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छत्तीसगढ़ के युवा किसान ने की ऐसी खेती, कि राष्ट्रपति ने कर दिया सम्मानित

राजनीति करने से लेकर जैविक खेती करने का सफर, एक घटना ने बदल दिया मकसद

छत्तीसगढ़ के युवा किसान ने की ऐसी खेती, कि राष्ट्रपति ने कर दिया सम्मानित

Friday November 10, 2017 , 4 min Read

रोहित लगभग 18 एकड़ खेत में जैविक पद्धति से ही पूरी खेती करते हैं। वे बताते हैं रसायनमुक्त खेती से न केवल हमारी सेहत अच्छी रहेगी, धरती भी खूब पैदावार देगी।

अपने खेतों में रोहित

अपने खेतों में रोहित


कुछ साल पहले गांव के किसानों की हालत देखकर रोहित को यह अहसास हुआ कि अत्यधिक रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से जमीन बंजर होती चली जा रही है। उन्होंने इस स्थिति को बदलने का प्रण लिया और जैविक खेती के बारे में जानकारी एकत्रित करनी शुरू कर दी।

रोहित बताते हैं कि उन्होंने बिना केमिकल के खेती की और जैविक खेती के सपने को सच कर दिया। उनकी देखा-देखी गांव के कई किसानों ने इस पद्धति को अपना लिया।

छत्तीसगढ़ के युवा और प्रगतिशील किसान रोहित राम साहू ने खेती में ऐसा कारनामा किया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सम्मानित किया। प्रदेश के दुर्ग जिले के पाटन विधानसभा के रहने वाले रोहित राम साहू संरक्षित प्रजाति के धान की खेती जैविक पद्धति से करते हैं। उन्हें जैविक पद्धति से खेती करने के कारण भविष्य के रोल मॉडल के रूप में राज्य सरकार द्वारा उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रदेश के स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सम्मानित किया।

रोहित लगभग 18 एकड़ खेत में जैविक पद्धति से ही पूरी खेती करते हैं। वे बताते हैं रसायनमुक्त खेती से न केवल हमारी सेहत अच्छी रहेगी, धरती भी खूब पैदावार देगी। शुरू में ऐसा जरूर लगता है कि जैविक खेती में उत्पादन कम होता है, लेकिन यह भ्रम है। यह जीरो बजट की खेती है।‏ जानकारी के मुताबिक रोहित राम अचानकपुर में पले बढ़े और यहीं पर सरकारी स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की। उसके बाद गांव के ही एक डिग्री कॉलेज से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहित स्थानीय राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में काम किया।

कुछ साल पहले गांव के किसानों की हालत देखकर रोहित को यह अहसास हुआ कि अत्यधिक रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग से जमीन बंजर होती चली जा रही है। उन्होंने इस स्थिति को बदलने का प्रण लिया और जैविक खेती के बारे में जानकारी एकत्रित करनी शुरू कर दी। उसके बाद वे पाटन में ही जैविक खेती करने लगे। रोहित बताते हैं कि यह सफर आसान नहीं था। उन्होंने कहा, 'जब मैंने जैविक खेती प्रारंभ की तो लोग मेरा मजाक उड़ाते थे और मुझपर हंसते थे। किसान यह सोचते थे कि बिना कीटनाशक और रासायनिक खाद के खेती संभव ही नहीं है।'

रोहित बताते हैं कि उन्होंने बिना केमिकल के खेती की और जैविक खेती के सपने को सच कर दिया। उनकी देखा-देखी गांव के कई किसानों ने इस पद्धति को अपना लिया। अपने अनुभव साझा करते हुए रोहित कहते हैं कि पांच साल पहले वे एक स्थानीय किसान के साथ खेत में थे। वहां किसान फसल में रासायनिक खाद का छिड़काव कर रहे थे। उसी वक्त कुछ कीटनाशक उस किसान के शरीर पर पड़ा जिससे उसकी त्वचा को नुकसान पहुंचा और इन्फेक्शन हो गया। इसके बाद रोहित तुरंत खेती के जानकार आलोक मिश्रा के पास पहुंचे और उन्हें पूरी कहानी बताई। उन्होंने किसान के शरीर पर घी लगाने को कहा। इसके बाद उस किसान को कुछ राहत मिली।

इस घटना ने रोहित के मन पर बुरा प्रभाव डाला और उन्होंने रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग के बगैर खेती करने का प्रण ले लिया। वह कहते हैं कि इन खादों से न केवल फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है बल्कि मिट्टी को भी नुकसान पहुंचता है। उन्होंने इसके लिए छत्तीसगढ़ की कामधेनु यूनिवर्सिटी में पांच दिनों का प्रशिक्षण भी लिया। वे बताते हैं कि इस वक्त महासमुंद, आरंग, धमतरी और कई अन्य जिलों के किसान जैविक खेती को अपना रहे हैं। अचानक पुर की महिलाओं को भी इससे रोजगार मिला है। वे किसानों के लिए जैविक उत्पाद बनाती हैं और उन्हें बेच देती हैं।

महिला स्वयं सहायता समूह की मुखिया दुलारूबाई साहू ने बताया कि वे रोहित से काफी प्रभावित हुईं और उन्हीं ने इस समूह की स्थापना की। इस समूह में 9 सदस्य हैं। वे सभी सरकारी गौशालाओं से गोबर की खाद इकट्ठा करती हैं। उस गोबर को ये हरी खाद बनाने में इस्तेमाल करती हैं। सरकार ने भी इनके लिए 40,000 रुपये के फंड की व्यवस्था की है। रोहित ने बताया कि जैविक खेती के साथ-साथ वे परंपरागत तरीके से धान को संरक्षित करने का भी काम कर रहे हैं। उन्होंने धान की कई नई प्रजातियां विकसित की हैं। उनके पास 50 से ज्यादा प्रजातियों के धान के बीज हैं। वे कहते हैं कि 2022 तक उन्हें पूरी तरीके से जैविक खेती को अपना लेना है।

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