बच्चों सी उम्र में जरूरतमंद बच्चों को जीना सिखा रही यह लड़की
इस एनजीओ में ऐसे बच्चे, जो कल तक अपनी आम जरूरतों से जूझ रहे थे, अब वे समाज को शिक्षित रखने का माद्दा रखते हैं। यहां पर बच्चों को लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता, जातिगत भेदभाव से बचने तक की शिक्षा दी जाती है।
मेघना कहती हैं कि जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि हमारे समाज में लोग एक-दूसरे की ही मदद करने को तैयार नहीं हैं, तब उन्होंने लोगों के बीच आपसी तालमेल को बेहतर करने की दिशा में काम करना शुरू किया।
मेघना ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि फिलहाल उनके सेंटर में तीसरी से बारहवीं कक्षा तक के बच्चे पढ़ रहे हैं। बच्चे सुबह 5.30 बजे उठते हैं और योगा करते हैं। सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक पढ़ाई करते हैं।
हम बात करने जा रहे हैं 2015 में स्थापित 'मेक द वर्ल्ड वंडरफुल' नाम के एनजीओ की, जिसकी शुरूआत करने वाली लड़की की उम्र महज 19 साल है। इस संगठन की मदद से गरीब और जरूरतमंद बच्चों को न सिर्फ पाठ्यक्रम संबंधी शिक्षा दी जा रही है, बल्कि उन्हें सामाजिक मुद्दों के संबंध में भी जागरूक और शिक्षित किया जा रहा है। इस सोच के पीछे हैं मेघना डाबरा, जिन्होंने हैदराबाद के पास इस एनजीओ की शुरूआत की है।
क्या है उद्देश्य
इस एनजीओ की अवधारणा बच्चों के उपयुक्त मानसिक विकास पर केंद्रित है। आमतौर पर हम समाज में देखते हैं कि कई पढ़े-लिखे लोग भी रूढ़िवादिता से ग्रसित होते हैं। मेघना ने इस चुनौती को हराने के लिए ही इस दिशा में काम करना शुरू किया। इस एनजीओ में ऐसे बच्चे, जो कल तक अपनी आम जरूरतों से जूझ रहे थे, अब वे समाज को शिक्षित रखने का माद्दा रखते हैं। यहां पर बच्चों को लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता, जातिगत भेदभाव से बचने तक की शिक्षा दी जाती है। यहां से बच्चे न सिर्फ शिक्षित होकर बल्कि एक बेहतर इंसान बनकर निकलते हैं और यही इस संगठन का उद्देश्य है।
कैसी मिली प्रेरणा
मेघना की परवरिश आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में हुई। वह बताती हैं कि वह अपनी मां की कहानियां सुनकर बड़ी हुईं और उनकी इस मुहिम में उन कहानियों का खास योगदान रहा है। मेघना कहती हैं कि जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि हमारे समाज में लोग एक-दूसरे की ही मदद करने को तैयार नहीं हैं, तब उन्होंने लोगों के बीच आपसी तालमेल को बेहतर करने की दिशा में काम करना शुरू किया।
मिली आईबी ग्रुप की मदद
उम्र बढ़ने के साथ ही मेघना को इस बात का अहसास हुआ कि मुहिम की शुरूआत से पहले उन्हें खुद भी सही मार्गदर्शन की जरूरत है। इसलिए मेघना ने आईबी ग्रुप के मेंटरशिप प्रोग्राम में दाखिला ले लिया। इस प्रोग्राम के तहत वैल्यू बेस्ड एजुकेशन (मूल्य आधारित शिक्षा) के बारे में पढ़ाया जाता है। कुछ सालों बाद, जब मेघना 17 साल की हुईं तो उन्होंने अपना संगठन शुरू करने का फैसला लिया।
आईबी ग्रुप की मदद से ही मेघना ने अपनी टीम जोड़ना शुरू किया। धीरे-धीरे उनके साथ हैदराबाद से ख्याति, कैलिफोर्निया से सौम्या कतूरी (18) और न्यूयॉर्क से प्रणीता गरिमेला (20) भी जुड़ गए। इस संजीदा मुहिम के लिए लोग टीम के सदस्यों की उम्र को कम आंक सकते हैं, लेकिन मेघना इससे इत्तेफाक नहीं रखतीं। उनके मुताबिक यही सही समय था। उनको अपनी टीम पर पूरा भरोसा था। उनका कहना है कि उम्र उनके लिए सिर्फ एक नंबर थी, उन्हें अपना लक्ष्य ठीक तरह से पता था और वह उसके लिए काम करने को तैयार थीं।
समाज बना रोड़ा, मिला अपनों का साथ
मेघना ने बताया कि जब उन्होंने इस काम को शुरू करने का फैसला लिया, तब हमेशा की तरह समाज उनके सामने सवालों की लंबी लिस्ट लिए खड़ा था, लेकिन उन्हें पता था कि वह क्या कर रही हैं और क्यों कर रही हैं। साथ ही, मेघना अपने माता-पिता और आईबी ग्रुप से मिले समर्थन को भी अपना धन्यवाद देती हैं।
सौम्या और प्रणीता 5 साल पहले भारत वापस लौटे हैं। टीम के चारों सदस्य डिस्टेन्स लर्निंग से बिजनस ऐडमिनिस्ट्रेशन में बैचलर्स कर रहे हैं। मेघना कहती हैं कि अपने एनजीओ के लिए काम करते हुए वह ऐसी बहुत सी बातें सीख पाती हैं, जो सिर्फ किताबों की मदद से नहीं सीखी जा सकतीं।
मेघना को अहसास हुआ कि समाज में सामन्जस्य बिठाने के लिए सबसे पहले लोगों के दृष्टिकोण को सुधारने की जरूरत है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया कि हम खुद की तरफ और हमारे आस-पास के समाज के बारे में क्या राय बनाते हैं, यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। मेघना ने इस वजह से ही बच्चों के दिमाग को शुरूआती उम्र से ही इन सामाजिक मूल्यों के बारे में सही दिशा देने का फैसला लिया।
क्या है मेघना की प्लानिंग
मेघना और टीम का लक्ष्य है कि 2023 तक अपने प्रोग्राम के 2,500 केंद्र खोले जाएं। अपने प्रोग्राम (चाइल्ड अडॉप्शन प्रोग्राम, CAP)के बारे में जानकारी देते हुए मेघना ने बताया कि वह आने वाली पीढ़ी को बेहतर सामाजिक मूल्यों और संस्कृति के माहौल में बढ़ते देखना चाहती हैं। वह अपने इस प्रोग्राम को पूरी दुनिया में फैलाना चाहती हैं।
मिलती हैं ये सुविधाएं
अभी उनका प्रोग्राम बतौर पायलट प्रोजेक्ट काम कर रहा है, जिसके तहत जरूरतमंद बच्चों को खाने, रहने, पढ़ने और अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। मेडचल (हैदराबाद) में स्थित केंद्र, एक तीन मंजिला इमारत है, जिसे लीज पर लिया गया है। इस केंद्र में स्टडी रूम्स, लाइब्रेरी, एक हॉल, कंप्यूटर लैब्स, सोने के लिए दो बड़े हॉल्स, चार बेडरूम्स, एक किचन, एक गार्डन और खुले मैदान, सभी की सुविधाएं उपलब्ध हैं। हर बच्चे के पास अपना बेड, स्टडी टेबल और चेयर आदि सामग्री है।
कहां से मिलता है फंड
संगठन की फंडिंग के बारे में मेघना ने बताया कि उन्हें, समाज सेवा के लिए तत्पर अपने करीबी लोगों और आईबी ग्रुप की मदद से तैयार नेटवर्क से जुड़े लोगों से आर्थिक सहायता मिलती है।
मेघना ने बताया कि उनका संगठन नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग के प्रोग्राम को फॉलो करता है। यह राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित है और इसे वही दर्जा प्राप्त है जो सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड्स को प्राप्त है।
मेघना ने जानकारी दी कि उनके प्रोग्राम के पाठ्यक्रम को भारत के शीर्ष संस्थानों के बच्चों की सहायता से तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि उनके प्रोग्राम को स्कूलों और कॉलेजों में शुरू किया जा सकता है।
कैसा होती है दिनचर्या
मेघना ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि फिलहाल उनके सेंटर में तीसरी से बारहवीं कक्षा तक के बच्चे पढ़ रहे हैं। बच्चे सुबह 5.30 बजे उठते हैं और योगा करते हैं। सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक पढ़ाई करते हैं। इस बीच उन्हें एक लंच ब्रेक भी मिलता है। पढ़ाई के अलावा अन्य चीजें भी सीखते हैं। जैसे कि हफ्ते में दो बार डांस क्लास होती है, हफ्ते में तीन बार बच्चों को कुंग फू सिखाया जाता है। खेलने के लिए बच्चों को रोजाना शाम 4 बजे से 6 बजे तक का समय दिया जाता है। मेघना ने बताया कि उन्होंने हर बच्चे के लिए मेंटर्स रखे हैं। सोने से पहले बच्चों के लिए पर्सनल डिवेलपमेंट, स्टोरी टेलिंग और विजुअलाइजेशन के सेशन्स भी आयोजित किए जाते हैं।
कैसी होती है बच्चों की डाइट
मेघना ने बताया कि उनका संगठन सर्टिफाइड डाइटीशियन की सलाह से तैयार किया गया डाइट प्लान ही फॉलो करता है। बच्चों को फल, ब्राउन और वाइट राइस, खिचड़ी, दाल और रोटी इत्यादि परोसा जाता है। हर महीने बच्चों की फिजिकल जांच भी होती हैं और उनके बॉडी-मास इंडेक्स का भी ध्यान रखा जाता है।
बच्चों के पास बदलाव की कहानी
अपने प्रोग्राम का हिस्सा बनीं मैना की कहानी साझा करते हुए मेघना ने बताया कि वह नलगोंडा नाम के एक छोटे से गांव की रहने वाली है। तलाक के बाद उसकी मां को बड़ी कठनाइयों का सामना करना पड़ा। मैना को नर्स की नौकरी करनी पड़ी और शाम के वक्त में वह सड़क पर सब्जियां बेचने लगी। मैना स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन हालात ने साथ नहीं दिया। इसके बाद मैना की मुलाकात मेघना से हुई और वह इस कार्यक्रम का हिस्सा बन गई। मेघना ने बताया कि जब मैना सेंटर पर आई, तब खराब अनुभवों के चलते उसका स्वभाव बहुत चिड़चिड़ा हो गया था, लेकिन फिर सेंटर में उसकी देख-रेख के बाद अब वह सामान्य हो गई है और अपने जीवन को सही दिशा दे रही है। मेघना कहती हैं कि उनके सेंटर पर 50 बच्चे हैं और हर बच्चे के पास अपने जीवन में बदलाव की एक कहानी है।
यूएन तक पहुंच चुकी है टीम
मेघना की चार लोगों की कोर टीम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे यूएन की यूथ असेंबली तक में अपना लोहा मनवा चुके हैं। देश में वे बीआईटी (मेसरा), आईआईआईटी आरके वैली, एनआईटी (रायपुर) और आईआईटी खड़गपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, इसरो के पूर्व प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. टीजीके मूर्ति, तेलंगाना के आईटी मंत्री श्री केटी रामाराव, तेलंगाना के डीजीपी श्री अनुराग शर्मा जैसी नामचीन हस्तियां मेघना की टीम और उनके कार्यक्रम की तारीफ कर चुके हैं। मेघना की टीम अपनी पूरी यात्रा का ब्योरा तैयार कर रही है, जिससे कि कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में आसानी हो।
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