पति के गुजर जाने के बाद बेटियों की परवरिश के लिए चलाई एंबुलेंस, आज ट्रैवल एजेंसी की मालिक
एक अकेली महिला का संघर्ष...
राधिका ने कभी नहीं सोचा था कि वह एंबुलेंस सर्विस के बिजनेस में उतरेंगी। उनकी दिलचस्पी भी नहीं थी। दरअसल यह काम उनके पति का था, जो लीवर कैंसर की वजह से बीच सफर में राधिका को छोड़कर चले गए। 47 वर्षीय राधिका की दो बेटियां भी हैं।
पिछले एक डेढ़ दशक से लगातार संघर्ष कर रहीं राधिका की दोनों बेटियां बड़ी हो गई हैं और अब वे अपनी मां की जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं। राधिका बताती हैं कि अपनी पढ़ाई करते हुए दोनों बेटियों ने उनकी खूब मदद की। अब सारा बिजनेस उनकी बेटियां संभालेंगी।
मंगलौर में रहने वाली राधिका एंबुलेंस सर्विस और टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस चलाती हैं। एक महिला का इस बिजनेस में होना आपको थोड़ा हैरान कर सकता है। लेकिन राधिका इस बिजनेस को काफी अच्छे से संभाल रही हैं। भले ही इसकी शुरुआत मजबूरी में क्यों न हुई हो। राधिका ने कभी नहीं सोचा था कि वह एंबुलेंस सर्विस के बिजनेस में उतरेंगी। उनकी दिलचस्पी भी नहीं थी। दरअसल यह काम उनके पति का था, जो लीवर कैंसर की वजह से बीच सफर में राधिका को छोड़कर चले गए। 47 वर्षीय राधिका की दो बेटियां भी हैं।
द न्यूज मिनट के मुताबिक राधिका कर्नाटक के हासन में पली बढ़ी थीं। उनकी शादी कोडागू के रहने वाले सुरेश से हुई। रोजगार की तलाश में सुरेश मंगलौर आए और यहीं राधिका के साथ बस गए। वे घर का खर्च चलाने के लिए एंबुलेंस चलाया करते थे। इससे उन्हें पैसे तो ज्यादा नहीं मिलते थे, लेकिन उनका गुजारा हो जाता था। यहीं रहते हुए राधिका को दो बेटियां हुईं, भूमिका और भार्गवी। कुछ साल बाद सुरेश को पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नौकरी मिल गई। यहां उन्हें अच्छे पैसे मिलने लगे और घर की हालत भी सुधरने लगी। लेकिन इसी बीच 2000 में एक दुखद वाकया हुआ। सुरेश को लीवर कैंसर होने का पता चला।
यह कैंसर काफी तेजी से फैलता चला गया और सुरेश को बचाया नहीं जा सका। 2002 में उनका देहांत हो गया। सुरेश के जाने के बाद राधिका के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दो बेटियों की देखभाल कैसे करेंगी और घर कैसे चलाएंगी। राधिका ने सिर्फ 6वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। उन्होंने कुछ दिनों तक एक हॉस्पिटल में असिस्टेंट के तौर पर काम भी किया था। वह कहती हैं, 'मुझे नहीं पता था कि घर की चाहारदीवारी के बाहर आने वाली मुश्किलों से पार पाऊंगी।'
सुरेश के इलाज में काफी पैसे खर्च हुए थे और कर्ज भी चढ़ गया था। राधिका के पास कमाई न तो कमाई का कोई साधन था और न ही रोजगार मिलने की उम्मीद। सुरेश अपने पीछे अपने परिवार के अलावा अपनी एंबुलेंस भी छोड़ गए थे। राधिका ने सोचा कि वह एंबुलेंस चलाएंगी और अपनी बेटियों की परवरिश करेंगी। वह कहती हैं, 'मुझे भार्गवी और भूमिका को पढ़ाना-लिखाना था। नौकरी के बगैर मैं ये कैसे कर पाती। इसलिए मैंने खुद से कहा कि दुनिया चाहे जो कहे, चाहे मुझे काम पसंद हो या न हो, मैं एंबुलेंस चलाऊंगी।' राधिका ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया और एंबुलेंस चलाने लगीं।
हॉस्पिटल में काम करने की वजह से उन्हें ऑक्सिजन सिलिंडर ऑपरेट करने और प्राथमिक उपचार जैसी चीजें पता थीं। इसलिए उन्हें थोड़ी आसानी भी हुई। उन्होंने दिन रात मेहनत करते हुए एंबुलेंस चलाई। वह बेटियों को घर पर छोड़कर रात में इमर्जेंसी सर्विस में एंबुलेंस चलाती थीं। इतना ही नहीं वे एंबुलेंस से ही केरला, बेंगलुरु, महाराष्ट्र, यूपी और मध्य प्रदेश के चक्कर भी लगा आती थीं। राधिका बताती हैं, 'मैंने मरीज को हॉस्पिटल पहुंचाने से लेकर आइसबॉक्स का इस्तेमाल और शव को पोस्टमॉर्टम भी पहुंचाया है।' सुरेश के गुजर जाने के बाद इंश्योरेंस के रूप में राधिका को कुछ पैसे मिले थे। उन्होंने अपनी सेविंग्स और इन पैसों को जोड़कर अपनी खुद की एंबुलेंस सर्विस शुरू की।
इसका नाम रखा कावेरी एंबुलेंस सर्विस। राधिका बताती हैं कि उनके पति का सपना था खुद की एंबुलेंस सर्विस शुरू करना। लेकिन वे समय से पहले ही गुजर गए। आज राधिका के पास 12 एंबुलेंस हैं। जिन्हें चलाने के लिए उन्होंने ड्राइवर रखे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने टूर ऐंड ट्रैवल्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर एक बस भी ली है। पिछले एक डेढ़ दशक से लगातार संघर्ष कर रहीं राधिका की दोनों बेटियां बड़ी हो गई हैं और अब वे अपनी मां की जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं। राधिका बताती हैं कि अपनी पढ़ाई करते हुए दोनों बेटियों ने उनकी खूब मदद की। अब सारा बिजनेस उनकी बेटियां संभालेंगी।
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