किताबी ज्ञान को प्रोजेक्ट के जरिये समझाने की कोशिश है ‘प्रत्यय एडु रिसर्च लैब’
8 सौ से ज्यादा छात्र उठा रहे हैं फायदादूसरों की शिक्षा के लिए छोड़ी अपनी नौकरीअगस्त, 2013 में बनाया ‘प्रत्यय एडु रिसर्च लैब’
शिक्षा किसी भी समाज की नींव होती है और बात जब भारतीय शिक्षा व्यवस्था की हो तो इसमें कई गड़बड़ियां दिखाई देती हैं। खासतौर से सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा व्यवस्था को लेकर। इस बात को बेहतर तरीके से समझा गिरीश महाले ने। जिन्होने शिक्षा का एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसमें नॉलेज, स्किल और वैल्यू तीनों चीज शामिल हैं। इसके तहत किताबी ज्ञान को ना सिर्फ मॉडल के जरिये समझाया जाता है, बल्कि उस मॉडल को स्थानीय चीजों की मदद से तैयार भी किया जाता है। गिरीश ने अपने इस मॉडल को नाम दिया है ‘प्रत्यय एडु रिसर्च लैब’। फिलहाल इस प्रोजेक्ट का लाभ 8सौ से ज्यादा छात्र उठा रहे हैं। गिरीश के मुताबिक “मैं ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहा हूं जहां पर ना सिर्फ बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मिले बल्कि लड़के और लड़कियां समान रूप से उस शिक्षा को हासिल भी कर सकें।”
गिरीश महाले ने मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले के पांढुर्ना के सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। इसके बाद उन्होने विदिशा के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद आईआईटी खड़गपुर से अपनी पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद गिरिश ने करीब तीन साल आईबीएम में नौकरी की। गिरीश ने योर स्टोरी को बताया “मैंने बचपन से ही सोच लिया था कि शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की कोशिश करूंगा इसलिए मैंने अपनी अच्छी खासी नौकरी को भी छोड़ दिया। क्योंकि मैंने देखा था कि शिक्षा के क्षेत्र में सबके पास बराबर मौके नहीं हैं। अगर कोई खुद बेहतर शिक्षा पाने की कोशिश करना चाहता है तो उसके पास संसाधनों की कमी है। इस चीज को मैंने पढ़ाई के हर स्तर पर महसूस भी किया।”
इसके अलावा इन्होने देखा की इनकी छोटी बहन जिसको पढ़ाई में इनके बराबर मौके मिले लेकिन सामाजिक पाबंदियां के चलते वो पढ़ाई में इतना कुछ नहीं कर पाई जितना गिरीश ने किया। तब गिरीश सोचते थे कि क्यों एक लड़की को समाज में हर समय पराया माना जाता है और क्यों घर से जुड़े फैसले लेने में उसकी भागीदारी ना के बराबर होती है। सामाजिक लिंगभेद को लेकर ये हमेशा परेशान रहते थे। इसलिए इनका मानना था कि इस असमानता को अच्छी शिक्षा के जरिये दूर किया जा सकता है।
जब गिरीश ने अगस्त 2013 में अपनी नौकरी छोड़ ‘प्रत्यय एडु रिसर्च लैब’ की नींव रखी तो उन्होने इस काम की शुरूआत अपने शहर पांढुर्ना से की। इसके लिए इन्होने अपने साथ कुछ वालंटियर जोड़े और चार ब्लॉक के चालीस स्कूलों के साथ एक पायलट प्रोजेक्ट किया। सांइस के छात्र रह चुके गिरीश ने सबसे पहले फिजिक्स के मॉडल तैयार किये और इन स्कूलों में इसका प्रदर्शन किया। इन स्कूलों में कई आदिवासी स्कूल भी शामिल थे।
पायलट प्रोजेक्ट के दौरान उन्होने बच्चों से उनकी राय मांगी। इस दौरान इन्होने इस बात का खास ध्यान रखा कि कैसे स्थानीय संसाधनों की मदद से बढ़िया शिक्षा मुहैया कराई जा सकती है। कैसे किसी कचरे से मॉडल तैयार किया जा सकता है। गिरीश के मुताबिक “हम ये नहीं कहते की हमारे पास कंम्प्यूटर, लैपटॉप या प्रोजेक्टर आ जाए तभी अच्छी शिक्षा मिल सकती है बल्कि हमारी कोशिश होती है कि स्थानीय स्तर पर जो चीजें हैं उनका ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग मॉडल बनाने के लिये किया जा सके।”
गिरीश महात्मा गांधी से काफी प्रभावित हैं। वो बुनियादी शिक्षा पर साल 1927 में गांधी जी के दिये एक लेक्चर का उदाहरण भी देते हैं। वो बताते हैं कि उस लेक्चर में गांधी जी ने कहा था कि “कोई इंसान अगर कुछ सीखना चाहता है तो वो किसी भी काम को करते हुए सीख सकता है। उदाहरण के लिए कोई चरखे के हर चक्कर को गिन ये पता लगा सकता है कि कितनी बार चरखा चलाने से कितना धागा मिल सकता है।”
गिरीश का मानना है कि कोई भी पढ़ाई प्रोजेक्ट पर आधारित हो तो वो बेहतर और जल्द समझ में आ सकती है। आज गिरीश ये सारा काम आदिवासी स्कूलों में कर रहे हैं जिसमें बच्चों के साथ टीचर को भी जोड़ा जाता है। इसके अलावा जो लोग शिक्षा के क्षेत्र में हैं उनकी जानकारी को और बढ़ाने की कोशिश होती है। इनके इस प्रोजेक्ट के जरिये स्थानीय ग्रेजुएट से लेकर जो भविष्य में टीचर बन सकते हैं उनको जोड़ा जाता है। साथ ही इनकी कोशिश होती है कि समाज को भी शिक्षा के साथ जोड़ा जाये। गिरीश का कहना है कि “जब किसी खास समुदाय के लोग मिलकर मंदिर या मस्जिद बना सकते हैं तो वो स्कूल भी बना सकते हैं, भले ही ये काम सरकार का हो लेकिन हमारी कोशिश आम लोगों को भी इसमें भागीदार बनाने की है।”
फिलहाल गिरीश का ये मॉडल पांढुर्ना और उसके आसपास के इलाकों के सात स्कूल और चार हॉस्टल में चल रहा है। ये लोग विज्ञान, कम्प्यूटर साइंस, राजनीति शास्त्र जैसे विषयों के मॉडल पर काम कर रहे हैं। खास बात ये है कि इन मॉडल को स्थानीय युवा तैयार कर रहे हैं। इस मॉडल के तहत एक खास तरह की किट होती है। जिसके जरिये ये बच्चों को वीडियो दिखाते हैं, उनको विषय से जुड़ी कहानियां सुनाते हैं और प्रोजेक्ट से जुड़ा समान होता है।
गिरीश और उनकी टीम दो हफ्ते में एक बार स्कूल का दौरा करती है और बच्चों के सामने उनके कोर्स की चीजों को प्रेक्टिकल करके दिखाते हैं। गिरीश की टीम बच्चों को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वो खुद कुछ ऐसा ही बनाने की कोशिश करें। इसके लिए वो बच्चों को प्रोजेक्ट बनाने के लिए भी देते हैं। यही वजह कि हाल ही में एक बच्चे ने साइकिल से चलने वाली वॉशिंग मशीन बनाई है। कुल मिलाकर बच्चों को इस तरह के नये नये इनोवेशन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इनकी टीम में कुल 12 सदस्य हैं और अब गिरीश की योजना इस मॉडल को मध्य प्रदेश के साथ बिहार और यूपी में भी ले जाने की है।
वेबसाइट : http://www.pratyayaeduresearchlab.org/