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दिव्यांगों को सशक्त बनाने वाले विधेयक को संसद ने दी मंजूरी

संसदीय पैनल ने दिव्यांग जनों के लिए मौजूदा योजनाओं में सुधार करने और ऐसे सभी बेघर एवं बेसहारा लोगों के लिए इस तरह की और अधिक नई योजनाओं को लागू करने की भी सिफारिश की है।

दिव्यांगों को सशक्त बनाने वाले विधेयक को संसद ने दी मंजूरी

Monday December 19, 2016 , 7 min Read

दिव्यांगों से जुड़े एक महत्वपूर्ण विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गई है। लोकसभा ने इसे पारित कर दिया है। इसमें नि:शक्तजनों से भेदभाव किए जाने पर दो साल तक की कैद और अधिकतम पांच लाख रूपये के जुर्माने का प्रावधान है। नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि और उसके आनुषंगिक विषयों को प्रभावी बनाने वाला नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधयेक 2014 काफी व्यापक है और इसके तहत दिव्यांगों की श्रेणियों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इन 21 श्रेणी में तेजाब हमले के पीड़ितों और पार्किंसन के रोगियों को भी शामिल किया गया है।

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विधेयक पर टीआरएस सदस्य के कविता द्वारा पेश संशोधन को सदन ने मतविभाजन के पश्चात नामंजूर कर दिया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचन्द गहलोत के प्रस्ताव पर सदन ने संक्षिप्त चर्चा के बाद इस विधेयक को पारित कर दिया।

विधेयक में नि:शक्तजनों के लिए आरक्षण की व्यवस्था तीन से बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दी गई है। इसके साथ ही विधेयक में नि:शक्तजनों के लिए कई व्यापक प्रावधान किए गए हैं।

गहलोत ने बताया कि इसमें नि:शक्तजनों से भेदभाव करने की स्थिति में छह महीने से लेकर दो साल तक की कैद और 10 हजार रूपये से लेकर पांच लाख रूपये तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। विधेयक में वही परिभाषा रखी गई है, जिसका उल्लेख संयुक्त राष्ट्र संधि में किया गया है।

इस प्रावधान को सरकार से मान्यता प्राप्त निजी संस्थाओं पर भी लागू किया जायेगा। देश की आबादी के 2.2 प्रतिशत लोग दिव्यांग हैं। अभी तक कानून में इनके लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था जिसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत किया गया है।

साथ ही संसदीय पैनल ने दिव्यांग जनों के लिए मौजूदा योजनाओं में सुधार करने और ऐसे सभी बेघर एवं बेसहारा लोगों के लिए इस तरह की और नई योजनाओं को लागू करने की सिफारिश की है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता पर स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘हालांकि दिव्यांग जनों के लिए 2006 से ही एक राष्ट्रीय नीति मौजूद है बावजूद इसके बड़ी तादाद में लोग इन नीतियों से और इनसे मिलने वाले लाभ से अवगत नहीं हैं।’ इसने सिफारिश की है, कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में लोगों को अधिकारसंपन्न बनाने संबंधी विभाग ने बुजुर्गों के लिए बनी राष्ट्रीय नीति की तर्ज पर शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए भी एक राष्ट्रीय नीति तैयार की थी।

इसके अनुसार, ‘समिति का मानना है, कि शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए राष्ट्रीय नीति का पर्याप्त और व्यापक प्रचार नहीं किया गया है इस वजह से ऐसे लोग इसके लाभों को प्राप्त नहीं कर सके। नेशनल ट्रस्ट द्वारा संचालित तीन योजनाओं विकास, समर्थ और घरौंदा का भी कोई प्रभाव नहीं दिखा और इन योजनाओं के तहत किया गया खर्च नगण्य है।’ इसके अनुसार, ‘समिति ने विभाग से ना केवल इन योजनाओं में सुधार करने और इन्हें प्रभावी तथा परिणामोन्मुख बनाने के लिए कहा बल्कि बेघर एवं बेसहारा दिव्यांगजनों के लिए और अधिक योजनाओं एवं कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए कहा।'

केवल चार राज्यों, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और कर्नाटक में ही दिव्यांगजनों के मामलों को देखने के लिए अलग से विभाग हैं जबकि शेष राज्यों में इसे अतिरिक्त प्रभार वाले आयुक्त या अधिकारी देखते हैं।

गहलोत ने कहा कि नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक 2014 के कानून बनने के बाद नि:शक्त व्यक्तियों को काफी लाभ मिलेंगे और उनका यूनीवर्सल कार्ड बनाया जाएगा जो पूरे देश में मान्य होगा। पहले नि:शक्तता से संबंधित कार्ड स्थानीय स्तर पर ही मान्य होता था। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्ड बनवाने का काम शुरू कर दिया गया है और अगले डेढ़ साल में यह काम पूरा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि विधेयक में नि:शक्त व्यक्तियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था तीन प्रतिशत से बढ़ाकर चार प्रतिशत की गई है। मंत्री ने यह भी कहा, कि सरकार केरल में दिव्यांग विश्वविद्यालय बना रही है और यह अगले साल से शुरू हो जाएगा। विधेयक के कानून बनने के बाद नि:शक्तजनों से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान होने की उम्मीद है।

हमने यह प्रावधान किया है कि कोई भी दिव्यांग भारत सरकार या राज्य सरकार की योजना का लाभ उठाने से वंचित नहीं रह पायेगा : थावर चंद गहलोत

निगरानी के लिए कोई आयोग बनाने के सुझाव के बारे में मंत्री ने कहा, कि आयोग केवल सलाह दे सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमने अधिक शक्तिसम्पन्न आयुक्तों की प्रणाली बनाने का प्रावधान किया है। यह केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर होगा। इसके तहत एक केंद्रीय बोर्ड भी बनाया जायेगा जिसमें तीन सांसद होंगे। गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सुझाये गए दिव्यांग शब्द के बारे में हमने सभी राज्यों के साथ पत्र व्यवहार किया और एक.दो राज्यों को छोड़कर सभी ने इस शब्द को स्वीकार करने की बात कही। विधेयक सबसे पहले फरवरी 2014 में लाया गया था। इसके बाद इसे स्थायी समिति को भेजा गया था जिसने 82 सुझाव दिए जिनमें से 59 सुझाव मान लिए गए।उन्होंने कहा कि विधेयक में नि:शक्त व्यक्यिों को सशक्त बनाने के प्रयास किए गए हैं। नि:शक्त व्यक्तियों की पहले सात श्रेणियां थीं और अब श्रेणियों की संख्या बढ़ाकर 21 कर दी गई है। इस विधेयक की कई विशेषताएं हैं।

उधर दूसरी तरफ दिव्यांग कानून के अभियान में शामिल भारतीय-अमेरिकी एवं सिलिकॉन वैली में सूचना प्रौद्यौगिकी पेशेवर प्रणव देसाई ने कहा है, कि ‘अंतत: संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर करने के दस साल बाद भारतीय संसद ने महत्वपूर्ण दिव्यांग जन विधेयक पारित कर दिया। इस विधेयक से विशेष तौर पर दिव्यांग लोगों पर दूरगामी प्रभाव होगा और इस क्षेत्र में बदलाव की नींव पड़ेगी।’ गैर सरकारी संगठन ‘वाइस ऑफ स्पेशली एबेल्ड पीपुल’ (वीओएसएपी) के प्रमुख हाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से तीसरी बार मिलकर लौटे हैं। वह इस विधेयक को पारित कराने और देश के दिव्यांग क्षेत्र के बदलाव के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं।

विधेयक पारित होने से उत्साहित देसाई ने कहा,

विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून का रूप ले लेगा। इसमें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार 21 प्रकार के दिव्यांगों को शामिल किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘इस विधेयक के कानून बनने से निजी क्षेत्र में भी विशेष तौर पर सक्षम लोगों के लिए रोजगार के अवसर खुलेंगे। सबसे महत्वपूर्ण यह कि विधेयक से सरकारी क्षेत्र में चार प्रतिशत के आरक्षण के प्रावधान से दिव्यांग समुदाय मजबूत एवं सक्षम बनेगा। हमारा सपना देश के दिव्यांग क्षेत्र का कायाकल्प करना है। कानून के उल्लंघन पर पांच लाख रूपये तक के जुर्माने अथवा पांच साल तक कारावास जैसे सख्त प्रावधान दिव्यांग जनों के प्रति अपमान अथवा धमकी की भी रोकथाम करेंगे और इसे प्रभावी बनाएंगे। इससे वृहत पैमाने पर सामाजिक समावेशन बढ़ेगा और गरिमा एवं कानून का अनुपालन करवाया जा सकेगा।’ देसाई इस काम को बेहतर बनाने और विशेष रूप से सक्षम लोगों को सशक्त बनाने के लिए अनेक बैठकें कर चुके हैं।

नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक 2016 का पारित होना एक ऐतिहासिक क्षण है और इससे सुगम्य भारत आंदोलन को एक बड़ी ताकत मिलेगी। इस अधिनियम के तहत विकलांगता के प्रकार बढ़ गए हैं और अतिरिक्त लाभों का प्रावधान भी शामिल किया गया है : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद से विकलांगता विधेयक के पारित होने को ‘ऐतिहासिक क्षण’ करार दिया है और कहा कि इससे ‘सुगम्य भारत आंदोलन’ को बड़ी ताकत मिलेगी। लोकसभा ने संसद के शीतकालीन सत्र के आखिर दिन इस विधेयक को पारित किया। राज्यसभा ने दो दिन पहले ही इस पर मुहर लगा दी थी।