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"सालों से 'मेक इन इंडिया' से भी आगे जाकर काम कर रहा है पतंजलि"

"सालों से 'मेक इन इंडिया' से भी आगे जाकर काम कर रहा है पतंजलि"

Tuesday May 10, 2016 , 8 min Read

हर चीज़ देश में ही निर्मित हो, हमारे यहां का हर शख्स देश में ही बनी चीज़ों का इस्तेमाल करे और उससे भी बड़ी बात की इस्तेमाल के बाद लोगों को सुकून मिले, वो अच्छा महसूस करें-यह सोच और समझ बुनियाद में थी उनकी। विदेशी चीज़ों से सस्ता और बेहतर देने की लगातार कोशिश-यह संकल्प हर सांस में था उनके। इस्तेमाल के बाद उपभोक्ताओं में भरोसा पैदा हो-यह जिद्द उनके काम करने के तौर तरीके में है। इन तमाम कोशिशों का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों में उनको अपार सफलता मिली है और वो मैनेजमेंट गुरू के तौर पर स्थापित हो गए हैं। हम बात कर रहे हैं योग गुरु बाबा रामदेव और उनके सबसे करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की, जिनकी वजह से पतंजलि ने आम लोगों में एक भरोसा बनाया है। 

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योर स्टोरी से बेहद अंतरंग बातचीत में आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि के काम करने के तरीकों पर खुलकर बातचीत की। उन्होंने बताया कि दरअसल पतंजलि की कोशिश है भारत का विकास। भारत का विकास कैसे हो इसकी शुरूआत कहां से हो, इसपर ज़ोर देना। इसके लिए ज़रूरी है भारत के गांवों का विकास हो और गांव का विकास करने के लिए ज़रूर है कि किसानों को मजबूती देना। पतंजलि की शुरुआत और मेक इन इंडिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा, 

"पतंजलि सालों से मेक इन इंडिया से भी आगे जाकर काम कर रहा है। इंडिया का जो अगला और मूल है वही हमारा ध्येय है। आप अगर पतंजली के प्रोडक्ट को देखें तो उसमें लिखा होता है मेड इन भारत...जो भारत की समृद्धि में निष्ठा रखने वाले हैं वो जानते और समझते हैं। हमनें उस दृष्टिकोण से काम करना शुरु किया, जिससे भारत का और भारत के गांव और किसानों का विकास हो। दरअसल पतंजलि की शुरुआत आंवले के पेड़ को किसानों के द्वारा काटे जाने की बात से हुई। कुछ किसान अपने आंवले के पेड़ को काट रहे थे...तो हमने स्वामी जी तक इस बात को पहुंचाया। स्वामी जी ने उन्हें आंवले के पेड़ को काटने से मना कर दिया तो ये बात सामने आई कि आखिर इन आंवले का क्या होगा...तब स्वामी जी (बाबा रामदेव) ने कहा कि हम आंवले का रस बनाकर इसे बेचेंगे...तो हम सबने इस पर आश्चर्य जताया कि आंवले का रस भी कोई पीने की चीज होती है। लेकिन स्वामी जो को इसका विश्वास था और वैसा हुआ और यही पतंजलि के शुरुआत की कहानी है। अब किसानों से हम आंवला लगवाते हैं और हम उन किसानों को पतंजलि की सफलता की वजह से इसकी बेहतर कीमत भी दिलाते हैं।"
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आचार्य बालकृष्ण मानते हैं कि स्वामी जी के सपनों को पूरा करने के लिए हम सब जुट गए। लगातार कोशिशें जारी रही। उनका कहना है कि शुरू में काफी दिक्कत हुई। चूंकि इससे पहले इस तरह का काम हुआ नहीं था इसलिए सबकी नज़रों में ये लोग गड़ने लगे। आचार्य बालकृष्ण का कहना है, 

"हमें काफी टारगेट किया गया. देश ही नहीं पूरी दुनिया इस बात को जानती है. शुरु में हमारे प्रोडक्ट को जानबूझ कर खराब कहा गया, इतना ही नहीं प्रोडक्ट के बारे में झूठा प्रचार भी किया गया और हमें भी प्रताड़ित करने का प्रयास किया गया। लेकिन हम कहीं गलत थे नहीं और लोगों का भरोसा हमारे साथ था. सो हम टिके रहे और परेशानियों के बजाए वो हमारे लिए वरदान साबित हुई। हमनें शुरु में आयुर्वेद को लेकर चलने का फैसला किया था. हम आज भी उसपर कायम हैं. यही हमारी खासियत रही और लोगों के लिए लाभकारी होने की वजह से जो दिक्कतें आई वो वक्त के साथ आसान होती चली गई।"

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कहते हैं जब आप ठीक हैं तो जग ठीक है। और यही वजह है कि पतंजलि को लेकर लोगों में भरोसा लगातार बढ़ता गया। भरोसे की वजह होती है साफगोई। कहते हैं जैसा आप हैं वैसा ही दिखते हैं या दिखाते हैं तो सामने वाले आपकी इज्जत करने लगते हैं। यही बात अगर आप अपने प्रोडक्ट पर लागू करते हैं तो फिर लोग आपके मुरीद हो जाते हैं। आचार्य बालकृष्ण ने एक सवाल के जवाब में कहा, 
"हमारा पूरा फोकस क्वालिटी कंट्रोल और प्रोडक्ट को सही बनाने की कोशिश में रहता है. हमनें कभी भी लोगों के साथ कोई झूठे वादे नहीं किए और मार्केट के लिए बनी बनाई परंपरा पर काम नहीं किया। हमने मार्केट पर अपनी जगह बनाने के लिए एक नई परंपरा कायम की। हमारे लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है वो लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने की और पतंजली प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता को बनाए रखने की, जिस पर हमें खरा उतरना है।"
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इस बात को बढ़ाते हुए आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि उन्होंने कभी भी देश की जनता को मार्केट नहीं माना या समझा। चाहे आयुर्वेद की दवाईयां हो या फिर रोज़मर्रा की चीज़ें ये सब विशुद्ध रूप से देश की जनता के लिए ही है। उनका कहना है कि पतंजलि ने असल में देश की जनता की पीड़ा को समझा उसके बाद पंतजलि आयुर्वेद की शुरूआत की। आचार्य बालकृष्ण कहते हैं,

"हम जहां भी जाते हैं लोग पतंजली की बात करते हैं सो ये सिर्फ हमारा नहीं बल्कि पतंजलि देश की जनता का है। हम विशुद्ध रुप से देश की जनता के लिए काम करते हैं क्योंकि हम कोई राजनीतिक संगठन नहीं हैं। इस वजह से जनता का विश्वास पतंजली के प्रोडक्ट्स पर है। जहां तक स्वदेशी का सवाल है वो विश्वास भी प्रोडक्ट में दम होने की वजह से आया है और हां लोग जरुर से स्वदेशी की बात करने लगें हैं क्योंकि अब लोग अपनी चीजों के प्रति जागरुक हैं।"

लोगों के मन में एक बात लगातार चलती है कि आखिर पतंजलि ने किस तरह की स्ट्रैट्जी अपनाई और अपने प्रोडक्ट को मार्केट तक पहुंचाने के लिए क्या-क्या योजनाएं बनाईं। आलम यह है कि आज तमाम बड़ी MNCs कंपनियां पतंजलि को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाती हैं। इसके जवाब में आचार्य बालकृष्ण कहते हैं, "जैसा कि आप जानते हैं कि हमने मार्केट की स्थापित परंपरा को नहीं अपनाया। हमने पतंजलि के उत्पाद की क्वालिटी पर ध्यान दिया और लोगों ने उस पर विश्वास जताया इसे अगर आप मार्केट स्ट्रेटेजी माने तो यहीं हमारी रणनीति थी। चूंकि हमारे प्रोडक्ट में दम है और हमें अपने उसपर विश्वास, सो बड़ी-बड़ी कंपनियों की हमें काटने के लिए रणनीति बनाने के बावजूद हम अपने कामों में लगे।" आगे वो कहते हैं कि यही कारण है कि पतंजलि पूरी दुनिया में फैल चुका है। पूरी दुनिया में रहने वाले भारत वासियों ने पतंजलि को अपना प्यार दिया है। हां ये जरुर है कि भारत पर हमारा प्राथमिक फोकस है।

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बातचीत के दौरान जब मसला स्टार्टअप इंडिया का आया तो आचार्य बालकृष्ण ने बड़ी बेबाकी से कहा कि यह योजना अच्छी है पर इसके साथ-साथ कुछ और लोग हैं जिनपर खास ध्यान देना ज़रूरी है। उनका कहना है, 

"कई सालों तक देश में बड़े-बड़े उद्योग तो लगाए गए लेकिन देश के किसानों को, जंगलवासी और वनवासियों को अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिली, वो उपेक्षित ही रहे। हम उनको मालिक बना रहे हैं ना कि बंधुआ। क्योंकि पतंजली अपने उत्पाद के लिए जो कच्चा माल खरीदती है वो किसानों से सीधे लेती है और इस प्रकार किसानों को बेहतर कीमतें मिल रही है। पतंजली की योजना है कि हम ऐसे लोगों को मालिक बना दें जो कल तक परेशान थे और खेतों और किसानी के काम को छोड़ना चाहते थे।"

स्टार्टअप इंडिया की तारीफ करते हुए वो कहते हैं कि यह ज़रूरी है। क्योंकि आज भी खेती-किसानी पर आधारित कई ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो अभी तक दूसरे देश की कंपनियों के द्वारा निर्मित किया जा रहा था। उदाहरण के तौर पर अगर देश में फूड प्रोसेसिंग की जितनी क्षमता है उसका महज 6-8 फीसदी ही हम पहुंच पाए हैं। इस क्षेत्र में अगर हम दुनिया की प्रगति पर नजर डालें तो तो हमें काफी कुछ करने की जरुरत है। पूरे देश का पेट भरने वाला किसान आज भी भूखा है, ऐसा क्यों है...? क्योंकि हमने शुरु से ही अनुकूल नीतियों और परिस्थितियों का निर्माण नहीं किया। सरकार की स्टार्टअप इंडिया की कोशिशों से साकारात्मक उम्मीद बंधती है और पतंजली सरकार के इस पहले में कदम से कदम मिलाकर चल रही है।

आचार्य बालकृष्ण इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं कि देश के विकास में युवको का बड़ा योगदान साबित होने वाला है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है युवाओं का सही दिशा में चरित्र निर्माण। वो मानते हैं कि युवाओं के सामने कठिनाईयां आएंगी पर ज़रूरी है खुद को सकारात्मक रखते हुए आगे बढ़ना। 

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