हिंदी मीडियम से कैसे बना जा सकता है IAS, बता रहे हैं UPSC टॉपर IAS निशांत जैन
आज युवाओं के पास करियर बनाने के कई सारे विकल्प मौजूद हैं। लेकिन एक चीज में कोई बदलाव नहीं आया और वो है आईएएस बनने का ख्वाब। ये एक ऐसा ख्वाब है जो हमेशा से युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा।
हम हिंदी माध्यम के युवाओं की परवरिश कुछ ऐसी हुई होती है कि हमें हमेशा लगता रहता है कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले लोग हमसे बेहतर हैं। इससे हमारे अंदर एक तरह की हीन भावना भर जाती है। इससे हमारा आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम अपने आस पास देखें तो कुछ साल पहले की तुलना में हमें काफी कुछ बदला नजर आता है, फिर चाहे वो समाज के सोचने का नजरिया हो या फिर खाने और पहनने से जुड़ी आदतें। बदलते वक्त के साथ जीने का अंदाज के साथ ही एक और चीज बदली और वो है युवाओं की करियर से जुड़ी रुचियां। आज युवाओं के पास कई सारे विकल्प मौजूद हैं। लेकिन एक चीज में कोई बदलाव नहीं आया और वो है आईएएस बनने का ख्वाब। ये एक ऐसा ख्वाब है जो हमेशा से युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा। आज भी न जाने कितने युवा बड़ी-बड़ी कंपनियों की मोटे पैकेज वाली नौकरियां छोड़कर यूपीएससी की तैयारी करने लगते हैं और आईएएस बन जाते हैं।
कभी यूपी और बिहार जैसे राज्यों का लगभग हर युवा आईएएस बनने के बारे में सोचता जरूर था और आर्ट्स बैकग्राउंड के लोगों को तो मान लिया जाता था कि वे यूपीएससी की तैयारी ही करेंगे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसी पढ़ाई करने वाले युवा आईएएस की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और बड़ी संख्या में चयनित भी हो रहे हैं। लेकिन चिंता की बात ये है कि चयनित उम्मीदवारों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं की संख्या लगातार कम होती गई। हालत ये हो गई कि टॉप 100 उम्मीदवारों में हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले लोगों के नाम बड़ी मुश्किल से खोजने से मिलते हैं। इस चिंता के बीच एक सुखद खबर सुनने को मिली जब साल 2014 की यूपीएससी की परीक्षा में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी निशांत जैन को 13वीं रैंक मिली। उनका इस यूपीएससी में चयनित होना और आईएएस बनना आज भी हिंदी अभ्यर्थियों में आत्मविश्वास भर रहा है।
निशांत राजस्थान कैडर के आईएएस अफसर हैं और फिलहाल माउंट आबू में एसडीएम के पद पर कार्यरत हैं। हमने उनसे यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने से जुड़ी कुछ बातें कीं, उम्मीद है कि आईएएस बनने का सपना देखने वाले युवाओं के लिए ये बातें उपयोगी साबित होंगी:
योरस्टोरी: बीते एक दशक से यूपीएससी को लेकर एक बहस चल रही है कि अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी और बाकी भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों का चयन कम होता है। आपको क्या लगता है कि ये सिस्टम की खामी है या हिंदी या फिर बाकी भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की तैयारी में ही कुछ कमी है।
निशांत जैन: देखिए, एक लाइन में इस सवाल का जवाब दिया नहीं जा सकता है, लेकिन मैं अपने सीमित अनुभव के आधार पर कुछ बातें कह सकता हूं। आप देखिए कि मेरी पूरी पढ़ाई हिंदी माध्यम से हुई। मैंने यूपीएसएसी का एग्जाम भी हिंदी में दिया यहां तक कि मेरा ऑप्शनल भी हिंदी साहित्य था। मुझे 13वीं रैंक मिली और उसमें भी अगर मेन्स में मिले अंकों की बात करें तो मुझे मुख्य परीक्षा में तीसरे सर्वाधिक अंक मिले। जहां तक हिंदी माध्यम में यूपीएससी देने की बात है तो मुझे दो बातें समझ में आती हैं- एक तो हिंदी में अच्छे मटीरियल और सोर्स की कुछ कमी है। उदाहरण के तौर पर करेंट अफेयर्स कवर करने के लिए अंग्रेजी में द हिंदू अखबार है, लेकिन उसके मुकाबले हिंदी में कोई अखबार नहीं दिखता। हालाँकि अब इस समस्या का समाधान काफ़ी हद तक हो गया है और ज़्यादातर सभी सरकारी और उत्कृष्ट निजी प्रकाशनों के हिंदी अनुवाद बाज़ार में उपलब्ध हैं।
दूसरी बात ये कि हम हिंदी माध्यम के युवाओं की परवरिश कुछ ऐसी हुई होती है कि हमें हमेशा लगता रहता है कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले लोग हमसे बेहतर हैं। इससे हमारे अंदर एक तरह की हीन भावना भर जाती है। इससे हमारा आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और हम परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। जबकि मेरी सफलता का कारण यह है कि मेरे अंदर रत्ती भर भी हीनभावना नहीं थी। मुझे ये लगता था कि अगर मैं अच्छे उत्तर लिखूंगा तो अच्छे नंबर मिलने तय हैं।
योरस्टोरी: अक्सर यूपीएससी क्लियर करने वाले युवा यही कहते हैं कि आईएएस बनने के लिए कोई फॉर्म्यूला नहीं है। लेकिन सबके इंटरव्यू में कुछ बातें एक सी होती हैं, चाहे वो स्टडी मटीरियल की बात हो या फिर मेहनत को लेकर?
निशांत: नहीं, नहीं ऐसा नहीं है। किताबें जरूर एक सी हो सकती हैं लेकिन हर व्यक्ति का पढ़ाई का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ लोग कम घंटे पढ़कर भी अच्छा कर जाते हैं और कुछ लोग ज्यादा घंटे पढ़कर भी क्वॉलिफाई नहीं होते हैं। कुछ लोगों ने नौकरी के साथ तैयारी की और कुछ लोग ऐसे रहे जिन्होंने नौकरी ही नहीं की। तो हर व्यक्ति की अपनी क्षमताएं और बैकग्राउंड हैं और उसी के हिसाब से उसे तैयारी की रणनीति बनानी चाहिए।
योरस्टोरी: आपके मुताबिक यूपीएससी की तैयारी के लिए न्यूनतम कितना समय पर्याप्त हो सकता है। क्या ज्यादा घंटे पढ़ाई करने से सफलता आसान हो जाती है?
निशांत जैन: अगर सिलेबस और परीक्षा चक्र को देखें तो एक से डेढ़ साल तो चाहिए ही होते हैं। इसके बाद आपको अगला अटेंप्ट देने के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि एक बार में आपका चयन नहीं होता है तो फिर से उसी लगन से परीक्षा की तैयारी करनी होगी।
योरस्टोरी: UPSC हर बार अभ्यर्थियों को चकमा देता है और ऐसे सवाल पूछ लेता है कि अभ्यर्थी देखकर ही घबरा जाएं। इससे निपटने के लिए युवा कैसी तैयारी करें?
निशांत जैन: यूपीएससी की खासियत है कि इसमें सफल होने का कोई फिक्स फॉर्म्यूला नहीं है। लेकिन एक बात है कि सिलेबस तय है और हर विषय एक दूसरे से इस तरह जुड़ा हुआ है कि हम कुछ भी अलग नहीं कर सकते। इसलिए हमें हर विषय को एक दूसरे से जोड़ते हुए पढ़ना चाहिए। यहां तक कि करेंट अफेयर्स को भी। दूसरी बात, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र के जो अलग-अलग खंड हैं वे भी एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। जैसे भूगोल का अर्थव्यवस्था से काफी गहरा संबंध है तो अर्थव्यवस्था का असर राजनीति और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों पर भी पड़ता है। तो इस संबंध को पहचानने की जरूरत है और बिना किसी विचारधारा से प्रभावित हुए संतुलित रहकर बगैर अगर आप उत्तर लिख पाएं तो ज्यादा अंक मिलने की संभावना रहती है।
योरस्टोरी: हिंदी साहित्य विषय ऑप्शनल के लिए इतना चर्चित क्यों हो रहा है जबकि इसमें पढ़ी हुई चीजें बाकी के पेपर के लिए लाभदायक नहीं होतीं?
निशांत जैन: मेरा मानना है कि जब आप अपने वैकल्पिक विषय का चुनाव करें तो ये न सोचें कि यह विषय सामान्य अध्ययन के पेपर के लिए काम आएगा। आप वही विषय लें जिसमें आप अच्छे नंबर ला सकते हैं। उदाहरण के तौर पर आप सामान्य अध्ययन में इतिहास खंड की पढ़ाई करेंगे तो आप ज्यादा गहराई में नहीं जाएंगे, लेकिन वहीं अगर आप इतिहास को अपना वैकल्पिक विषय बनाएंगे तो आपको विषय की गहराई में जाना होगा। हिंदी साहित्य विषय की खासियत यह है कि इसमें आपको अंग्रेजी में परीक्षा देने वाले लोगों से मुकाबला नहीं करना पड़ेगा क्योंकि इसे तो हिंदी में ही लिखना पड़ता है। साथ ही इसमें निश्चित सिलेबस है और ख़ुद को ज़्यादा अपडेट नहीं करना पड़ता।
योरस्टोरी: सिविल सेवा परीक्षा में लगभग 25 सर्विस हैं, लेकिन हर कोई आईएएस ही क्यों बनना चाहता है, क्या इससे बाकी सेवाओं की उपेक्षा नहीं होती?
निशांत जैन: इसमें उपेक्षा की कोई बात नहीं है। ये आपकी चॉइस है। फिर भी आप देखते हैं कि अधिकांश अभ्यर्थी आई.ए.एस. को पहले विकल्प के रूप में भरते हैं। आप पिछले तीन चार साल के रिजल्ट देख लीजिए। टॉपर्स की लिस्ट में अधिकतर लोग वही हैं (गौरव अग्रवाल, इरा सिंघल, अनुदीप दुरीशेट्टी आदि) जो किसी दूसरी सर्विस (जैसे आई.आर.एस. में रहकर पुनः परीक्षा देकर आई.ए.एस. बने)
योरस्टोरी: आपने एक साक्षात्कार में कहा कि सफलता किसी मुकाम का अंत नहीं बल्कि यह एक अंतहीन सफर है। आप अभी जहां पहुंचे हैं वहां आपको ऐसी कौन सी समस्याएं देखने को मिलीं जिन्हें आपने दूर करने का प्रयास किया? या उन्हें दूर करना चाहते हैं।
निशांत जैन: वैसे तो प्रशासन का हिस्सा होने के नाते आपको सारे काम करने होते हैं, और हम नियमित रूप से क़ानून व्यवस्था, भूमि सम्बंधी विवाद, निर्वाचन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क-बिजली-पानी, ग्रामीण व शहरी विकास आदि क्षेत्रों में काम करते ही हैं। पर मुझे लगता है कि हर व्यक्ति की रुचियां/ रुझान अलग होते हैं। मेरा पैशन शिक्षा में है और इस वजह से मैं इस शिक्षा के क्षेत्र में काम कर इसे बेहतर बनाना चाहता हूं। इस दिशा में लगातार प्रयत्न भी कर रहा हूं।
उदाहरण के तौर पर, मैं छुट्टी के दिन भी ट्राइबल हॉस्टल का दौरा करने चला जाता हूं। इन हॉस्टल में आदिवासी समुदाय की गरीब बच्चियां रहकर पढ़ाई करती हैं। मैंने एक चीज और की है कि अलग-अलग विभागों के जो अधिकारी मेरे साथ काम करते हैं मैंने उन्हें एक-एक हॉस्टल गोद दे दिया है। अब ये अधिकारी अपने-अपने हॉस्टलों की अतिरिक्त देखरेख करते हैं। अभी हाल फिलहाल में यूपी और बिहार में बाल गृहों में बच्चों के उत्पीड़न की घटनाएं सामने आई हैं, तो मुझे लगा कि हम लोग हॉस्टल की जांच करने तो चले जाते हैं लेकिन ये जानने की कोशिश नहीं करते कि उन बच्चों के मन में क्या चल रहा है। तो मैंने इन अधिकारियों को बच्चों के साथ घुलमिलकर बात कर के उन्हें समझने की जिम्मेदारी दे दी है। ख़ुशी की बात है कि मेरे अधिकारियों-कर्मचारियों ने इस पहल को दिल से अपनाया है और वे होस्टल के बच्चों से अनौपचारिक बात-चीत कर रहे हैं।
योरस्टोरी: आईएएस बनने के पहले और अब आपको लिए दुनिया कितनी बदल गई है?
निशांत जैन: दुनिया बदली तो है। इस नौकरी में इसमें आपको सम्मान बहुत मिलता है, लेकिन एक बात कही जाती है कि बड़ी ताकत के साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी आती हैं। फिर जिम्मेदारी को निभाने की चुनौती भी आपके पास होती है। अगर पर्सनल लेवल की बात करूं तो कई सारी चीजें बदली हैं, अब वैसे छुट्टियां नहीं मिलतीं, अपने मन से घूमने नहीं जा सकते। अधिकतर त्यौहार घर से दूर मनाने पड़ते हैं। इस तरह से जिंदगी प्रभावित तो होती है। लेकिन जैसे मैं आज ट्राइबल हॉस्टल गया तो वहां एक बच्ची मुझे मिली जो पहले कोटड़ा में पढ़ती थी। मेरी पोस्टिंग पहले वहीं थी। उसने मुझे पहचान लिया और कहा कि मैंने आपको अपने पहले वाले स्कूल में देखा था, आप वहां हमसे मिलने के लिए आए थे। अब आप सोचिए कि उस बच्ची ने इतने बच्चों की भीड़ में मुझे देखा था और उसे मेरा चेहरा याद है। तो ये कुछ ऐसे लम्हे होते हैं जब आपको खुशी दे जाते हैं फिर तमाम चुनौतियां उत्साह के सामने छोटी लगने लगती हैं। हम जो काम कर रहे हैं वो बहुत जिम्मेदारी वाला काम है और अगर उससे किसी के चेहरे पर मुस्कान आती है तो वो ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी है।
यह भी पढ़ें: बेघरों का फुटबॉल वर्ल्डकप: भारत की यह टीम भी चुनौती के लिए तैयार