बैंगलोर से लंदन तक की यात्रा का सपना, वो भी एक टुक-टुक से...
8800 किलोमीटर लंबी यात्रा पूरी करने के लिये सौर ऊर्जा चलित टुक-टुक तैयार कर रहा है प्रोजेक्ट तेजस....आॅटोमाबाइल इंजीनियर नवीन राबेल्ली ‘रीवा इलेक्ट्राॅनिक कार कंपनी’ की नौकरी के दौरान लुईस पाल्मर की सोलरटैक्सी को देखकर हुए प्रेरित...रीवा से पहले यह युवा साढ़े पांच वर्ष आस्ट्रेलिया में एक आॅटोमोबाइल कंपनी में कर चुका था नौकरी...इस यात्रा के माध्यम से विश्व को स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति करना चाहते हैं जागरुक
नवीन राबेल्ली फिलहाल बैंगलोर से लंदन की अपनी यात्रा की तैयारियों में व्यस्त हैं लेकिन उनकी यह यात्रा कोई सामान्य यात्रा साबित नहीं होने वाली है। उनकी इस यात्रा में उनके परिवहन का साधन कोई विमान या उन्य बड़ा वाहन नहीं है बल्कि वे इस सफर को अपनी खुद की तैयार की हुई एक विशेष सौर ऊर्जा द्वारा संचालित टुक-टुक से पूरी करने वाले हैं।
बैंगलोर से लंदन तक की इस यात्रा को उन्होंने ‘प्रोजेक्ट तेजस’ का नाम दिया है। मार्च 2012 में आधिकारिक तौर पर शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट तेजस पूरी तरह से नवीन के दिमाग की उपज है और इसकी नींव हैदराबाद में उनके काॅलेज के दिनों में ही पड़ गई थी। शिक्षा से इलेक्ट्राॅनिक इंजीनियर और दिल से जोखिम उठाने को तैयार नवीन घूमने की अपनी इच्छा को पूरा करने के लिये स्नातक करने के कुछ समय बाद ही आॅस्ट्रेलिया चले गए और एक आॅटोमाबाइल कंपनी के साथ काम करने लगे। करीब साढ़े पांच वर्षों तक आराम से काम करते रहने के बाद अचानक यात्रा के आकर्षक के कीड़े ने उन्हें फिर काट लिया। नवीन ने अपनी नौकरी को अलविदा कह दिया और भारत का रुख करने से पहले न्यूज़ीलैंड और दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा का आनंद लिया। भारत लौटने पर उन्हें भारत में इलेक्ट्राॅनिक कार के निर्माण में अग्रणी कंपनी ‘रीवा इलेक्ट्राॅनिक कार कंपनी’ के बैंगलोर स्थित कारखाने में नौकरी मिल गई।
रीवा में काम के दौरान उन्हें एक स्विस अध्यापक लुईस पाल्मर से मिलने का मौका मिला जिन्होंने पर्यावरण और सौर ऊर्जा के प्रति अपने जुनून को सोलरटैक्सी के साथ एक पूर्णकालिक व्यवसाय में सफलतापूर्वक तब्दील कर दिया। रीवा में अपनी एक परियोजना को लेकर दी जाने वाली प्रस्तुति के लिये आने से पहले लुइस अपनी एक सोलर टैक्सी में दुनियाभर का भ्रमण कर कर रहे थे। उन्होंने इस टैक्सी का निर्माण जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरुकता फैलाने और यह साबित करने के लिये कि अगर चाहे तो कोई एक व्यक्ति भी पर्यावरण के क्षरण को रोकने के लिये सकारात्मक कदम उठा सकता है, चार इंजीनियरिंग छात्रों के साथ मिलकर किया था।
उम्मीद के मुताबिक लुइस की प्रस्तुति बेहद सफल रही। भीतर से साहसिक कारनामे करने के शौकीन और साहसिक व्यक्तित्व के धनी नवीन इस प्रस्तुति से बाहर आए तो वे अपनी खुद की सौर-ऊर्जा संचालित यात्रा की दिशा में आगे बढ़ने का मन बना चुके थे। हालांकि उन्होंने सोलरटैक्सी की अवधारणा पर ही काम करना शुरू किया लेकिन नवीन ने प्रोजेक्ट तेजस को एक अद्वितीय भारतीय घुमाव देने का निर्णय लिया। उन्होंने बजाय एक सोलर टैक्सी में बैठकर दुनिया का चक्कर लगाने के मुकाबले प्रतिष्ठित भारतीय टुक-टुक को अपने यात्रा के साधन के रूप में चुनने का फैसला किया। जुलाई के महीने में उनकी टीम ने एक टुक-टुक का इंतजाम किया और तभी से वे उसे एक सौर ऊर्जा चलित वाहन का रूप देने में लगे हुए हैं जो नवीन को 8800 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए बैंगलोर से लंदन तक की यात्रा सफलतापूर्वक करवाये।
जैसा कि नवीन ने बताया उन्हें और उनकी टीम को सौर तकनीक के साथ काम करने का कोई पूर्व अनुभव तो था नहीं इसलिये प्रारंभ में इन्हें परीक्षणों और त्रुटियों के एक लंबे दौर से गुजरना पड़ा। उन्होंने इस काम में मदद देने के लिये अपने मित्रों और कुछ स्थानीय मिस्त्रियों के नाम का चयन किया। इंजीनियरिंग की टीम में नवीन के अलावा मिस्त्री महबूब बाशा और एल. मौला और बाॅडी फैब्रीकेटर संतोष कुमार शामिल थे। इसके अलावा उन्हें एकआई आॅटोगैराज, एसएस फैब्रीकेटर्स और पैरामाउंट इंजीनियरिंग का सहयोग मिला। प्रोजेक्ट तेजस की मार्केटिंग और पीआर की टीम में एलिसेंडा एलारी पाहिसा, हिमांशु सिंह, पालवी रायकर और इशाना सिंह के अलावा गोल्ड टर्टल प्रा. लिमिटेड के नवीन गोकुले भी शामिल थे जो इन्ें एनिमेशन और वीडियो के काम के माध्यम से सहयोग कर रहे थे। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट तेजस में राजा रमन, ए नरसिमा राव और आर.एन. स्वामी का भी सहयोग रहा जिन्होेंने इन्हें अवासो टेक्नोलाॅजीज़ से प्रायोजित करवाने में मदद करी जिसके चलते ये एक मोटर खरीदने में कामयाब रहे।
जुलाई के महीने में काम करने के बाद टीम ने टुक-टुक को एक कार्यशील इलेक्ट्रिक वाहन मे सफलतापूर्वक तब्दील कर दिया है जो फिलहाल अपनी तली में लगी हुई बैटरियों के द्वारा संचालित होती है। निर्माण की अगली प्रक्रिया में एक बाॅडी को तैयार कर उनकी छत पर सोलर पैनल को स्थापित करने का काम किया गया। एक प्रक्रिया के पूरा होने के बाद सोलर टुक-टुक अपनी आवश्यकता की करीब 30 प्रतिशत बिजली सीधे सूरज से प्राप्त करने में कामयाब रहेगी और और जरूरत की बाकी बिजली इसमें लगी बैटरियों में संकलित होगी।
नवीन और उनकी टीम को इस परियोजना के इन गर्मियों तक पूरा होने की उम्मी है। अपनी इस सोलर टुक-टुक के माध्यम से प्रतिदिन करीब 100 मिलोमीटर का सफर करने की उम्मी कर रहे नवीन को आशा है कि वे बैंगलोर से लंदन तक की अपनी 8800 किलोमीटर की यात्रा करीब 100 दिनों में पुरी करने में कामयाब होंगे। प्रोजेक्ट तेजस की टीम फिलहाल अपनी इस गाड़ी को सड़क पर निकलने के लिये कानूनी रूप से इसे प्रमाणिक करने के लिये भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से संपर्क करने की प्रक्रिया में लगा हुआ है। नवीन बताते हैं कि इसके अगले कदम के रूप में वे रास्ते में पड़ने वाले सभी देशों के वीसा पाने के प्रयासों में भी लगे हुए हैं।
फिलहाल नवीन ने खुद को पूरी तरह से इस परियोजना के प्रति समर्पित कर दिया और है और वे अंततः लंदन पहुंचने के प्रयासों को मूर्त रूप देने में लगे हैं उनके इस सफर के भी सोलरटैक्सी की तरह ऐतिहासिक होने की संभावनाएं हैं। साथ ही नवीन का प्रयास है कि वे अपनी इस यात्रा को समाज में इस ऊर्जा के इस स्वच्छ स्वरूप के और ताकत के बारे में जागरुकता लाने के एक प्रयास के रूप में करना चाहते हैं। ‘‘यह वास्तव में व्यवहार्य है,’’ वे बताते हैं। ‘‘जब मेरे जैसा एक साधारण व्यक्ति गैराज में इसे तैयार करके भारत से लंदन तक की यात्रा करने का सपना देख सकता है तो भविष्य में वास्तव में ऐसा होते देखना बहुत हद तक संभव है।’’
इस सोलर टुक-टुक को वास्तव में सड़क पर उतारने से पहले इस टीम को कुछ खास काम करने बाकी हैं। फिलहाल प्रोजेक्ट तेजस इस यात्रा के सफल निष्पादन के लिये कुछ प्रायोजकों की तलाश में जोरशोर से लगा हुआ है। हमारे साथ साक्षात्कार के दौरान नवीन ने इस बात में अपनी रुचि व्यक्त की कि एक बार सोलर पैनलों के लग जाने के बाद वे टुक-टुक के दोनों ओर प्रायोजकों के लोगो और रंगों को प्रदर्शित करने के इच्छुक हैं।
एक तरफ तो नवीन अपनी इस यात्रा के सफल निष्पादन में लगे हुए है वहीं दूसरी ओर वे यह भी बहुत बेहतर तरीके से समझ और जान रहे हैं कि सौर ऊर्जा को अभी एक बहुत लबा रास्ता तय करना है। हालांकि यह तकनीक सुलभता के साथ उपपलब्ध है लेकिन फिर भी यह जीवाश्म ईंधन की कम लागत से प्रतिस्पर्धा में मात खा जाती है। नवीन कहते हैं, ‘‘इस ऊर्जा को प्रयोग में लाने के अवसर बहुधा मौजूद हैं और भारत में तो विशेषकर। इस प्रकार से हमारे सामने मुफ्त में इस्तेमाल के लिये ऊर्जा का स्त्रोत है बस आवश्यकता यह तय करने की है कि हम इसे कैसे एक प्रभावी लागत लगाकर प्रयोग के लायक बना पाते हैं।’’ जैसे-जैसे तकनीक में सुधार आयेगा और कीमतें कम होंगी इस सौर आंदोलन की सफलता मुख्यतः इस बात पर भी निर्भर करेगी कि देश में प्रर्यावरण के प्रति जागरुक उपभोक्ताओं का आधार कितना है। अपनी इस यात्रा के माध्यम से नवीन आम लोगों की उसी तरह से प्रेरित करने का इरादा रखते हैं जैसे वे रीवा के मीटिंग रूम की एक प्रस्तुति के दौरान हुए थे और एक साफ-सुथरे ग्रह की दिशा में चल रहे आंदोलन को भी एक गति प्रदान करना चाहते हैं।
प्रोजेक्ट तेजस के बारे में ताजा जानकारी के लिये उनके फेसबुक पेज को फाॅलो करेंः http://www.facebook.com/ProjectTejas