ये हैं अनाथों की मां सिंधुताई
सिंधुताई सपकाल अनाथों की मां के रूप में भी जाना जाता है। सिंधुताई एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो विशेष रूप से अनाथ बच्चों को पालने के अपने नेक काम के लिए जानी जाती हैं। उनके समर्पण और काम के लिए उन्हें 273 से अधिक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका गया है।
सिंधुताई गोद लिए बच्चों को ये नहीं लगने देना चाहती थीं कि वो पराए हैं, सिर्फ इसलिए उन्होंने अपनी जायी बच्ची को पुणे की एक संस्था विश्वास श्रीमंत दगदू शेठ हलवाई में भेज दिया। पढ़ने, सुनने, लिखने में ये एक अविश्वसनीय बात लग सकती है, है भी।
सोचिए एक मां अपने खून को कैसे खुद से दूर कर सकती है ताकि वो दूसरों के बच्चों को अच्छे से पाल सके। इस काम के लिए बहुत बड़ा दिल और अपार ममता, त्याग की भावना चाहिए होती है। सिंधुताई तो मानो त्याग और ममता की जीती-जागती प्रतिमूर्ति हैं।
सिंधुताई सपकाल अनाथों की मां के रूप में भी जाना जाता है। सिंधुताई एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो विशेष रूप से अनाथ बच्चों को पालने के अपने नेक काम के लिए जानी जाती हैं। सिंधुताई गोद लिए बच्चों को ये नहीं लगने देना चाहती थीं कि वो पराए हैं, सिर्फ इसलिए उन्होंने अपनी जायी बच्ची को पुणे की एक संस्था विश्वास श्रीमंत दगदू शेठ हलवाई में भेज दिया। पढ़ने, सुनने, लिखने में ये एक अविश्वसनीय बात लग सकती है, है भी। सोचिए एक मां अपने खून को कैसे खुद से दूर कर सकती है ताकि वो दूसरों के बच्चों को अच्छे से पाल सके। इस काम के लिए बहुत बड़ा दिल और अपार ममता, त्याग की भावना चाहिए होती है। सिंधुताई तो मानो त्याग और ममता की जीती-जागती प्रतिमूर्ति हैं।
द मुस्लिम टाइम्स के अनुसार, सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर 1948 को वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गांव में हुआ था। एक अवांछित बच्चा होने के नाते, उसे 'चिन्दी' (कपड़ा का टुकड़ा) नाम दिया गया था। उनके पिता उनकी मां की इच्छा के खिलाफ जाकर सिंधुताई को शिक्षित करना चाहते थे। घोर गरीबी, पारिवारिक जिम्मेदारियों और कम उम्र में हो गए विवाह की वजह से सिंधुताई को 4 वीं कक्षा पास करने के बाद औपचारिक शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया। 10 वर्ष की आयु में उनकी शादी नहरगांव गांव से 30 साल के एक चरवाहे श्रीहिर सपकाल से कर दी गई। 20 की उम्र पहुंचते-पहुंचते तीन बच्चों की मां बन चुकी थीं।
इतनी मजबूत, इतनी सशक्त!
इतने भारों तल दबे होने के बावजूद उनके अंदर की बहादुरी जरा भी कम नहीं हुई। उन्होंने एक स्थानीय सशक्त आदमी के खिलाफ एक सफल आंदोलन चलाया। वो आदमी ग्रामीणों से गाय के सूखे गोबर इकट्ठा करवाता था और गांवों को कुछ भी न देकर वन विभाग को सब बेच डालता था। इस आंदोलन में सिंधुताई ने उस इलाके के जिला कलेक्टर को अपने गांव में बुलाया। कलेक्टर ने पाया कि वहां सच में गड़बड़ चल रही है। उन्होंने एक आदेश पारित किया और इस घोटाले को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए। ये सब होता देख वो बाहुबाली आदमी तुनक गया। एक गरीब महिला के हाथों हुए इस अपमान से वो मरे जा रहा था। उस आदमी ने नीचता की सारी हदें पारकर सिंधुताई के पति को धमकाया कि वह सिंधु को घर से निकाल दे। उस वक्त सिंंधु 9 महीने की गर्भवती थीं।
पति ने इस हालत में भी उन्हें घर से बाहर निकाल फेंका। उस रात अपने घर के बाहर एक गाय आश्रय में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। सब कुछ खुद से किया और उसके बाद वो कुछ किलोमीटर दूर अपनी मां के घर पर चली गईं। लेकिन मां ने भी उन्हें आश्रय देने से इन्कार कर दिया। सिंधुताई ने भोजन के लिए रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर भीख मांगना शुरू कर दिया। इसी प्रक्रिया में, वह कई ऐसे बच्चों के संपर्क में आई, जिन्हें उनके माता-पिता ने छोड़ दिया था। उन्होंने उन बच्चों को स्वयं की संतान के रूप में अपनाया और उन्हें खिलाने-पिलाने के लिए और भी काम करना शुरू कर दिया। सिंधुताई ने हर किसी के लिए मां बनने का फैसला किया जो अनाथ के रूप में उनके पास आए थे।
त्यागमयी, ममतामयी, वात्सल्यपूर्ण-
सिंधुताई ने अपना संपूर्ण जीवन अनाथों के लिए समर्पित कर दिया। लोग उन्हें प्यार से 'माई' (मां) कहकर बुलाते हैं। जिन बच्चों को उन्होंने अपनाया, उनमें बहुत से बच्चे आज शिक्षित वकील और डॉक्टर हैं। और कुछ बच्चे सिंधुताई की जैविक बेटी के साथ स्वयं का स्वतंत्र अनाथालय चला रहे हैं। इन बच्चों में से एक सिंधुताई के जीवन पीएचडी कर रहा है। उनके समर्पण और काम के लिए उन्हें 273 से अधिक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका गया है। उन्होंने इन पुरस्कार राशि का इस्तेमाल बच्चों के लिए घर बनाने में किया। 2010 में उनपर एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' भी बनी थी जोकि सिंधुताई की सच्ची कहानी से प्रेरित एक गाथा है। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में विश्व प्रीमियर के लिए भी चुना गया था। सिंधुताई को लंदन, 2014 में आयोजित राष्ट्रीय शांति संगोष्ठी में अहमदीय शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका गया है।
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