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गांवों में स्मार्ट क्लासरूम्स बनाकर विश्व-स्तरीय शिक्षा दिला रहा पुणे का यह स्टार्टअप, जुड़े 1 लाख बच्चे

पुणे का एक स्टार्टअप दुनियाभर के विशेषज्ञों के माध्यम से कर रहा है ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण दिलाने का काम...

गांवों में स्मार्ट क्लासरूम्स बनाकर विश्व-स्तरीय शिक्षा दिला रहा पुणे का यह स्टार्टअप, जुड़े 1 लाख बच्चे

Monday July 09, 2018 , 7 min Read

पुणे के एजुकेशन-टेक स्टार्टअप ईएलएमएनओपी (eLMNOP) दुनियाभर के विशेषज्ञों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण दिलाने का काम कर रहा है। शिक्षा के नए और अधिक प्रभावी तरीक़ों की मदद से ग्रामीण बच्चों को आधुनिक तकनीक और इंटरनेट इत्यादि में विश्वस्तरीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

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संतोष ने महाराष्ट्र की मुल्शी तालुका के मान गांव में अपना पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया था। उन्होंने सरकारी अधिकारियों की मदद से गांव में स्मार्ट क्लासरूम्स बनवाए। गांव के स्कूलों के आधारभूत ढांचे की भी कमी होती है, इसलिए ये क्लासरूम्स ग्राम पंचायत के दफ़्तर में बनवाए गए।

स्टार्टअपः ईएलएमएनओपी (eLMNOP)

फ़ाउंडरः संतोष तालाघट्टी

शुरूआतः 2015

जगहः पुणे

सेक्टरः एजुकेशन-टेक

कामः ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल और स्मार्ट क्लासरूम्स के माध्यम से विश्वस्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराना

फ़ंडिंगः सीएसआर

पुणे आधारित एजुकेशन-टेक स्टार्टअप ईएलएमएनओपी (eLMNOP) दुनियाभर के विशेषज्ञों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण दिलाने का काम कर रहा है। शिक्षा के नए और अधिक प्रभावी तरीक़ों की मदद से ग्रामीण बच्चों को आधुनिक तकनीक और इंटरनेट इत्यादि में विश्वस्तरीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

एक दशक पहले, 19 जून को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के 58वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत के लिए 'विज़न 2020' का ज़िक्र किया था। डॉ. कलाम का सपना था कि 2020 तक भारत में अमीर और ग़रीब का भेद ख़त्म हो जाए और सभी को जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा मिले। डॉ. कलाम के इस सपने को एक मुहिम का स्वरूप मिला और कई लोगों ने उनके इस सपने को अपना सपना बना लिया। इनमें से ही एक हैं, संतोष तालाघट्टी।

डॉ. कलाम ने एमएमयू के दीक्षांत समारोह में कई बड़े मुद्दों पर चर्चा की थी, जिसमें शिक्षा व्यवस्था एक प्रमुख विषय था। संतोष की उम्र उस समय 26 साल की थी और उन्होंने कलाम साहब के भाषण के बाद तय कर लिया था कि वह निश्चित तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में अपना ख़ास योगदान देंगे। सपने को पूरा करने की राह में संतोष के पास पहला बड़ा मौक़ा तब आया, जब महाराष्ट्र शिक्षा विभाग ने उन्हें बुलावा भेजा। संतोष इसे अपनी मुहिम का टर्निंग पॉइंट मानते हैं। आज 10 साल बाद संतोष अपने स्टार्टअप के अंतर्गत ग्लोबल क्लारूम्स चला रहे हैं, जिसके माध्यम से उन्होंने 1 लाख ग्रामीण बच्चों को अपने साथ जोड़ा है।

संतोष ने पुणे विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री ली है। संतोष ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों की कार्यप्रणाली समझने के लिए उनके साथ काम करना शुरू किया और अपनी रिसर्च के निष्कर्षों के आधार पर उन्होंने ऐसे तरीक़े तलाश करने शुरू किए, जिनके माध्यम से गांवों के स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का स्तर शहरों के बराबर लाया जा सके। संतोष ने अपने स्टार्टअप के लिए कई कंपनियों से कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तौर पर फ़ंडिंग हासिल की। इन कंपनियों में हनीवेल, एमक्योर, इन्फ़ोसिस, कॉग्निज़ैंट, अमृता यूनिवर्सिटी और टीचसर्फ़िंग जैसे बड़े नाम शामिल हैं। तीन साल पहले शुरू हुआ संतोष का स्टार्टअप, अब सीरीज़ ए फ़ंडिंग हासिल करने की तैयारी में है। ईएलएमएनओपी के फ़ाउंडर संतोष ने योर स्टोरी से बातचीत में बताया कि किस तरह उनका स्टार्टअप, 'डिजिटल इंडिया स्कूल' मुहिम में अपना विशेष योगदान दे रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ संतोष

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ संतोष


संतोष कहते हैं, "अपनी नौकरी छोड़ने के बाद मैंने सोचा कि एक स्कूल के साथ काम करने से बेहतर है कि आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर अपनी मुहिम से हज़ारों स्कूलों को जोड़ा जाए। मैं चाहता था कि गांव के बच्चों को भी वे सभी संसाधन उपलब्ध हो सकें, जो शहर के बच्चों के पास हैं। मेरे सामने कई मौक़े आए, जब मुझे लगा कि गांव में पढ़ने और पढ़ाने वाले कई बच्चे और शिक्षक, शहर के बच्चों और अध्यापकों से भी तेज़ होते हैं, बस उन्हें बराबरी के मौक़ों और एक प्लेटफ़ॉर्म की ज़रूरत होती है। इन बच्चों को अगर सही मार्गदर्शन, प्रेरणा और पूरा सहयोग मिल जाए, तो शहर के बच्चों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं।"

इस सोच के आधार पर ही उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरूआत की। उन्होंने एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म तैयार किया, जिसके माध्यम से पढ़ाने और सीखने की प्रक्रिया के स्तर को और भी बेहतर बनाया जा सके। संतोष ने महाराष्ट्र की मुल्शी तालुका के मान गांव में अपना पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया था। उन्होंने सरकारी अधिकारियों की मदद से गांव में स्मार्ट क्लासरूम्स बनवाए। गांव के स्कूलों के आधारभूत ढांचे की भी कमी होती है, इसलिए ये क्लासरूम्स ग्राम पंचायत के दफ़्तर में बनवाए गए। इस प्रोजेक्ट को तेज़ी से बड़ी सफलता मिली और आस-पास के गांव भी इसकी तरफ़ आकर्षित हुए। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी इस प्रोजेक्ट की जमकर सराहना की और मान गांव को एक 'डिजिटल विलेज' की संज्ञा दी।

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इस बड़ी सफलता के बाद संतोष ने अपने प्रोजेक्ट को तेज़ी से फैलाना शुरू किया, ज़िला पंचायत स्तर पर उन्होंने 10 और स्कूलों को अपने प्रोजेक्ट के साथ जोड़ लिया। आज की तारीख़ में मुल्शी, हिंजेवाड़ी, मान, सतरवाड़ी और सुस आदि जगहों के 100 से भी ज़्यादा स्कूल संतोष के प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं।

स्मार्ट क्लासरूम्स में दुनियाभर के विशेषज्ञ स्काइप के ज़रिए बच्चों से बात करते हैं। इन विशेषज्ञों में वैज्ञानिक, शिक्षाविद, आईएएस अधिकारी आदि शामिल रहते हैं। संतोष बताते हैं कि अभी तक ऑनलाइन कॉन्फ़्रेस के ज़रिए लगभग 1 हज़ार स्कूल और 10 हज़ार शिक्षक उनके प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण स्कूलों में उनके स्टार्टअप के ऑनलाइन सपोर्ट प्रोग्राम की भारी मांग है।

विशेषज्ञों के साथ सत्रों में बच्चों को प्रभावी तरीक़े से बातचीत और काम करना सिखाया जाता है। बच्चों को बताया जाता है कि अजनबियों के साथ किस तरह से पेश आते हैं। संतोष कहते हैं कि कई बार बच्चों के सवाल ऐसे होते हैं कि पढ़ाने वाले विशेषज्ञों को भी प्रेरणा मिलती है।

ज़्यादातर ऐसा होता है कि एक्सपर्ट्स बच्चों से अंग्रेज़ी में बात करते हैं, जिसे समझना गांव के बच्चों के लिए मुश्किल होता है और इसलिए ही बच्चों को समझाने के लिए ट्रांसलेटर्स की मदद ली जाती है। अपनी मुहिम को और भी प्रभावी बनाने के लिए यह स्टार्टअप आईसीटी टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंतर्गत महाराष्ट्र में 6 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों को भी प्रशिक्षित कर चुका है।

संतोष की टीम कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अपने प्रोजेक्ट का विस्तार करने पर काम कर रही है। कंपनी अपने प्लेटफ़ॉर्म को ऐप के माध्यम से भी लॉन्च करेगी, जिस पर अंग्रेज़ी, गणित, फ़ाइनैंशल मॉडलिंग, कॉन्टेन्ट राइटिंग और सोशल इंटरफ़ेस जैसे विषय मौजूद होंगे।

संतोष बताते हैं की सीएसआर के तौर पर फ़ंड जुटाने के लिए उन्हें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि उनके मुताबिक़, अधिकतर कंपनियां सीएसआर के तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करने से कतराती हैं। संतोष कहते हैं कि तमाम कोशिशों के बाद जर्मनी के एजुकेशन शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म टेकसर्फ़िंग ने उनकी मदद की और ईएलएमएनओपी के साथ करार किया। संतोष की कंपनी जर्मनी से ही ऐनी मैरी (स्ट्रैटिक अडवाइज़र) और गैब्रिएला के तौर पर दो मेंटर्स मिले, जिन्होंने बिज़नेस प्लान बनाने और फ़ंडिंग के लिए फ़ाइनैंशियल मॉडल्स विकसित करने में संतोष और उनकी कंपनी की मदद की।

ऐनी मैरी कहती हैं कि बच्चों के साथ रहना और उन्हें प्रेरित करना, इससे बेहतर लक्ष्य किसी के जीवन में क्या हो सकता है। वह मानती हैं कि संतोष के ख़्वाब में सच्चाई थी और इसलिए ही वह इस मुकाम पर पहुंचे।

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