बनारस की स्वाती सिंह बीएचयू से पढ़ी हुई हैं और लेखन का काम करने के साथ-साथ ‘मुहीम-एक सार्थक प्रयास’ नामक संस्था की फाउंडर भी हैं। इन दिनों स्वाती माहवारी के खिलाफ जारुकता फैलाने का काम कर रही हैं, जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
स्वाती की मुहीम इस वक्त पचास से ज्यादा गांवों तक पहुंच चुकी है। अब गांव की महिलाएं सूती कपड़े की मदद से सैनिटरी बनाने में जुट गई हैं।
‘माहवारी’ या ‘पीरियड्स’ एक ऐसा विषय, जो महिलाओं के लिए जितना ज़रूरी है समाज के लिए उतना ही शर्म का। मैट्रो सिटीज़ में लड़कियां भले ही अब न शर्माती हों और इस पर बात करने से उन्हें कोई दिक्कत न हो, लेकिन हमारे देश में अभी भी ऐसे कई शहर कई इलाके हैं, जहां लोगों की सोच इन सब विषयों पर अब भी संकुचित हैं। वो उस तरह से नहीं सोच पाते जैसे कि उन्हें सोचना चाहिए। अपनी संस्था के माध्यम से समाज की उसी सोच को बदलने के लिए बनारस की स्वाती सिंह ने इसे खत्म करने का बीड़ा उठाया है।
स्वाती अपनी मुहीम के ज़रिए माहवारी के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में जेंडर, यौनिकता, संस्कृति, स्वास्थ्य और स्वच्छता की दिशा में तेज़ी से काम कर रही हैं। वे इस विषय पर जागरुकता, व्यवहार परिवर्तन और सतत विकास को केंद्र में रखकर काम कर रही हैं। वैसे देखा जाये तो पिछले कुछ सालों से हमारे आसपास के माहौल में इन सबको लेकर जागरुकता तो बढ़ी है। हाल ही में अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन ने एक तरीके से समाज के सामने माहवारी की समस्या को रखा,जो कि एक वास्तविक किरदार की जीवन यात्रा पर अधारित थी। उसी तरह स्वाती भी माहवारी की शर्म के खिलाफ-खिलाफ लड़ने के साथ-साथ उसे महिला रोजगार से भी जोड़ कर देख रही हैं।
अपनी इस मुहीम के जरिये उन्होंने शर्म के विषय को केंद्र में रखकर इसे दूर करने की दिशा में जो काम शुरू किया है इसे वह स्टार्टअप की तरह ही देखती हैं। क्योंकि इसके माध्यम से वह सैनिटरी पैड बनाने का भी काम कर रही हैं। स्वाती की मुहीम इस वक्त पचास से ज्यादा गांवों तक पहुंच चुकी है। अब गांव की महिलाएं सूती कपड़े की मदद से सैनिटरी बनाने में जुट गई हैं। स्वाती ने बताया कि उनकी इस मुहिम का मिशन पीरियड्स के विषय पर स्वस्थ माहौल बनाना, ग्रामीण महिलाओं के बीच सूती सेनेटरी पैड के इस्तेमाल और इसे लघु उद्योग के तौर पर शुरू करना है।
हजारों महिलाओं का साथ
अब तक पांच हज़ार से अधिक महिलाएं एवं किशोरियां इस मुहिम का हिस्सा बन चुकी हैं, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। स्वाती ने बताया कि उन्होंने जिन-जिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक काम किया है वहां महिलाओं और किशोरियों में इस विषय को लेकर चुप्पी काफी हद तक दूर हो चुकी है। कई महिलाएं सूती सेनेटरी पैड के निर्माण-कार्य को अपने लघु उद्योग के रूप में अपना चुकी हैं। स्वाती इसे अपनी असल उपलब्धि मानती हैं।
महिला महाविद्यालय (बीएचयू) की छात्रा रही स्वाती ने साल 2013 में सोशियोलॉजी ऑनर्स में बीए करने के बाद बीएचयू से जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में साल 2015 में मास्टर्स किया। इसके बाद, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (नई दिल्ली) से उन्होंने मानवाधिकार की पढ़ाई की।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार और शुक्रवार जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम करने के बाद स्वाती ने जनवरी, 2017 में अपनी पहली किताब ‘कंट्रोल Z’ लिखी।
स्वाती के लेखन व सामाजिक कार्य के लिए उन्हें काका कालेलकर सामाजिक सम्मान, उत्तर प्रदेश कन्या शिक्षा एवं महिला कल्याण तथा सुरक्षा सम्मान, सरस्वती सम्मान और लाडली मीडिया अवॉर्ड जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। मौजूदा समय में स्वाती फेमिनिज़्म इन इंडिया में संपादक भी हैं।
योरस्टोरी स्वाती जैसी महिलाओं के द्वारा चलाए जा रहे अभियान की सराहना करता है और उम्मीद करता है कि महिलाओं के प्रति समाज की सोच जल्द बदलेगी।
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