भारतीय कला को नए मुकाम पर पहुंचाने वाले चित्रकार राजा रवि वर्मा
एक ऐसा चित्रकार जो अपने समय के मानक तोड़ता है। जो नकारा जाता है। जो बाहर कर दिया जाता है। लेकिन अपना मुकाम अर्जित कर सभी का शीर्ष बन जाता है। राजा रवि वर्मा। त्रावनकौर के चित्रकार। 1848 में पैदा हुए और 1906 में मृत्यु हो गई। बचपन से ही वो चित्र बनाते थे। और उनकी रुचि को देखते हुए उनको त्रावणकौर के राजा के यहाँ रखा गया।जहां वे इसमें महारत हासिल करते हैं। फिर उनकी कला देश-दुनियाँ में फैलने लगती है। केरल का ये राज्य इस कलाकार के कारण जाना जाता है।
रवि वर्मा के पास शुरू में विषयों की कमी होती थी। यही कारण है कि वो समझ नहीं पाते की किसको अपने चित्र में उकेरा जाए। लेकिन कला की साधना के कारण जादूगर बनाता गया। अपनी खुद की प्रेस से चित्रो को छापा और लोकप्रिय बनाया। कला के बारीक हुनर के कारण और कला के ज्ञान के कारण उनको तेल चित्र और बाकी चित्र में बहुत महारत मिली। पश्चिम और पूर्व का संगम होने का कारण भी वे जड़ नहीं है। उनके चित्र है-खेड्यातिल कुमारी,विचारमग्न युवती,दमयंती-हंसा संभाषण,संगीत सभा, अर्जुन व सुभद्रा, फल लेने जा रही स्त्री, विरहव्याकुल युवती, तंतुवाद्यवादक स्त्री, इन सब को हम रोज ही देखते हैं।
यही कारण है कि उनके चित्र अपने जीवन के सबसे प्रिय हिस्से लगते है। राज महल से लेकर आम जीवन सब को अपनी कला में स्थान दिया है राजा ने। कला के अपने और ऊंचे मानक राजा ने ही बनाए। एक कलाकार जब मानक बनाता है तो वो अपने में शिखर बन जाता है। राजा वही है। राजा ने सबसे अधिक रामायण और महाभारत के पात्रो को रचा। जो चित्र हम देखते है। अखबारों, पत्रिका, केलेण्डर, या और भी किताबों में वो राजा के ही चित्र है। मिथ और कला, भारतीय मानस के उस अवचेतन को राजा ने रचा और उसको आधुनिक बना कर जन-जन तक ले गए।
राजा ने कला कि नैतिकता को भी नया आयाम दिया। केतन मेहता ने उन पर फिल्म बनायी- रंग रसिया। रंगो के साथ खेलना और उसको एक नया आयाम देना और अपने युग को अभिव्यक्त करना हर बड़े कलाकार का फर्ज है। राजा के चित्रो को देखने पर लगता है कि कितने हु-ब-हु है। जीवंत है। कितने पास है। खासकर रामायण के और महाभारत के चित्र। कल्पना से उनको रचा औए साकार कर दिया। राजा को देश-विदेश में खूब सराहा गया। खूब उनको मान मिला। और उनकी कला ने अन्य कलाओ को भी समृद्ध किया। कितने पात्र उनकी कला में है। आप लिखते है तो और बात होती है। लिखने से आगे की कला है चित्र। वहाँ आपके सामने दृश्य है। उसको आप देख सकते है उसको आप अपनी कल्पना और अवचेतन में देख सकते है।
उनका एक चित्र है द्रोपति। औरतें अधिक है उनके यहाँ। उनका दुख और उनकी पीड़ा का संसार है रवि के चित्र। कम उम्र में गुजरने के बावजूद वो दुनियाँ के महान चित्रकार है। दक्षिण भारत ही नहीं पूरे भारत में उनकी कला का मानक है। उनके बाद की चित्रकला में जो विविधता है वो प्रभाव के रूप में आती है। कला के अब तो कितने सारे ररूप है। मॉडर्न आर्ट में, हो या फाइन आर्ट सभी में वो नज़र आते है।
एक चित्रकार के रूप में उनका स्थान राज परिवार की सीमाओ से बाहर आता है। वो इतिहास और वर्तमान के बीच अपने को रंगों में इस तरह उतार रहे थे कि उनके रंग जीवन के रंग बन गए। उनके रंग सभ्यता के सबसे सोबर रंग बने। उनकी कृति है ग्वालिन। वो औरत जो गाय चरती है। जिसका कृष्ण कि लोक और प्रेम संस्कृति से खास समन्ध है। इस तरह उनकी कितनी ही कृतिया है। जिनका कथांतर अलग ही है। जिन पर आप किसी काव्य कृति की तरह बात कर सकते है। केरल सरकार ने उनके नाम के संस्थान और केंद्र खोले है। साथ ही कितने सारे पुरस्कार, और कला को आगे बढ़ाने के लिए भी राजा की कला का उपयोग किया है।
सन 2013 में बुद्ध ग्रह पर एक क्रेटर (ज्वालामुखी पहाड़ का मुख) का नाम उनके नाम पर ही रखा गया। इस कलाकार के नाम कितना कुछ है। कोई भी कलाकार समाज की थाती होता है। राजा रवि वर्मा भी उस स्थान के भागीदार है।आगे की परंपरा में वे हर बार झलक जाते हैं। और उनकी ये झलक जीवन और कला में आगे की राह लिए नज़र आती है।
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