एसिड अटैक पीड़िता को बेहतर जीवन देने का सिलसिला जारी, 'शिरोज़ हैंगऑउट' आगरा के बाद लखनऊ में
शिरोज़ हैंगऑउट एक ऐसी संस्था जो एसिड अटैक में घायल हुई महिलाओं की ज़िन्दगी कर रही है रौशन।
जीवन और आशा एक दूसरे के पर्याय हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना असंतुलन को जन्म देगी। अब ऐसे में यदि कोई किसी से जीवन जीने की आशा छीन ले या छीनने का प्रयास करे तो असंतुलन को मापना मुश्किल ही नहीं एक नामुमकिन सी बात है। आज अपनी इस कहानी में हम आपको अवगत कराएँगे एक ऐसी संस्था और इस संस्था से जुड़े लोगों से जिन्होंने अपने जज़्बे और हिम्मत से इस बात को और प्रभावशाली बना दिया है कि यदि व्यक्ति में जीवन जीने की चाह और कुछ कर गुजरने का जूनून हो तो फिर वो असंभव से काम कर सकता है|
जी हाँ इस कहानी में आज हम जिस संस्था कि बात कर रहे हैं वो एक कैफ़े हैं जिसका नाम “शिरोज़ हैंगआउट”रखा गया है जिसे उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम एवं छाँव फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में चलाया जाता है।
क्या है “शिरोज़ हैंगआउट”
“शिरोज़ हैंगआउट” एक कैफ़े है जो भारत के तमाम छोटे बड़े कैफ़े से मिलता जुलता है मगर यहाँ ऐसी कई बातें हैं जो इसे दूसरे कैफ़े से अलग करती हैं जैसे यहाँ का वातावरण, और सबसे ख़ास यहाँ काम करने वाले लोग। आपको बताते चलें कि इस कैफ़े में काम करने वाले सभी सदस्य एसिड अटैक सरवाइवर्स हैं जिन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा है मगर इनमें जीने की चाह है। इस कैफ़े की शुरुआत लक्ष्मी द्वारा करी गयी थी जो खुद एक एसिड अटैक सरवाइवर हैं और जिन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं।
क्या है इस कैफ़े का उद्देश्य
इस प्रश्न के पूछे जाने पर कैफ़े की एचआर वसानी बताती हैं,
"पीपीपी मॉडल के तहत इस कैफ़े की शुरुआत पहले आगरा और फिर लखनऊ में हुई जहाँ आज इस कैफ़े को लखनऊ के युवाओं द्वारा हाथों हाथ लिया जा रहा है। लखनऊ में इस कैफ़े को शुरू करने में शुरुआती दौर में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। जब एक अजीब से डर और घबराहट के चलते यहाँ काम करने वाली महिलाएं बोलने तक को तैयार नहीं होती थी। पर संस्था द्वारा काउंसलिंग के ज़रिए लगातार ये कोशिश की जाती है कि ये महिलाऐं आत्म निर्भर बन सफलता के नए आयाम को पा सकें।"
इन लड़कियों के विषय और आगे के लक्ष्य के सन्दर्भ में वसानी ने बताया कि आगरा और लखनऊ के बाद संस्था दिल्ली और उदय पुर में भी कैफ़े खोलकर उन महिलाओं और लड़कियों की मदद करेगी जो एसिड अटैक में घायल हुई हैं। अपनी संस्था की कार्यप्रणाली पर बात करते हुए वसानी कहती हैं,
"चूँकि अभी लोगों और पीड़ित परिवारों से कोई मदद नहीं मिल रही, अतः हम ख़ुद ही अलग – अलग थानों और कोतवाली में जाकर ऐसे मामलों का पता लगाते हैं और पीड़ित महिला को ज़रूरी मदद मुहैया कराते हैं।"
वसानी ने ये भी बताया कि यहाँ केवल पीड़ित महिलाओं को कैफ़े में काम ही नहीं कराया जा रहा बल्कि संस्था द्वारा उनके सपने भी पूरे किये जाएंगे। संस्था द्वारा पीड़ित महिलाओं जैसे पेशे से ड्रेस डिज़ाइनर रूपा के लिए आगरा कैफ़े में एक बुटीक, सोनिया के लिए दिल्ली में एक सैलून और डॉली को क्लासिकल डांस के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है। गौरतलब है कि कैफ़े में हरियाणा की रूपा, फर्रुखाबाद की फ़रहा, इलाहाबाद की सुधा, कानपुर की रेशमा, ओड़िशा की रानी काम कर रही हैं जिनका एक मात्र उद्देश जीवन में आगे बढ़ना है।
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