों के रहन-सहन, उनकी गरीबी और उनकी ज़िंदगी से वाकिफ थे। बचपन में जो बातें ज़ेहन में बैठ गईं वो दरअसल पत्रकारिता जीवन में और मजबूत होने लगीं। बस जब सही समय आया तो शुभ्रांशु चौधरी ने उसको एक आकार दे दिया।
असल में जिस इलाके से शुभ्रांशु आते हैं, ये वो इलाका है जहां पर देश के सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं और इन इलाकों में नक्सल समस्या काफी ज्यादा है। इन इलाकों में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं आदिवासियों की पहुंच से काफी दूर हैं। इतना ही नहीं प्रशासन तक अपनी बात कैसे पहुंचानी है, अशिक्षा के कारण यहां के लोग ये भी नहीं जान पाते। लेकिन अब इस इलाके में बदलाव देखने को मिल रहा है और वो भी शुभ्रांशु चौधरी की एक कोशिश की वजह से। ये उन्हीं की कोशिशों का नतीजा है कि अब आदिवासी लोग अपनी जुबान में, अपने तरीके से प्रशासन तक ना सिर्फ अपनी शिकायत बेहिचक पहुंचा रहे हैं बल्कि उन पर दबाव बनाकर अपने इलाके के अधूरे कामों को भी पूरा करा रहे हैं।
पेशे से पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी के मुताबिक
“अगर हम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल रचनात्मक तरीके से करें तो उसके परिणाम काफी अच्छे आएंगे। प्रौद्योगिकी के जरिये हम कई समस्याओं का निपटारा कर सकते हैं और हम शांति का माहौल तैयार कर सकते हैं अगर मीडिया का इस्तेमाल लोकतात्रिंक तरीके से हो।”
‘सीजी नेट स्वर’ जिसका शाब्दिक अर्थ है सेंट्रल गोंडवाना की आवाज। ये वो प्लेटफॉर्म है जहां पर आदिवासियों की समस्याओं को रखा जाता, उनको सुना जाता है, उस समस्या का हल निकालने की कोशिश की जाती है और ये सब होता है एक मोबाइल फोन के जरिये।
शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि आज के दौर में मोबाइल हर किसी की जेब में रहता है, इसलिए गोंडवाना इलाके में रहने वाला कोई भी आदिवासी 8050068000 पर सम्पर्क कर अपनी बात रिकॉर्ड कर सकता है। जिसके बाद ‘सीजी नेट स्वर’ की टीम उस समस्या को सुनती है उस पर काम कर उस समस्या की सच्चाई जानने की कोशिश करती है। जिसके बाद ‘सीजी नेट स्वर’ की वेबसाइट पर उस ऑडियो को अपलोड कर दिया जाता है। ताकि दूसरे लोग भी उस समस्या को सुन सकें। खास बात ये है कि जिस व्यक्ति को कोई समस्या होती है उसके लिए उसे बताना होता है कि उसने उस समस्या को दूर करने के लिए क्या कोशिश की, किन अफसरों से वो मिला और कौन लोग उसकी समस्या को दूर कर सकते हैं। इसके लिए उसे उन लोगों का फोन नंबर भी रिकॉर्ड कराना होता है। साथ ही संदेश देने वाला लोगों से निवेदन करता है कि वो सम्बन्धित अफसर को फोन कर उसकी समस्या को दूर करने को कहे। जिसके बाद कोई भी आम व्यक्ति सम्बन्धित अफसर को फोन कर उसे काम करने को कह सकता है। इस तरह जहां प्रशासनिक अफसरों पर काम करने का दबाव पड़ता है, वहीं समस्या से अनजान अफसर भी काम करने को राजी हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए अगर किसी गांव में कोई टीचर नहीं आता तो उसकी शिकायत ‘सीजी नेट स्वर’ के प्लेटफॉर्म में की जा सकती है। जिसके बाद दूसरे लोग बताए गए फोन नंबर पर टीचर पर स्कूल पहुंचने का दबाव डालते हैं। इस तरह ना सिर्फ समस्या का समाधान हो जाता है, बल्कि दूसरों को भी ताकत मिलती है कि वो भी अपनी समस्याएं लोगों के सामने रख उसको सुलझा सकें। शुभ्रांशु ने योर स्टोरी को बताया,
“हम लोगों को इस बात की ट्रैनिंग देते हैं कि वो अपनी बात किस तरह रख सकें, इसके लिए हम जगह जगह नुक्कड़ नाटक, कठपुतली नृत्य का आयोजन करते हैं। यही वजह है कि आज हजारों आदिवासी पत्रकार बन चुके हैं जो अपने इलाके की समस्यायें उठाते हैं और दूसरे लोगों के साथ साझा करते हैं।”
शुभ्रांशु चौधरी के मुताबिक वो साल 2004 में रेडियो के जरिये लोगों की समस्याएं एक दूसरे तक पहुंचाने की कोशिश करना चाहते थे, लेकिन कुछ दिक्कतों के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। जिसके बाद साल 2009 में उनको ये आइडिया आया कि मोबाइल को इंटरनेट से जोड़कर एक ऐसी ताकत बनाया जाये जो लोगों की समस्याएं सुलझाने में मददगार बन सके। गोंडी भाषा का ये प्लेटफॉर्म आज ना सिर्फ छत्तीसगढ़ में बल्कि यूपी, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में आदिवासियों के बीच काफी प्रसिद्ध है। वो बताते हैं कि उनके इस प्लेटफॉर्म का फायदा हजारों लोग उठा चुके हैं। शुभ्रांशु चौधरी के अनुसार उनके पास हर रोज औसतन डेढ़ सौ मोबाइल संदेश आते हैं। इन संदेशों में लोग ना सिर्फ अपनी समस्याएं बल्कि अपनी पसंद-नापसंद का भी जिक्र करते हैं।
‘सीजी नेट स्वर’ 45 लोगों की एक टीम है। जो भोपाल में रहकर इस सारे काम को देखती है। पूरी तरह ग्रांट पर निर्भर ‘सीजी नेट स्वर’ को शुभ्रांशु चौधरी अब अगले स्तर पर ले जाना चाहते हैं और वो है ‘ब्लू टूथ रेडियो’। इसके जरिये गांव के लोग अपने सामान्य मोबाइल फोन में अपनी भाषा में अपनी बात करते हैं, अपने गीत रिकॉर्ड करते हैं। जिसके बाद उन्हें इंटरनेट रेडियो का रूप देकर हर उस ग्राम पंचायत में भेज दिया जाता है जहां पर ब्रॉडबैंड की सुविधा होती है। इसके बाद गांव का एक व्यक्ति ग्राम पंचायत के दफ्तर में आकर अपने ब्लूटूथ वाले मोबाइल फोन में उस रेडियो कार्यक्रम को डाउनलोड कर लेता है और अपने गांव वापस आकर उसी कार्यक्रम को ब्लू टूथ की मदद से दूसरों के मोबाइल में बगैर किसी खर्च के साझा कर सकता है।
इसके अलावा शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि अब तक उनके प्लेटफॉर्म में ज्यादातर स्थानीय समस्याओं को उठाया जाता है लेकिन अब उनकी योजना कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी ऐसा ही कुछ करने की है ताकि लोग एक दूसरे के साथ अपनी जानकारी साझा कर सकें। इसके अलावा उन्होने रेडियो स्टेशन को खोलने का सपना अभी छोड़ा नहीं है। इसके लिए वो निरंतर कोशिश में जुटे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक समाज के उस तबके की आवाज पहुंच सके जिसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। समाज के उस व्यक्ति को वो ताकत मिल सके जो आज सबसे पीछे खड़ा है।