अपना सब कुछ खो देने के बाद भी क्यों सफल हैं ये 5 महिलाएं?
जब रास्ते में मुश्किलें आती हैं और मुश्किलें बढ़ती जाती हैं तब बहुत से लोग हताश होकर उम्मीद छोड़ देते हैं, लेकिन बहुत सारी महिलाओं के लिए हर दिन संघर्ष से भरा है, वहां उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है सिवाय उन मुसीबतों का सामना करने और आगे बढ़ने के। वे संघर्ष करती रहीं ताकि वे दूसरों के लिए आशा की किरण बन सकें।
हम चाहें तो वे सारी पुरानी उक्तियां कह सकते हैं - 'हरेक निराशा में भी एक उम्मीद की किरण होती है', 'हर सुरंग के अंत में प्रकाश होता है', आदि - लेकिन हम संघर्ष को केवल तभी समझ सकते हैं जब हम खुद संघर्षों से गुजरे हों और समझ सकें कि दूसरा व्यक्ति क्या है और किस समय से गुजर रहा है।

ये पांच महिलाएं इस सच्चाई को स्वीकार करती हैं कि संघर्ष या आपके रास्ते में आने वाली चुनौती से कोई फर्क नहीं पड़ता है। आप पर कितने भी ईंट-पत्थर फेंके गए हों, या किसी भी परिस्थितियों ने आपको पीछे ढकेला हो, लेकिन आशावाद की भावना और आगे चलते रहने की इच्छा आपको हर मायने में एक अचीवर बनाती है।
चांदनी खान

चांदनी खान
चांदनी खान एक झुग्गी में पली-बढ़ीं और पांच साल की उम्र से ही स्ट्रीट मैजिक शो करना शुरू कर दिया था। वे अपने पिता के साथ कचरा बीनती थीं। जब उनके पिता का निधन हो गया, तब परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई और वह एक दिन में 30 रुपये कमाने के लिए संघर्ष करती रहीं। एक स्वयंसेवी संस्था, 'बढ़ते कदम' के कुछ स्वयंसेवकों ने उन्हें शैक्षिक कक्षाओं में दाखिला दिया, जो वे मलिन बस्तियों में आयोजित कर रहे थे। तब जाकर, 10 साल की उम्र में, चांदनी ने पेंसिल उठाई और पढ़ना-लिखना सीखा। उन्होंने बढ़ते कदम के लिए काम करना जारी रखा।
चांदनी ने संस्था को नए शिक्षा केंद्र खोलने में मदद की, और इन केंद्रों से अधिक बच्चों को जोड़ा। इसने चांदनी को एक अवसर दिया और उन्होंने झुग्गी के बच्चों के लिए काम करने के लिए अखबार 'बालकनामा' शुरू किया। इस अखबार की 5000 प्रतियां बिकती हैं। इन सभी गतिविधियों ने चांदनी को एक गैर-सरकारी संगठन 'वॉइस ऑफ स्लम' शुरू करने के लिए प्रेरित किया, जिसका उद्देश्य स्ट्रीट चिल्ड्रन को स्वास्थ्य, शिक्षा और आश्रय जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना है।
दीपा अत्रेया
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दीपा अत्रेया चेन्नई स्थित उद्यमी हैं। आज वह एक सफल शख्सियत हैं। लेकिन आज वह जो कुछ भी हैं उसके पीछे उनका कड़ा संघर्ष है। उन्हें बचपन से ही काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा। हालांकि दीपा अब एक सफल उद्यम 'स्कूल ऑफ सक्सेस' चला रही हैं। लेकिन खुद के स्कूल के दिनों में दीपा को ज्यादा वजन के चलते लोग "बेबी एलीफेंट" कहकर मजाक उड़ाते थे। एक शिक्षक के प्रेरणादायक शब्दों ने उन्हें अच्छी तरह से अध्ययन करने और आश्वस्त होने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि, जीवन अभी भी उनके लिए बहुत संघर्ष भरा था। उन्होंने अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी की। एक इवेंट कंपनी के साथ अपने पैरों पर खड़ी हुई, लेकिन जैसा कि किस्मत में लिखा, उनके बिजनेस पार्टनर ने उन्हें धोखा दिया, और वह वापस उसी राह पर आ गईं।
दीपा अत्रेया 24 साल की थीं तब उनके पास अपने बच्चे के लिए दूध खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उन्होंने कुछ गुब्बारे खरीदे, उन्हें बीचेस पर ले गईं, और बच्चों को कहानी सुना सुनाकर उन गुब्बारों को बेच दिया। यह 'स्कूल ऑफ सक्सेस' की एक शुरुआत थी। दीपा का 'स्कूल ऑफ सक्सेस' एक उद्यम है जो शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों को कार्यक्रम प्रदान करता है और देश भर में 2,500 से अधिक स्कूलों को सर्विस देता है।
वंदना शाह

वंदना शाह
एक ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां ससुराल वाले आपके साथ मारपीट करते हैं और रात के 2 बजे आपको अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया जाता हो। आपकी जेब में सिर्फ 750 रुपये हैं, और कहीं जाने का ठिकाना नहीं है, और न ही कोई आपको रुकने के लिए कहने वाला है। यह वह स्थिति थी जब वकील-एक्टिविस्ट-लेखिका वंदना शाह ने खुद को 28 साल की उम्र में पाया था। आज, वह एक प्रमुख डिवोर्स लॉयर और भारत के पहले गैर-न्यायिक तलाक सहायता समूह की संस्थापक हैं।
वंदना आज एक ऐसे पितृसत्तात्मक मध्यवर्गीय समाज के करोड़ों लोगों को चुनौती दे रही हैं जिनके यहां महिलाओं के लिए अलग नियम हैं। इसके अलावा, उन्होंने सहायता समूह के अनुभवों के आधार पर एक किताब, 360 Degrees Back to Life: A Litigant's Humorous Perspective on Divorce भी लिखी है। वंदना भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का पहला कानूनी ऐप DivorceKart लॉन्च करने का दावा करती हैं, जिसका उद्देश्य तलाक के तुरंत बाद सभी कानूनी सवालों का जवाब देना है।
धन्या रवि

धन्या रवि
उनके शरीर में जितनी हड्डियां भी नहीं थीं उससे ज्यादा उन्हें फ्रैक्चर थे। यहां तक कि छींकने या खांसने पर भी उन्हें फ्रैक्चर हो जाता था। उनतीस वर्षीय धन्या रवि ओस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा (ओआई) से पीड़ित हैं, जिसे आमतौर पर भंगुर हड्डी रोग (brittle bone disease) के रूप में जाना जाता है। यह एक दर आनुवंशिक विकार है जो जन्म से मौजूद होता है। अपनी स्थिति और अस्पताल के लगातार चक्कर काटने के बावजूद, धन्या बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए पैशनेट हैं।
जब लता नायर ने अमृतवाणी चैरिटेबल सोसाइटी की शुरुआत की, तो धन्या ने सार्वजनिक बोलने, समाचार शो और टीवी साक्षात्कार के माध्यम से बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। अमृतवाणी चैरिटेबल सोसाइटी ओस्टोजेनेसिस इम्परफेक्टा से प्रभावित लोगों के लिए भारत का पहला गैर सरकारी संगठन है। धन्या शीघ्र निदान के लिए गर्भवती महिलाओं के अनिवार्य आनुवंशिक परीक्षण की भी वकालत करती हैं। अपनी विकलांगता के बावजूद, इस युवती ने यह सुनिश्चित किया है कि वह उच्च उद्देश्य के साथ जीवन जीए।
शीतल तलाटी

शीतल तलाटी
शीतल तलाटी सिर्फ 22 वर्ष की थीं जब उनके पिता का निधन हो गया था। उन्हें पिता की मृत्यु के 10 दिन बाद व्यवसाय की बागडोर संभालनी पड़ी। पुष्पा इंडस्ट्रीज की शुरुआत 1987 में रोहित तलाटी ने की थी। जब शीतल ने 2007 में पदभार संभाला था, तब उसमें सिर्फ सात कर्मचारी थे। यह एक कठिन स्थिति थी क्योंकि वह पहले से ही अपने पिता के नुकसान से जूझ रही थीं और पुराने कर्मचारी चिंतित थे कि वह कंपनी को कैसे आगे ले जाएंगी।
खरीददार और मौजूदा क्लाइंट्स ने शीतल के चार्ज संभालते ही साथ छोड़ दिया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और विनिर्माण प्रक्रिया और उत्पादों के बारे में अधिक जानने के लिए, उन्होंने एयर-कंडीशनिंग एंड रेफ्रिजरेशन के एक पाठ्यक्रम में एडमिशन लिया। उन्होंने एरर के सभी चांसेस को दूर करने के लिए प्रक्रियाओं और प्रणालियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। कंपनी 2007 में 55,000 कॉइल बनाती थी लेकिन 10 वर्षों बाद 2007 की तुलना में कंपनी एक वर्ष में 360,000 कॉइल बनाती है। वास्तव में एक बड़ी छलांग है।