दो दोस्तों ने मिलकर बनाई मीट कंपनी, अब हर महीने कमाते हैं 3 करोड़
मीट के शौकीन होने के नाते अभय के मन में मीट का बिजनेस शुरू करने का आईडिया आया था। 2010 में कंपनी के काम के सिलसिले में वह विवेक से मिले और वहीं उनकी दोस्ती हो गई।
नॉनवेज के शौक ने शुरू करवा दिया मीट का बिज़नेस। पहले महीने में ही मिल गये थे 13,00 अॉर्डर। आज की तारीख में ये कंपनी सिर्फ बेंगलुरू शहर में ही पूरी करते है 50,000 अॉर्डर।
लिशस कंपनी के फाउंडर अभय और विवेक के परिवार वाले उनके नौकरी छोड़कर मीट का बिजनेस शुरू करने के फैसले से खुश नहीं थे, लेकिन क्या पता था कि उनका बेहतरीन आईडिया उन्हें एक अलग पहचान देगा।
बेंगलुरु के दो दोस्त अभय हंजूरा और विवेक गुप्ता ने अपनी लगन और मेहनत के बल-बूते सिर्फ दो साल में 15 करोड़ की कंपनी बना ली है। 31 सालके अभय जम्मू से हैं और वह 2004 में बायोटेक्नोलोजी में ग्रैजुएशन करने के लिए बेंगलुरु चले गए। उन्होंने ग्रैजुएशन की पढ़ाई के बाद बिजनेस मैनेजमेंट और रिस्क मैनेजमेंट की डिग्री भी हासिल की। वहीं उनके दोस्त विवेक चंडीगढ़ से हैं। जिन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट का कोर्स किया है। वह नौकरी के सिलसिले में 2004 में बेंगलुरु गए थे। मीट का शौकीन होने के नाते अभय के मन में मीट का बिजनेस शुरू करने का आईडिया आया था। 2010 में कंपनी के काम के सिलसिले में वह विवेक से मिले और वहीं उनकी दोस्ती हो गई। वे लंच या डिनर में मीट खाने के लिए रेस्त्रां में जाते थे और वहीं उनकी मीट पर बात होती थी। धीरे-धीरे बात करने पर दोनों को पता चला कि उनका स्वभाव एक सा है और दोनों के मन में बिजनेस शुरू करने की इच्छा भी थी। दोनों को लगता था कि नौकरी करते हुए तो काफी दिन हो गए अब खुद का कुछ शुरू करना चाहिए।
2015 में अभय ने जिस वक्त मीट का बिजनेस शुरू करने के बारे में सोचा, उस वक्त विवेक को इस बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन अभय ने विवेक से कहा कि वे बिलकुल चिंता न करें। दोनों दोस्त बिजनेस पार्टनर बन गए। अभय ने विवेक को सब कुछ सिखा दिया। अभय और विवेक के परिवार वाले उनके नौकरी छोड़कर खुद के बिजनेस शुरू करने के फैसले से खुश नहीं थे। खासकर मीट के बिजनेस से तो वे बिलकुल सहमत नहीं थे। लेकिन किसी की परवाह नहीं करते हुए दोनों ने लिशस ब्रांड से अपनी कंपनी की शुरुआत की। लिशस कंपनी तरह-तरह के मीट और मांसाहारी उत्पाद बनाती है जिसमें मछली, सी फूड और मांस आधारित कई उत्पादों वाली मांस की बहुत-सी श्रेणियां उपलब्ध हैं। यहां से अॉन लाइन अॉर्डर बुक होते हैं, जहां रॉ और मैरिनेड दोनों तरह की नॉनवेज अत्पाद मिलती हैं। क्वालिटी काफी अच्छी और फ्रेश होती है।
अभय और विवेक को अपने पहले महीने में ही 1,300 ऑर्डर मिल गए थे। अभी उनकी कंपनी लिशस सिर्फ बेंगलूरु में ही एक महीने में करीब 50,000 ऑर्डर पूरे करती है। पहले उनके पास स्टॉक रखने की सिर्फ 30 यूनिट थीं, लेकिन अब ये यूनिट बढ़कर 90 हो गई है।
विवेक और अभय ने अपनी कंपनी के लिए मार्च के आखिर में निओपल्क्स टेक्रॉलोजी फंड, सिस्टेमा एशिया फंड, 3 वन4 कैपिटल और मेफील्ड इंडिया के नेतृत्व में एक करोड़ डॉलर की सीरीज-बी का फंड जुटाया है।
विवेक और अभय ने अपनी कंपनी के लिए मार्च के आखिर में निओपल्क्स टेक्रॉलोजी फंड, सिस्टेमा एशिया फंड, 3 वन4 कैपिटल और मेफील्ड इंडिया के नेतृत्व में एक करोड़ डॉलर की सीरीज-बी का फंड जुटाया है। दिसंबर 2015 में इसने मेफिल्ड कैपिटल और 3वन4 कैपिटल से 30 लाख डॉलर का सीरीज-ए का फंड जुटाया था। इससे पहले इस कंपनी ने अगस्त 2015 में इन्फोसिस बोर्ड के पूर्व सदस्य टीवी मोहनदास पई और हीलियन वेंचर्स के सहसंस्थापक कंवलजीत सिंह समेत ऐंजल इन्वेस्टर्स से पांच लाख डॉलर जुटाए थे।
अभय बताते हैं कि देश में मांस का कारोबार लगभग 30-35 अरब डॉलर के आस-पास है, लेकिन लोगों को अच्छी गुणवत्ता का मांस नहीं मिल पाता है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर मांस की दुकान में जिस ढंग से मांस का रख-रखाव किया जाता है और उसमें साफ-सफाई का आभाव रहता है। इससे बीमारी फैलने की भी आशंका होती है। दोनों युवा अपनी कंपनी में एंटीबायोटिक्स से लेकर स्टेरॉयड्स तक का निरीक्षण करते हैं। कई प्रयोग और रिसर्च के बाद दोनों ने फार्म टू टेबल का एक मॉडल तैयार किया है। लिशस कंपनी ने प्रोडक्ट की गुणवत्ता व ताजगी को बरकरार रखने के लिए कोल्ड चेन को मजबूत किया है।
लिशस के पास बैक-एंड की पूरी चेन है। कंपनी ने मुर्गीपालकों और किसानों के साथ गठजोड़ किया है। वे सीधे मुर्गीपालकों को सारी जानकारी देते हैं और मुर्गी के बच्चे को उसकी खास उम्र, वजन, आकार और उसके आहार पर ध्यान देकर उसका पोषण किया जाता है। ये संयोजक खासतौर पर कंपनी को आपूर्ति करते हैं। इन मुर्गियों को तैयार करके हर रोज चार घंटों के अंदर तापमान नियंत्रित वाहनों में संसाधन केंद्रों तक पहुंचाया जाता है।
कंपनी का अपने स्टॉक पर पूरा नियंत्रण रहता है। हर खेप को लैब में परखा जाता है, उसके बाद ही उसे पैक किया जाता है और कोल्ड चेन से व्यवस्थित डिलिवरी केंद्रों पर भेजा जाता है। विवेक कहते हैं कि इस कोल्ड चेन को शुरू से लेकर आखिर तक कहीं भी नहीं तोड़ा जाता है। यानी प्रॉडक्ट को हर समय ठंडे तापमान पर रखा जाता है। लिशस 30 विक्रेताओं के साथ काम करती है और हर रोज करीब तीन टन मांस खरीदती है।
विवेक कहते हैं कि शुरुआत में हमने सोचा था कि ज्यादा मांस खरीदना एक चुनौती होगा लेकिन जैसे-जैसे पैमाना बढ़ा, इसे संभालना आसान हो गया। कंपनी पकाने के लिए तैयार श्रेणियों और कच्चे मांस के व्यापक खंड के साथ चिकन पर आधारित अचार वगैरह भी देती है। अभय कहते हैं कि हम समुद्र तट से सी फूड लेते हैं और कोल्ड चेन में उसकी गुणवत्ता कायम रखते हैं। आज कंपनी का एक रिसर्च सेंटर बेंगलुरु में है और हैदराबाद में इसके तीन डिलिवरी केंद्र हैं।
कीमत की रणनीति के संबंध में अभय कहते हैं कि अगर क्वालिटी देखकर बात की जाए तो हमारे प्रोडक्ट मंहगे नहीं हैं, लेकिन ग्राहकों को लग सकता है कि कुछ चीजों में हम 15-20 प्रतिशत महंगे हैं। असलियत यह है कि हमारी चीजें महंगी नहीं हैं। परंपरागत बाजार में वजन के बाद मांस टुकड़ों में काटा जाता है और अंतिम खरीद की मात्रा 10-15 प्रतिशत कम होती है। लेकिन हम पूरी तौल और अच्छे से साफ-सफाई के बाद ही हम मीट को ग्राहक को देते हैं।
कंपनी को फंडिंग मिलने के बाद अब अगले दो सालों में कंपनी का विस्तार कुछ और शहरों में होगा। जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के साथ ही मुंबई औj पुणे भी शामिल है। इसकी मौजूदा बिक्री ज्यादातर ऑनलाइन हो रही है, वहीं एक बार फ्रंटएंड पर विश्वास हासिल करने के बाद यह रीटेल रूप पर भी ध्यान देगी। अभय बताते हैं कि कंपनी के सामने अभी दो प्रमुख चुनौतियां हैं- एक तो ग्राहकों को क्वालिटी वाले मीट के बारे में जागरूक करना और उन्हें संतुष्ट करने के लिए कम दाम के मीट प्रॉडक्ट को लॉन्च करना।
यह कंपनी हर महीने अच्छे खासे ग्रोथ के साथ आगे बढ़ रही है। कंपनी के पहले साल का बिजनेस 3 करोड़ के आस-पास रहा था। जो कि आज 2.5 करोड़ हर महीने पहुंच चुका है। 2016-17 में कंपनी का कुल टर्नओवर 15 करोड़ था। विवेक और अभय का लक्ष्य है कि इसे हर महीने 6-7 करोड़ रुपये कर दिया जाए।
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