विदेश में पहली बार तिरंगा फहराने वाली भीकाजी कामा
भीकाजी कामा का नारा था- 'भारत आज़ाद होना चाहिए, भारत एक गणतंत्र होना चाहिए, भारत में एकता होनी चाहिए।' वही भीकाजी, जिन्होंने स्वातंत्रता आंदोलन के दौरान विदेश में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ खुद का बनाया तिरंगा फहराया था। मैडम भीकाजी जी रुस्तम कामा का जन्मदिन 24 सितंसबर को होता है।
भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर 'वंदे मातरम्' लिखा था। इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां उकेरी गई थीं। उस झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों के प्रतीक होते थे।
भारतीय मूल की पारसी नागरिक मैडम भीकाजी जी रुस्तम कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को हुआ था । आजादी के आंदोलन के दौरान उन्होंने लन्दन, जर्मनी और अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था। उन्होंने जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 को पहली बार विदेश में सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारत का राष्ट्रध्वज फहराया था। उस समय तिरंगा आज जैसा नहीं था। वह लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं। वह स्वभावतः पत्रकार भी थीं। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित कराया गया 'वन्देमातरम्' पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ था।
सन् 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में उन्होंने दासता से मुक्ति अपील करते हुए कहा था - 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है। आगे बढ़ो। हम हिन्दुस्तानी हैं। हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है। ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो, ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो।' एक संपन्न परिवार में जन्म लेने के बावजूद भीकाजी ने आदर्श और दृढ़ संकल्प के बल पर निरापद तथा सुखी जीवनवाले वातावरण को तिलांजलि दे दी और शक्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचे साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजे खतरों तथा कठिनाइयों का सामना किया। ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विश्व जनमत जुटाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा निर्वासन में बिताया।
एक बार वर्ष 1896 में मुम्बई में जब प्लेग फैला, भीकाजी मरीजों की सेवा में जुट गईं। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। वर्ष 1902 में वह इसी सिलसिले में लंदन गईं और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष जारी रखा। वर्ष 1907 में अपने सहयोगी सरदारसिंह राणा की मदद से उन्होंने भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज स्वयं डिजाइन किया था। मैडम कामा पर किताब लिखनेवाले रोहतक (हरियाणा) के एमडी विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर बीडी यादव बताते हैं कि उस कांग्रेस में हिस्सा लेनेवाले सभी लोगों के देशों के झंडे फहराए गए थे और भारत के लिए ब्रिटेन का झंडा था, उसको नकारते हुए भीकाजी कामा ने भारत का एक झंडा बनाया और वहां फहरा दिया। बाद में उनके द्वारा डिजाइन झंडे से काफी मिलता-जुलता ही भारत का मौजूदा ध्वज डिजायन हुआ था। राणाजी और कामाजी द्वारा निर्मित यह भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा ( राजेन्द्रसिंह राणा ) के घर सुरक्षित है। भीकाजी अपने क्रांतिकारी विचार खुद के समाचारपत्रों ‘वंदेमातरम्’ और ‘तलवार’ में व्यक्त करती थीं।
भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर 'वंदे मातरम्' लिखा था। इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां उकेरी गई थीं। उस झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों के प्रतीक होते थे। सम्मेलन में झंडारोहण के बाद ही मैडम कामा ने जेनिवा से 'बंदे मातरम्' नाम का क्रांतिकारी जर्नल छापना शुरू किया। इसके मास्टहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही। उनके सहयोगी उन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता’ कहते थे; जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी तथा असंगत कहते थे।
यूरोप के समाजवादी समुदाय पर कामा का गहरा प्रभाव था। यह उस समय स्पष्ट हुआ, जब उन्होंने यूरोपीय पत्रकारों को अपने देश-भक्तों के बचाव के लिए आमंत्रित किया। वह ‘भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन’ के नाम से विख्यात थीं। फ्रांसीसी अखबारों में उनका चित्र जोन ऑफ आर्क के साथ आया। यह इस तथ्य की भावपूर्ण अभिव्यक्ति थी कि कामा का यूरोप के राष्ट्रीय तथा लोकतांत्रिक समाज में विशिष्ट स्थान था। उनके बनाए भारतीय ध्वज में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए तीन रंगों को लिया गया था।
भीकाजी कामा की शादी 1885 में जानेमाने व्यापारी रुस्तमजी कामा से हुई थी। ब्रितानी हुकूमत को लेकर दोनों के विचार बहुत अलग थे। रुस्तमजी कामा ब्रिटिश सरकार के हिमायती थे और भीकाजी एक मुखर राष्ट्रवादी। प्लेग के दौरान मुंबई में बीमार पड़ जाने पर जब अपने इलाज के लिए सन् 1902 में लंदन गईं, तभी क्रांतिकारी नेता श्यामजी कृष्ण वर्मा से उनकी भेट हुई। भीकाजी उनसे बहुत प्रभावित हुईं और तबीयत ठीक होने के बाद भारत जाने का ख़्याल छोड़कर वहीं पर अन्य क्रांतिकारियों के साथ भारत की आज़ादी के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन बनाने में जुट गईं। उनका लोकप्रिय नारा था- 'भारत आज़ाद होना चाहिए; भारत एक गणतंत्र होना चाहिए; भारत में एकता होनी चाहिए।'
यह भी पढ़ें: चंदन के पेड़ों ने गुजरात के किसान को बनाया करोड़पति