अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग खिलाड़ी रशेल कंवल की चोटी फतह की कहानी
24 वर्षीय रशेल कंवल ढाई साल की उम्र से कर रही हैं स्कीइंग...
शिमला की 24 वर्षीय रशेल कंवल का सपना विंटर ओलंपिक खेल में मेडल जीत कर भारत का नाम रोशन करना है। रशेल ने ढाई साल की उम्र में ही शिमला के नारकंडा से स्कीइंग की शुरुआत की थी। बचपन का खेल कब उनके लिए एक लक्ष्य बन गया उन्हें पता ही ना चला।
रशेल एक पेशेवर अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग खिलाड़ी हैं तथा पूर्व अल्पाइन स्कीइंग चैंपियन भी हैं। इस समय रशेल अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग सर्किट पर 2018 - 2019 में होने वाली प्रतियोगिताओं के लिए तैयार में जुटी हैं।
बर्फ से ढंके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर स्कीइंग करना शायद सभी को पसंद है। हम स्कीइंग को बस अपने एक शौक़ की तरह मानते हैं या यूँ कहें कि एक सपने की तरह कि ज़िन्दगी में एक बार बर्फ में जा कर स्कीइंग करना है। हम में से शायद कई लोग ये भी नहीं जानते होंगे कि स्कीइंग वास्तव में भारत में भी एक खेल है जैसा ही अन्य देशों में होता है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं तक आयोजित होती है। जहाँ स्कीइंग लोगों के लिए एक शौक़ है वहीं एक शख्सियत ऐसी भी है जिसके लिए स्कीइंग सब कुछ है।
हिमाचल प्रदेश के शिमला की 24 वर्षीय रशेल कँवल जिनका सपना विंटर ओलंपिक खेल में मेडल जीत कर भारत का नाम रोशन करना है। रशेल ने ढाई साल की उम्र में शिमला के नारकंडा से स्कीइंग की शुरुआत की थी। बचपन का खेल कब उनके लिए एक लक्ष्य बन गया उन्हें पता ही ना चला। रशेल एक पेशेवर अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग खिलाड़ी हैं तथा पूर्व अल्पाइन स्कीइंग चैंपियन भी हैं। इस समय रशेल अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग सर्किट पर 2018 - 2019 में होने वाली प्रतियोगिताओं के लिए तैयार में जुटी हैं।
रशेल बताती हैं कि,"मेरे पिता हर साल बर्फ से ढकी पहाड़ों की ढलानों पर स्कीइंग करते थे। जब मैं दो साल की थी, तो पापा और उनके एक दोस्त, जम्पा नेगी मुझे भी अपने साथ ले जाते थे और स्कीइंग करना सिखाते थे। जम्पा ने मेरी क्षमता देखी और मेरे पिता को चैंपियनशिप के लिए ट्रेन करने की अनुमति देने के लिए प्रोत्साहित किया। शायद आज मैं जो भी हूँ उन्ही के कारण हूँ।"
रशेल ने 2005 से स्कीइंग को अपना प्रोफेशन चुना जब पहली बार उन्होंने "2005 Youngest National Ski Champion" प्रतियोगिता में भाग लिया। उस प्रकियोगिता में स्कीइंग के दौरान गिर जाने के कारण भी उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया। इसके बाद “16th Asia Alpine Ski Championship 2007 Korea” प्रतियोगिता में उन्होंने छठवां स्थान प्राप्त किया।
रशेल कहती हैं कि,"यह मेरे लिए बिलकुल भी अच्छी शुरुआत नहीं थी। लेकिन यह शुरुआत मेरे लिए प्रेरणाश्रोत थी क्योकि चैंपियनशिप के दौरान मौजूद जजों और अन्य साथी चैंपियनों के द्वारा मेरे प्रदर्शन को सराहा गया।"
अब तक रशेल 7 बार अंतर्राष्ट्रीय और चार बार राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमे उन्होंने 8 स्वर्ण पदक भी जीते हैं। इसके साथ ही साथ वो 22 टूर्नामेंट में भी भाग ले चुकी हैं। वह कहती हैं, "स्कीइंग मेरी ज़िंदगी है और इसके बिना ज़िंदगी कुछ भी नहीं है। यह मेरा जुनून है और मैने ये कसम ली है कि मैं अपने देश को गौरान्वित ज़रूर करुँगी।"
रशेल के जीवन ने एक चुनौतीपूर्ण मोड़ तब लिया जब मनाली के स्की अधिकारियों ने अपने एफआईएस कोड (प्रत्येक स्कीइंग खिलाड़ी को दिया गया एक वैश्विक सुरक्षा कोड) को अवरुद्ध कर दिया जिसके कारण उन्हें किसी भी प्रतियोगिता में शामिल होने से रोक दिया गया। वो कहती हैं, "2013 के बाद से मुझे किसी भी मैच के बारे में कभी सूचित नहीं किया गया। स्की संगठनों द्वारा खेली गई इस गन्दी राजनीति से मैं बहुत ज्यादा परेशान थी। उन्हें नहीं पता था कि उन्होंने मेरे सपनों को पूरा होने से रोक दिया जो कि मेरे लिए कितने ज्यादा महत्वपूर्ण थे। मैं पहली बार हताश हो गयी थी, लेकिन फिर मैंने इसे जीवन में होने वाली छोटी बाधाओं में से एक माना जिसका कि मुझे सामना करते हुए उसे दूर करना था।"
रशेल पिछले सात सालों से अपने एफआईएस कोड को वापस पाने के लिए जूझती रहीं और अब जाकर इसे कानून की मदद से वापस पा लिया है। रशेल काफी खुश हैं। वो एक नई पारी की शुरुआत के लिए बिलकुल तैयार हैं और उनकी जीत ही उनके विरोधियों के लिए एकमात्र जवाब जवाब होगी।
रशेल कहती हैं,"अब समय आ गया है, क्योंकि मैं शीतकालीन ओलंपिक खेलों और अल्पाइन स्की चैंपियनशिप के लिए पूरी तरह से तैयार हूं। मैं अभी बहुत प्रेरित हूं और अपने देश के लिए स्वर्ण मेडल जीतना चाहती हूँ।" इसके अलावा, रशेल बिना किसी रूकावट के पूरे माउंट एवरेस्ट को स्की डाउन करने का प्रयास करना चाहती हैं।
रशेल एक सहकारी समिति में एक लेखा परीक्षक के रूप में काम करती हैं। उन्हें कहानियां और कविताएं लिखने का शौक है। वह कहती हैं कि,"पहाड़ मुझे हमेशा से ही आकर्षित करते आये हैं। वे मुझे साहस के लिए प्रेरित करते हैं और जोखिम लेने की हिम्मत देते हैं।"
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