फीस न देने की वजह से स्कूल से बाहर होने वाले 'वरुण' आज हैं सिंगापुर में IT कंपनी के मालिक
बचपन में ज़मीन पर सोने और कंदील की रोशनी में पढ़ने को थे मजबूर...स्कूल फीस न चुका पाने पर किया गया था कक्षा से बाहर...श्याम वर्ण का होने पर साथी "काला कौवा" कहकर करते थे चिढ़ाया...किस्मत को चमकाने लिया फुटबॉल का सहारा और मैदान पर दिखाया हुनर...चोटिल होने पर छूटा खेल तो आगे चलकर बना ली खुद की आइटी कंपनी...कंपनी ने बनाये दुनिया भर में हाई-प्रोफाइल ग्राहक और किया करोड़ों का कारोबार...
भारत में जंगल के पास बसे एक गाँव में पैदा हुए एक बालक ने आगे चलकर सिंगापुर में अपनी एक कंपनी बनाई और करोड़ों रुपयों का मालिक बना। सुनने में ये बात किसी आधुनिक परीकथा का हिस्सा लगती है। लेकिन, ये बात सच है। और जिस बालक की बात यहाँ कही गयी है वो आज एक बड़ी शख्सियत है। इस शख्सियत की कंपनी के ग्राहकों में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। और ऐसा भी नहीं है कि जिस नामचीन हस्ती की बात हो रही है उन्होंने जीवन में बस खुशी ही खुशी और तरक्की दर तरक्की ही देखी है। इस व्यक्तित्व ने अपने जीवन में दुःख देखा है , शारीरिक और मानसिक पीड़ा को सहा है। गरीबी के थपेड़े खाये हैं और अपमान भी झेला है। लेकिन , मेहनत , प्रतिभा और उद्यम के बल पर अपनी कामयाबी की नयी और अद्भुत कहानी लिखी है। ये कहानी है "कॉरपोरेट ३६० " के संस्थापक और सीईओ वरुण चंद्रन की। वरुण चंद्रन की कंपनी आज दुनिया-भर में कारोबार कर रही है और उसका टर्नओवर भी करोड़ों में हैं। बचपन में २५ रुपये की स्कूल फीस जमा न कर पाने की वजह से क्लास के बाहर खड़े कर दिए गए विजय चंद्रन आज करोड़ों रुपये के मालिक हैं और गरीबों को रोज़गार दिलाने में उनकी मदद कर रहे हैं। बेहद दिलचस्प होने के साथ-साथ काफी प्रेरणा देने वाली है वरुण चंद्रन की कहानी।
वरुण चंद्रन का जन्म केरल के कोल्लम जिले में एक जंगल के पास बसे छोटे-से गाँव पाडम में हुआ। गाँव के ज्यादातर लोग गरीब और भूमिहीन किसान थे। वरुण के पिता भी किसान थे। वे धान के खेत में काम करते और जंगल में लकड़ियाँ काटते। वरुण की मां घर पर ही किराने की छोटी-सी दुकान भी चलातीं। बड़ी मुश्किल से वरुण के परिवार की गुज़र-बसर हो पाती। खेत और जंगल ही परिवार की रोज़ी-रोटी का जरिया था ।
बचपन से ही वरुण ने भी खेत में काम करना शुरू कर दिया था। वो खेत में अपने पिता की मदद करते। छोटी-सी उम्र में ही वरुण जान गए थे कि किसान को किन-किन तकलीफों का सामना करना पड़ता है। घर में सुख-सुविधा को कोई सामान नहीं था, घर-परिवार चलाने से लिए ज़रूरी बुनियादी सामान थे।
वरुण के माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने पांचवीं तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन वे चाहते थे कि उनका बेटा वरुण खूब पढ़ाई-लिखाई करे। माता-पिता का सपना था कि वरुण उच्च शिक्षा हासिल कर नौकरी पर लग जाए और उसे रोज़ी रोटी के लिए उनकी तरह दिन-रात मेहनत न करनी पड़े। माँ-बाप ने शुरू से ही वरुण को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना चाहा। अपने सपने को साकार करने लिए माता-पिता ने वरुण का दाखिला गाँव के करीब पाथनापुरम शहर के सेंट स्टीफेंस स्कूल में कराया।
स्कूल में दाखिला तो हो गया , पर मुश्किलें कम नहीं हुईं।
घर में बिजली अक्सर गायब रहती और वरुण को कंदील की रोशनी में पढ़ना पड़ता। रात को वरुण जमीन पर ही सोया करते।
इतना ही नहीं घर-परिवार चलाने के लिए वरुण के माता-पिता को क़र्ज़ भी लेना पड़ा। कर्ज चुकाने के लिए घर के सामान बेचने की भी नौबत आ गयी थी।
घर में हमेशा रुपयों की किल्लत रहती और वरुण अपने स्कूल की फीस समय पर जमा नहीं कर पाते। समय पर फीस जमा न कर पाने की वजह से वरुण को पनिशमेंट के तौर पर कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया जाता। वरुण को बहुत शर्मिदगी होती।
आगे चलकर जब वरुण का दाखिला बोर्डिग स्कूल में कराया गया तब हालात और भी ख़राब हुए। बोर्डिग स्कूल में वार्डेन बार-बार वरुण को अपमानित करते और उन्हें एहसास दिलाते कि वे गरीब हैं।
वरुण के लिए सबसे बुरा पल वो होता जब कुछ साथी उन्हें श्याम वर्ण का होने की वजह से उन्हें "काला कौआ" कहकर बुलाते।
बचपन में वरुण ने बहुत अपमान सहा। गरीबी की मार झेली। दुःख-दर्द सहे।
इन्हीं हालात में वरुण ने अपनी समस्याओं और अपमान से ध्यान हटाने के लिए फुटबॉल को जरिया बनाया।
चूँकि स्वभाव में ही मेहनत और लगन थी, वरुण ने स्कूल में खेल-कूद में खूब दिलचस्पी दिखाई।
उन दिनों वरुण को फुटबॉल का शौक था। इसी वजह से ज़िंदगी में कामयाबी के लिए वरुण ने फुटबॉल का सहारा लेने की ठान ली।
वरुण ने हमेशा फुटबॉल ग्राउंड पर बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। वरुण ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर प्लेग्राउंड में कई पदक और पुरस्कार जीते। वरुण जल्द ही अपनी स्कूल की फुटबॉल टीम के कप्तान बन गये। उन्होंने कुशल नेतृत्व से स्कूल को इंटर-स्कूल टूर्नामेंट का विजेता बनाया। बहुत ही कम समय में टीचर भी जान गए थे कि वरुण एक होनहार बालक है और खेल के मैदान में उसका भविष्य उज्जवल है।
फुटबॉल के मैदान में वरुण की कामयाबी के बाद से लोगों का उसके प्रति नजरिया और व्यवहार बदला। लोगों को एक गरीब परिवार से आये काले रंग के बालक में चैंपियन नज़र आने लगा।
मैदान में वरुण की कामयाबी की वजह एक प्रेरणा थी। वरुण ने बचपन से ही मशहूर खिलाड़ी आइएम विजयन से प्रेरणा ली। वरुण के हीरो थे विजयन। विजयन उन दिनों केरल में बेहद लोकप्रिय थे। विजयन को देश का सबसे बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी माना जाता था। वरुण सपना देखने लगे कि आगे चलकर वे भी विजयन की तरह ही बनेंगे। विजयन इस वजह से भी वरुण के रोल मॉडल थे क्योंकि विजयन का जन्म एक गरीब परिवार में हुए था। विजयन बचपन में स्टेडियम में सोडा बेचते थे। जूते न होने की वजह से उन्होंने कई दिनों तक नंगे पांव ही फुटबॉल खेला था।
वरुण ने विजयन से प्रेरणा लेते रहने के लिए अपने कमरे में उनकी तस्वीर भी लगा ली थी और हर मैच वाले दिन वे अच्छे प्रदर्शन के लिए उनसे ही दुआ मांगते थे। एक मायने में वरुण ने विजयन को भगवान की तरह पूजना शुरू कर दिया था।
दसवीं की परीक्षा पास होने के बाद वरुण को केरल सरकार से फुटबॉल खेलने के लिए स्कालरशिप मिली। ये स्कॉलरशिप त्रिवेंद्रम के एक कॉलेज में खेल के लिए थी। कॉलेज के पहले साल में ही वरुण ने केरल राज्य की अंडर-१६ फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया। टूर्नामेंट खेलने वरुण को उत्तरप्रदेश जाना पड़ा। उत्तरप्रदेश जाने के लिए वरुण को साथी खिलाड़ियों के साथ ट्रेन का सफर करना पड़ा। ये सफर बहुत यादगार था क्योंकि वरुण के लिए ट्रेन से ये पहला सफर था। आगे चलकर वरुण केरल विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के कप्तान बने और यहीं से उनका जीवन तेज़ी से बदलना शुरू हुआ।
केरल राज्य और विश्वविद्यालय की टीमों के लिए खेलते हुए वरुण को कई नयी जगह जाने का मौका मिला। उन्हें नए-नए लोगों से मिलने का भी अवसर मिला। नए अनुभव मिले। जंगल के पास वाले गाँव से काफी आगे बढ़कर शहरों में लोगों के रहन-सहन , आचार-विचार को जानने का मौका मिला। वरुण ने नए दोस्त बनाये और दूसरी भाषाएँ भी सीखीं। एक मायने में वरुण ने अपनी ज़िंदगी को बदलना , उसे सुधारना-संवारना शुरू किया ।
लेकिन , इसी दौरान एक बड़ी घटना हुई, जिसने वरुण की ज़िंदगी की दशा-दिशा को फिर से बदल दिया।
एक दिन मैदान में फुटबॉल के अभ्यास के दौरान वरुण एक दुर्घटना का शिकार हुए। उनके कंधे की हड्डी टूट गयी। इलाज और आराम के लिए उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा। चोट की वजह से फुटबॉल खेलना बंद हुआ और कॉलेज की पढ़ाई छूट गयी ।
फिर से वरुण मुसीबतों से घिर गए। घर की माली हालत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। घर-परिवार चलाने के लिए काम करना ज़रूरी था। परेशानियों से उभरने के लिए वरुण का भी काम करना ज़रूरी हो गया। लेकिन , सवाल था - क्या काम किया जाय ?
इस सवाल का जवाब ढूंढने में माँ ने वरुण की मदद की। माँ ने अपने कंगन और तीन हजार रुपये वरुण को दिए और नौकरी या फिर कोई और काम ढूंढने की सलाह दी।
माँ का आशीर्वाद लेकर वरुण बैंगलोर चले आये। बैंगलोर में वरुण के ही गाँव के एक ठेकेदार रहते थे। इसी ठेकेदार ने अपने मजदूरों के साथ वरुण के रहने का इंतजाम किया।
अंग्रेजी न जानने की वजह से वरुण को बैंगलोर में नौकरी पाने में दिक्कतें पेश आने लगी। ग्रामीण इलाके से होना और अंग्रेजी न जानना, बड़ी अड़चन बनी। वरुण को अहसास हो गया कि नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत ज़रूरी है।
उन्होंने अंग्रेजी सीखना शुरू किया। पहले डिक्शनरी खरीदी। फिर लाइब्रेरी जाना शुरू किया। अंग्रेजी किताबें पढ़ना और शब्द समझ में ना आने पर डिक्शनरी की मदद लेना शुरू किया। सिडनी शेल्डन और जेफरी आर्चर के उपन्यास भी पढ़े। अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत करने और अच्छे से बोलना सीखने के लिए वरुण के अंग्रेजी के न्यूज़ चैनल सीएनएन को टीवी पर देखना शुरू किया।
वरुण ने इंटरनेट के ज़रिये नौकरी की तलाश भी जारी रखी। और एक दिन , वरुण की कोशिश और मेहनत रंग लायी।
उन्हें एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गयी। कॉल सेंटर में काम करते हुए भी वरुण ने पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच उन्हें हैदराबाद की कंपनी ‘एंटिटी डेटा’ से नौकरी का ऑफर मिला। इस कंपनी में वरुण को बतौर बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव नौकरी मिली। इस कंपनी में वरुण ने खूब मेहनत की।
कंपनी के लोग वरुण की मेहनत और कामकाज के तरीके से इतना खुश और संतुष्ट हुए कि उन्हें अमेरिका भेजने का फैसला लिया गया।
आगे चलकर वरुण ने सैप और फिर सिंगापुर में ऑरेकल कंपनी में नौकरी हासिल की।
अमेरिका की सिलिकॉन वैली में काम करते हुए वरुण के मन में नए-नए विचार आने लगे। उनमें एक नौकरीपेशा इंसान से उद्यमी बनाने की इच्छा पैदा हुई। वरुण ने कई बड़ी हस्तियों की जीवनियाँ पढ़ी हुई थीं। इन जीवनियों से उन्हें ये पता चला था कि कई गरीब और मामूली लोगों ने भी पहले उद्यम शुरू करने का सपना देखा और सपने को कामयाब करने के लिए मेहनत की। मेहनत रंग लाई और आम इंसान आगे चलकर बड़े कारोबारी और उद्यमी बने थे। वरुण ने भी फैसला किया कि वे दूसरों की राह पर चलेंगे और और अपना खुद का उद्यम बनाएंगे।
वरुण को लगता था कि सफल बनने के लिए उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे लोगों की समस्याएं सुलझ सकें और उनकी जिंदगी आसान बने।
सिंगापुर में नौकरी के दौरान वरुण ने अपने नए सपनों को सच करने के लिए मेहनत करनी शुरू की।
वरुण ने अपना काम आसान करने के मकसद से एक सॉफ्टवेयर टूल की कोडिंग शुरू की। वरुण के साथियों को भी ये काम बहुत ही कारगर और फायदेमंद लगा। सभी इस कोडिंग से प्रभावित हुए। और , अपने काम का महत्त्व जानकार वरुण ने अपना खुद का वेंचर शुरू करने का फैसला किया। और ऐसे ही उनका पहला वेंचर कॉर्पोरेट ३६० यानी सी ३६० शुरू हुआ।
वरुण ने कंपनियों की मदद के लिए नए-नए उत्पाद विकसित करने शुरू किये। इन उत्पादों की वजह से कंपनियों को ये पता चलने लगा कि उनके उत्पादों को ग्राहक कब, कितना और कैसे इस्तेमाल करते हैं ? और बाजार में इन उत्पादों की मांग कैसी है ?
वरुण ने आगे बढ़ते हुए ‘टेक सेल्स क्लाउड’ नामक उत्पाद तैयार किया।
यह एक ऐसा सेल्स और मार्केटिंग टूल है, जो बड़े डेटा सेट्स का इस तरह विश्लेषण, विवेचन और इस्तेमाल करता है जिससे कंपनियों की सेल्स और मार्केटिंग टीम आसानी से अपने टारगेट समझकर उन्हें चुन सकती हैं।
वरुण ने शुरू में कुछ सालों तक अपने उत्पादों का कुछ कंपनियों के साथ परीक्षण किया और उन्हें दिखाया कि ये कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। अपने क्लाइंट्स को संतुष्ट करने के बाद वरुण ने उन्हें अपने उत्पाद बेचने शुरू किये और अपनी पेड सेर्विसेस भी उपलब्ध करानी शुरू की।
वरुण ने साल २०१२ में सिंगापुर में अपने मकान से ही अपना उद्यम शुरू किया। उद्यम का पंजीकरण भी सिंगापुर में ही हुआ। पंजीकरण के कुछ की मिनटों बाद कंपनी की वेबसाइट भी बन गयी।
कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट ३६० ’ के पीछे भी एक ख़ास वहज है । कंपनियों की ३६० डिग्री मार्केटिंग प्रोफाइल का जिम्मा लेने के मकसद से ही वरुण ने कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट ३६०’ रखा।
वरुण की कंपनी को पहला ऑर्डर ब्रिटेन के एक ग्राहक से मिला था। ५०० डॉलर का ऑर्डर था ये। यानी वरुण की कंपनी चल पड़ी थी।
कंपनी कुछ यूँ आगे बढ़ी कि पहले ही साल में उसने ढाई लाख डॉलर की आमदनी की।
इसे बाद वरुण अपनी कंपनी को लगातार विस्तार देते चले गए। वरुण ने दुनिया के अलग-अलग शहरों के अलावा अपने गृह-राज्य में भी कांट्रैक्टर रखे।
वरुण ने अपनी कंपनी का ‘ऑपरेशंस सेंटर’ अपने गांव के पास पाथनापुरम में स्थापित किया, जहां स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया गया।
आज बड़ी बड़ी बहु राष्ट्रीय कंपनियां वरुण की क्लाइंट हैं। लगभग १० लाख डॉलर की कंपनी बन चुकी है वरुण की कॉरपोरेट ३६० .
वरुण ने नया लक्ष्य है कि अपनी कंपनी कॉरपोरेट ३६० का साल २०१७ तक एक करोड़ डॉलर की कंपनी बनाया जाय। उन्हें पूरा भरोसा भी है कि वे अपने नए ल्क्ष्य को भी पाने में कामयाब होंगे।